हीर तेज कदमों से अम्बिका के पास आई और बोली मैम आपको एक जरूरी बात बताना है। मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा की आप लोगों के अलावा और भी कोई मेरा शुभचिंतक है। हीर के चेहरे पऱ आश्चर्य और ख़ुशी के मिश्रित भाव उभर कर नज़र आ रहे थे।
अम्बिका ने मुस्कराते हुए कहा.आराम से .बैठो हीर..और बताओ कौन है वो शुभचिंतक?
हीर बोली पहले मैम आप बताओ कौन हो सकता वो?
अम्बिका बोली घरमें या ऑफिस में? हीर बोली घर में मैम।
अम्बिका काम छोड़कर उस शुभचिंतक के बारे में सोचने लगी और बोली तुम्हारे मम्मी पापा तो शुभचिंतक हैं पऱ उनके हाथों में अब कुछ नहीं है। भाभियाँ तुम्हें अब और ऊँचा उठते देख नहीं सकती। भाई भाभियों के कहने में चलने लगे हैं। अब घर में कौन बचा है बच्चे या घर में काम करने वाले कर्मचारी?
बच्चे तो ये काम कर नहीं सकते। किसी कर्मचारी को ही लगता तुम तरस आ गईं। बड़े बड़े घरों में काम करते हैं ये लोग। कोई नज़र में आया होगा। बता सही या गलत?..हीर बोली..नहीं मैम नहीं कर्मचारी भी नहीं हैं।इस वक़्त हीर का चेहरा बहुत खास दिख रहा था। चेहरे पऱ गुलाबीपनके साथ साथ खुशी भी दिख रही थीं।
अम्बिका बोली ... तो क्या बच्चे? बच्चे नहीं मैम..बच्चा..मेरा बेटा ध्रुव...हीर बोली।
इस बार चौंकने की बारी अम्बिका की थी। क्या कह रही हो हीर? विश्वास ही नहीं हो रहा।वो तो अभी ये सब करने लायक भी नहीं है।बहुत छोटा है।
वहीं तो आश्चर्य हो रहा मैम।
अम्बिका.बोली ..तुम तो उसी के भविष्य को लेकर कितनी चिंतित हो रही थी और उसी डर के मारे अपनी जिंदगी का फैसला लेने में पीछे हो रही थी । आज वही तुम्हारे कमजोर मनोबल का सहारा बन कर खड़ा हो रहा है। बहुत बड़ी बात है हीर।
तुम हमेशा यही सोचकर ती पीछे हट जाती थीं कि उसके बालमन पऱ पता नहीं क्या असर होगा। दूसरे व्यक्ति को वो अपना पायेगा या नहीं? या फिर वह दूसरा व्यक्ति उसे पिता का प्यार दे पाएगा या नहीं? दोनों हो स्तिथियां तुम्हें नई जिंदगी कि शुरुआत करने कि परमिशन नहीं दे रही थीं।
हीर के पति अजय छह वर्ष पहले ही कूलर में करेंट आने कि वजह से इस दुनिया को छोड़ कर चल बसें थे। हीर कि तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई थी। तब ध्रुव सिर्फ चार साल का था। उसे समझ ही नहीं आ रहा था इतनी बड़ी जिंदगी अकेले कैसे निकलेगी वो।
ससुराल वालों ने ये कहकर मना कर दिया था कि उनके बूढ़े कंधो पऱ ये बोझ नहीं उठेगा।उसे अपने पिता के घर ही जाना होगा। साथ ही अजय कि सर्विस अगर उसे मिले तो भाइयों से कहकर प्रयास कर लगवा लेना तथा ध्रुव कि भी परवरिश कर लेना। हम तो बेटे के गम में न तुम्हारा ध्यान रख पाएंगे और नहीं ही ध्रुव का। तब हीर के पिता को ये सुनकर दुःख तो बहुत हुआ था पऱ हीर को अपने संग घर ले आये थे।
