बाहर मेहमानों, मित्रों और परिचितों की भीड़ हजारों की संख्या में एकत्रित हो गईं थी।सभी एम्बुलेंस के आने का इंतजार कर रहे थे। आखिर उस महान विभूति के आखिरी दर्शन जो करने थे। मगर नेहा का तो जैसे भगवान ही छीन लिया था भगवान नें। भयंकर कार एक्सीडेंट में ओन स्पॉट डेथ की खबर नें नेहा की याददाश्त को गहरा झटका पहुंचाया था यहाँ तक की लेस मेमोरी में पहुंचा दिया था। माँ का चेहरा तो उसने देखा नहीं थाऔर अब पिता भी...।. उसके जन्म साथ ही असहनीय प्रसव पीड़ा नें उसकी माँ को उससे अलग कर दिया था । एकमात्र सहारा, उसकी दुनिया, भगवान सब कुछ वही तो थे। अब वो भी छीन लिया गया था।
पेशे से डॉक्टर होने के साथ साथ नेहा के पिता एक बहुत अच्छे इंसान भी थे.। जिन्हें लोग मसीहा के नाम से पुकारते थे। रामवाण दवाई और इलाज की वजह से लोग उनके मुरीद हो गए थे। इंसान की लाचारी, बेबसी और ग़रीबी को देखकर फ्री इलाज भी पूरी सहानभूति और ईमानदारी से करते थे। उन्हें खोने का दुःख सभी को था।
आपसी चर्चा के मध्य एम्बुलेंस का हार्न सुनाई देने लगा था। उस महान विभूति की एक झलक पाने की इच्छा सभी के चेहरों पर बेसब्री से हो रही थी।5-6लोगों की मदद से बॉडी को बाहर निकालकर "स्वर्ग नसेनी" पर लिटा दिया गया था।साथ ही सफ़ेद कपड़ों और फूलों से अर्थी को सजा दिया गया था। एक एक करके सभी उनके दर्शन करते जा रहे थे।
पर नेहा का कुछ पता नहीं था।पागलों की तरह कभी हंसती तो कभी चीख चीख कर रोती नेहा को चाचा, ताऊ, बुआ, मौसी बहुत समझाने की कोशिश कर रहे थे।पर नेहा को जैसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।रो रो कर निढाल हुई नेहा कमरे के एक कोने में खामोश पडी थी। नेहा को इकलौती संतान होने का फर्ज भी अदा करना था अतः नेहा को अग्नि देने हेतु किसी तरह तैयार किया जा रहा था।' राम नाम सत्य है 'और उल्टे बाजों की ध्वनि के साथ नेहा के पापा का महाप्रस्थान हो रहा था। वो भी मामा चाचा के कंधो के सहारे भीड़ में आगे बढ़ रही थी।श्मशान घाट पर जैसे ही नेहा को अग्नि देने के लिये आगे बढ़ाया ।नेहा वहीं हाथों से छूटकर बेहोश हो गईं। शायद पापा को अलविदा कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी ।नेहा को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया। चाचा ताऊ के बेटों नें नेहा के पापा की अंतिम संस्कार की भूमिका निभाई।
इधर घर की चाची,बुआ को नेहा के संग अस्पताल में ठहरा दिया गया था ।लगभग एक सप्ताह बाद नेहा को घर लाया गया। नेहा के पापा केअंतिम रीति रिवाज घर के बाकी सदस्यों नें मिलकर पूरे कर दिये थे।तेरहवीं के बाद नेहा की एक बुआ ही सिर्फ बची थी जो नेहा के संग महिनों रही थी। शायद नेहा के पापा के बेहद करीब थी साथ ही घर की हर बात से वाकिफ भी थी। नेहा अपनी बुआ से एक बात का जिक्र बार बार करतीथी।बुआ मैं इतनी अभागी क्यों हूँ?