भाइयों ने बहन कि नाजुक स्तिथि को देख उसकी सर्विस मेहनत करके संविदा पऱ लगवा दी थी।
हीर ज़ब पहले दिन ऑफिस आई तो किसी अच्छे खानदान कि सीधी सादी, गोरा रंग,अच्छी कद काठी और सुंदर नैन नख्श वाली दिख रही थी।पऱ बिना सिंदूर और बिंदी का सूना माथा उसके ज़ख्म और दर्द को भी दर्शा रहा था।
पहले ही दिन हीर को अम्बिका के संग काम करने का मौका मिल गया था । अम्बिका तो एक ही नज़र में उससे प्रभावित हो गईं थी।ऊपर से उसके संग हुआ हादसा भी उसके लिये सदभावना प्रकट कर रहा था। ज़ब अम्बिका ने हीर से अजय कि दुर्घटना और उसके घर के बारे में जानकारी ली तो वो हीर के लिये बहुत दुखी हुई। उसे लगा अभी तो हीर कि उम्र बहुत कम है उसे दूसरी जगह सेटल हो जाना चाहिए।जितना लेट होगी उतनी ही दिक्क़त बढ़ेगी।ध्रुव और बड़ा हो जायेगा.।
हालांकि हीर का मन इस बारे में पहल करने का बिल्कुल नहीं होता था।उसने तो सब ऊपर वाले पऱ ही छोड़ रखा था। उसका सोचना था ज़ब ऊपर वाले ने उसकी खुशियाँ छीनी है तो वही वापस भी करेगा। पऱ इतनी बड़ी जिंदगी को लेकर उसके मन में असुरक्षा कि भावना कभी न कभी आ ही जाती थी।
वो जानती थीं कि समय के साथ साथ सब कुछ बदलने लगता है.। रिश्तों में वो चीज नही रह जाती जो बचपन में माँ बाप के समय रहती है।सब अपने लिये व अपने परिवार के लिए जीने लगते हैं।
हीर कि तो बात ही अलग थी। लाखों में एक थी हीर।जहाँ पाँव रखती वहाँ लक्ष्मी खड़ी हो जाती और बोलती तो सरस्वती जैसी मधुर बीणा और मुँह से फूल झरते दिखाई देते और अगर कोई निगाह डालने कि कोशिश करता तो बातों ही बातों में फटाक से राखी बांध देती। मुँह बंद और निगाह सीधी हो जाती।
कुछ ही दिनों में हीर ने अपने मधुर व्यवहार से लोंगो का मन जीत लिया था। किसी भी चीज के लिये न करना तो जैसे उसने सीखा ही नहीं था। उदार मन, दानवीर, सज्जनता, ईमानदारी जैसे गुण कूट कूट कर भरे थे हीर में। सबको अपने चरणों का पुजारी बना लिया था उसने। सभी के मन में उसके लिये एक अच्छी भावना स्थापित ही चुकी थी। दिनों दिन तरक्की भी तेजी से कर रही थीं।
अब घर के लोंगो से उसकी तरक्की झेली नहीं जा रही थीं उन्हें अब हीर का दुःख नहीं सता रहा था उसके आगे बढ़ने कि चिंता सता रही थी। वो अब हीर के लिये किसी तरह कि कोई ख़ुशी नहीं देना चाहते थे न ही प्रयास करना चाहते थे।
हालांकि हीर अपने घर के लिये भी एक मज़बूत स्तम्भ कि तरह थीं। घर के किसी भी सदस्य के लिये हमेशा तन मन धन तीनों तरफ से समर्पित रहती थीं।
हीर के माता पिता अब इतने सक्षम नहीं थे कि हीर के लिये दूसरा घर वर ढूढ़ने का प्रसास करें.। पऱ बेटी का घर बस जाये ये चाहत उनके मन में जरूर रहती थी।
भाइयों ने तो भाभियों के कहने पऱ हाथ खड़े कर दिये थे पऱ अम्बिका और उसकी सहेलियाँ उसका घर बसाने के लिये हमेशा उत्सुक रहती थीं तथा प्रयास भी करती थीं।
पऱ अभी तक कोई सफलता हाथ नहीं लगी थी।
आज हीर के मुँह से ये शब्द सुनकर अम्बिका अचभित हो रही थीं कि उसका बेटा ही अब उसके लिये प्रयास कर रहा है। उसका मन हीर व उसके बेटे के लिये पसीजने लगा था।साथ ही ख़ुशी से भीग गया था।
ध्रुव अभी दस वर्ष का ही तो था। मगर अपनी माँ का दुःख कहीं न कहीं उसे सताता था। वो भी अपनी माँ कि तरह एक असाधारण बच्चा था।मम्मी व उसके संग हो रहे बर्ताव पऱ पैनी नज़र रखता था वो। हर चीज और हर बात तुरत पकड़ लेता था। ज़ब वो अपनी मामियों को तैयार होते देखता तो कहता मम्मी आप भी ऐसे तैयार हुआ करो। आप इन सबसे सुंदर हो। आप भी शादी कर लो फिर इन लोंगो कि तरह भर भर हाथ चूड़ियाँ, बिंदी , सिंदूर और अच्छे अच्छे कपड़े पहन सकोगी। आप हमेशा सिम्पल ही क्यों रहती हो।तब हीर ध्रुव को गले लगा लेती और कहती मुझे हमेशा अपने ध्रुव के साथ ही रहना है तथा मम्मी और पापा दोनों का ढेर सारा प्यार भी करना है। तब ध्रुव चुप हो जाता।
आज पता नहीं बैठे बैठे उसके मन में क्या विचार आया शायद सोच रहा होगा कि उसकी माँ के बारे में अब कोई कुछ नहीं सोचेगा सब अपनी अपनी दुनिया में मस्त हैं। उसे ही कुछ करना पड़ेगा। उसने मोबाइल उठाया और जीवन साथी डॉट कॉम खोलकर बैठ गया और मम्मी को फ़ोन करके पूँछ रहा कि मम्मी आपके मोबाइल पऱ कोई ओटीपी आया होगा बताना जरा। हीर पहले तो कुछ समझी नहीं सोचा स्कूल का कोई काम कर रहा होगा। उसने ओटीपी ध्रुव को बता दिया। पऱ ज़ब उसकी निगाह मेसेज पऱ गईं तो धक्क रह गईं। ये तो जीवन साथी डॉट कॉम का ओटीपी था। उसके मन से ढेरों सबाल जबाब आने जाने लगे थे।साथ ही ध्रुव के लिये ढेरों दुआएं भी निकलने लगी थी । उसकी माँ होने का गर्व भी हिलोरें लेने लगा था। यही बताने वो अम्बिका के पास भागी चली आई थी।
ध्रुव अपने लिये पिता और माँ के लिये जीवन कि ख़ुशी अपने हाथों से देना चाहता था।माँ बच्चों के लिये तो सब कुछ न्योछावर करती है पऱ एक छोटा बच्चा अपनी माँ के लिये इतना बड़ा उपहार जीवन पर्यन्त देने का प्रयास कर रहा है। ऐसा शुभचिंतक अम्बिका ने आज तक न हीं सुना था न हीं देखा था और न ही पढ़ा था। उसे लग रहा था कोई सफल हुआ हो या नहीं।पऱ ये बालगोपाल ऊपर वाले बालगोपाल को जरूर मना लेगा तथा इसमें सफल हो जायेगा। आखिर हीर का बेटा था हीरा तो निकलना ही था। उसे विश्वास था कि ध्रुव हीर के लिये राँझे को ढूंढ निकालेगा। अम्बिका हीर को पीठ ठोक कर बधाई दे रही थी तथा हीर भी हाथ मिलाकर मुस्करा कर बधाई ले रही थी।
@ vineetagupta
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