क्यों भगवान नें मुझे दोनों से दूर कर दिया? मेरे पापा नें मुझे किसी चीज की कमी नहीं होने दी। सब कुछ होते हुए भी हमेशा वो हमें गरीबों को देखने को कहते थे।वो कहते थे जो यहाँ से गुजर कर आता है उस पर अमीरी कभी अपना रोब नहीं जमा पाती।वो हमेशा कहा करते थे तू अपनी माँ पर गईं है तुझे देखकर ही तो मैं जीता हूँ। तू अपनी माँ जैसी ही बनना। वो हर काम नियम संयम से करती थी। आचार विचार और आहार सब कुछ तो सात्विक था उसका। भगवान की बहुत बड़ी भक्त थी इसीलिए शायद उसे पसन्द आ गईं। मैं उसके लायक नहीं था इसलिए वो मुझे छोड़कर चली गई। ज़ब मैं उसके लायक हो जाऊंगा तो मुझे भी वो बुला लेगी।कहते कहते फूट फूट कर रोने लगते थे। मैं हमेशा उनके मुँह पर हाथ रख देती थी और उन्हें गले लगा लेती थी। माँ के लिये एक अजीब सा आकर्षण और दर्द मुझे पापा मैं हमेशा दिखाई देता था।बुआ आज तुम मुझे ये बताओ क्या माँ पापा
की लव मैरिज थी ? पापा आपसे तो हर बात शेयर करते होंगे।बुआ नें पहले तो टालने की कोशिश की। लेकिन फिर उन्हें लगा सच्चाई बताने में कोई बुराई नहीं है। सच्चाई जानकर हो सकता नेहा के अंदर कोई नया बदलाब आ जाये। जो नेहा कोअपने पैरों पर खड़ा करने में मदद करे। हर वक़्त तो वो भी उसके साथ नहीं रह सकती। बुआ नें बताया तेरी माँ एक बहुत गरीब परिवार से थी। मगर तेरे पापा नें पता नहीं उसमें ऐसा क्या देख लिया कि फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। पहला प्यारऔर फिर पत्नी ही उसकी जिंदगी हो गई थी। अम्मा बाबूजी के विरुद्ध जाके कोर्ट मैरिज रचाई थी तेरे पापा नें।
मुझे तो जबरन साथ देना पड़ा था क्योंकि मुझे तेरे पापा को खोने का डर बैठ गया था साथ ही तेरी माँ के लिये किसी भी हद तक जाकर उसे पाने का जूनून मैंने अच्छे से महसूस कर लिया था। अम्मा बाबूजी को अमीरी- ग़रीबी, जात-पात,समाज सबका डर खाये जा रहा था। मगर तेरे पापा कि जिद के आगे दोनों की जरा भी नहीं चल पाई थी। शादी के कुछ साल किराये के मकान में तेरे माँ पापा नेजिंदगी की नई शुरुआत की थी। बेटे से अलग होने का दुःख अम्मा बाबूजी भी नहीं झेल पाए और साल भीतर वो दोनों भी स्वर्ग सिधार गए। दोनों के इस तरह जाने का दुःख तेरे पापा से ज्यादा तेरी माँ को हुआ था। वो खुद को कुसूरवार समझती रही हमेशा। सब कुछ पाकर भी वो कभी खुश नहीं रह पाई। भगवान से हमेशा तेरे पापा को अम्मा बाबूजी से अलग करने का दुःख मनाती रही। तेरे पापा दुखी न हो जाएँ इसलिए वो उनसे कभी भी इस बारे में चर्चा नहीं करती थी। मगर मुझे ज़ब भी मिलती थी अपने अंदर का दर्द हमेशा मुझे बताया करती थी।तू भी शादी के पांच साल बाद पेट मे आई। तेरे लिये भी तमाम मन्नतें मांगती रही। ऊपर से खुश और अंदर दे दुखी रहकर उसने तुम्हें जन्म दिया और तेरे पापा को पहले प्यार की निशानी देकर खुश होकर सदा के लिये सो गईं।जाते जाते मुझसे बोली थी मेरी बेटी को हो सके तो उसकी माँ जरूर ला देना। मगर तेरे पापा भी कम नहीं थे दूसरी शादी और दूसरी माँ के लिये तैयार नहीं हुए। तुझमें ही वो सब कुछ देखते थे। तेरी माँ के जाने के बाद वो तेरी माँ के कदमों पर चलने लगे थे। उसके बाद तो वो मसीहा के नाम से प्रसिद्ध होने लगे। मगर तेरे पिता की आराध्य तेरी माँ ही रही। वो उसे भूल ही नहीं पाए।नेहा के आँसुओ के साथ साथ
नेहा का दर्द भी अब पिघलने लगा था।उसे अब पापा के जाने का दुःख नहीं हो रहा था क्योंकि उसके पापा उससे दूर नहीं माँ के पास जा रहे थे। आज उसके अंदर पापा को अलविदा कहने की हिम्मत जाग रही थी। उसने अपनी बुआ से कहा बुआ मैं अब माँ की तरह एक अच्छी इंसान और पापा की तरह एक अच्छी डॉक्टर बनुंगी। बुआ भी उसे उत्साहित देखकर खुश हो गईं। उन्हें भी लगा तीर सही निशाने पर लगा है।नेहा वहाँ से उठी और माँ पापा दोनों की फोटो के आगे कुछ पुष्प समर्पित कर बोली। पापा मुझे तुम पर गर्व है। मुझे आज समझ आया कि लोग आपको मसीहा क्यों बुलाते थे? आज से मैं भी तुम्हें मसीहा बुलाऊंगी।और हाँ उस दिन तो मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं आपको अलविदा कह सकूँ। मगर आज मैं तुम्हें तहे दिल से जरूर अलविदा कहूंगी।अलविदा पापा, अलविदा। आप दोनों के आर्शीवाद से मैं वो बनुँगी जो आप दोनों बनाना चाहते थे। आप दोनों जहाँ भी रहे खुश रहे। और ज़ब में दुबारा जन्म लूँ तो आप दोनों फिर मुझे माँ पापा के रूप में मिलें।
अलविदा माँ,अलविदा पापा।
@vineetakrishna