मोबाइल में बजती अलार्म की घंटी ने शिखा को जगा दिया था। शिखा का नियम था जैसे ही वह सुबह उठती पलंग पऱ बैठे बैठे ही अपने दोनों हाथों के दर्शन कर "ॐ कराग्रे बसते लक्ष्मी,कर मध्ये सरस्वती,कर मुले स्तिथो ब्रम्हा,प्रभाते कर दर्शनम "मंत्र बोलकर व धरती के पैर छूकर ही जमीन में पैर रखती थी।
इसके बाद मोबाइल को चार्जिंग में लगाकर अपनी नियमित दिनचर्या शुरू करने में लग जाती थी।
अभी कुछ दिनों से प्रतिलिपि एप्प से जुड़ होने के कारण एक नजर दैनिक चर्चा में पूंछे गए प्रश्न तथा अनोखे विषय पऱ दी गईं कहानियां पऱ जरूर डाल लेती थी।
दोनों में ही उसकी विशेष रूचि थी। आज ज़ब उसने प्रतिलिपि एप्प पऱ पूँछा गया प्रश्न व कहानी का विषय देखा तो उसे कोई रूचि नहीं थी उसमें।प्रश्न था..नौकरी करना क्यों जरूरी है? प्रश्न कुछ अधूरापन लिये लग रहा था.।पहले तो उसे लगा पूंछू किसकी? लड़कों की या लड़कियों की? फिर समयाभाव के कारण उस प्रश्न का जबाब देना जरूरी नहीं समझा और कहानी के विषय पऱ आ गईं।
आज की कहानी का विषय था "भूतिया ट्रेन "। विषय देखते ही मोबाइल बंद कर बगीचे में घूमने चली गईं और सोचने लगी आज के विषय पऱ तो वो दो शब्द भी नहीं लिखे जा सकते क्योंकि उसका विश्वास भूतों में तो था नहीं वो तो ईश्वर प्रेमी थी।
यही सोचते सोचते वोअपने बगीचे में टहलने लगी और कब विचारों की भूतिया ट्रेन की चपेट में आ गईं पता ही नहीं चला।
अचानक उसे लगा उसकी बहन का अर्जेंट फ़ोन आया है.. दी आज रात की ट्रेन से ही पटना आ जाओ। सासो माँ की तबियत अचानक बिगड़ गईं है।मुन्नी को घर पऱ देखने वाला कोई नहीं है अमित इतनी जल्दी नहीं आ सकते। कोहरे की वजह से सारी फ्लाइट कैंसिल हो गईं है। मेरा बहुत जी घबरा रहा है।राहुल को साथ ले आना..एक आध सप्ताह लग सकता है।एक ही सांस में बहन ने अपनी सारी बात कहकर फ़ोन काट दिया।
इधर शिखा की धड़कने बढ़ने लगी। वो तेजी से अपने पति के पास गईं और बोली मुझे आज रात की ट्रेन से ही पटना निकलना होगा प्रभा बहुत परेशानी में है। पति को प्रभा की समस्या बताकर शिखा अटेची में सामान पैक करने में लग गईं और पतिदेव मोबाइल में रिजर्वेसिन ढूढ़ने में ।आनन फानन में स्लीपर में उसको रिजर्ववेशन मिल गया। कोहरे की वजह से ट्रेन भी कई रद्द हो गईं थी। बस यही एक लास्ट ट्रेन थी जिसमें उसे रिजरवेशन मिला था।अपना सारा सामान पैक कर शिखा रात 10बजे करीब अपने 5वर्षीय बेटे राहुल को लेके पति के साथ स्टेशन जा पहुंची। गाड़ी का नंबर था 8946।
वह और उसके पति ट्रेन के आने का इंतजार करने लगे। थोड़ी ही देर में ट्रेन की सीटी सुनाई दी और गाड़ी प्लेटफार्म पऱ आ कर ख़डी हो गईं । शिखा के पति ने सामान उठाया और उसकी बर्थ पऱ रखवाकर उससे बोले सुबह घर पहुंचते ही फ़ोन कर देना। सामान रखवा कर पतिदेव घर निकल गए और शिखा अपना सामान सेट करने में लग गईं.।थोड़ी ही देर में ट्रेन ने रफ्तार पकड़ ली । शिखा ने राहुल को बर्थ पऱ सुला दिया। और जैसे ही वह अपनी सीट पऱ लेटने को हुई सामने की सीट पऱ बैठे काले रंग के अजीब सी शक्ल सूरत के बुड्ढे बुड़िया ने एक स्माइल पास की। उसने भी न चाहते हुए स्माइल पास कर दी।अँधेरी रात और अकेले होने की वजह से वो भी जल्दी सो जाना चाहती थी।मगर उस बुढ़िया ने दूसरा प्रश्न दाग दिया कहाँ जा रही हो बेटी..? इस बार शिखा को गुस्सा आने लगा था।फिर भी किसी तरह खुद को कंट्रोल कर बोली..पटना। और फिर राहुल को सीने से चिपका कर पलट कर चादर तान कर सोने की कोशिश करने लगी. मगर नींद कोसों दूर हो गईं थी। उसे लगा दोनों बुड्ढे बुढ़िया अभी भूत भूतनी में परिवर्तित हो जायेंगे । कहीं वो गलत ट्रेन में तो नहीं चढ़ गईं। उसने गाड़ी का नंबर सही देखा या नहीं? तमाम प्रश्न उसके दिमाग़ में चलने लगे थे।ऐसा तो नहीं ये भूतों की ट्रेन है।सारी ट्रेन में ऐसे ही लोग भरे पड़े हैं.।थोड़ी देर में फिर किसी ने उसके पैरों को थपकी दी। इस बार वो कन्फर्म हो गईं थी की वो जरूर किसी भूतिया ट्रेन में चढ़ गईं है। मगर अब कुछ नहीं हो सकता था। उसे अकेले ही इतने सारे भूतों से लड़ना था तथा राहुल को भी बचाना था।
उसने किसी तरह धक धक करते हुए धीरे से चादर से मुँह बाहर निकाला तो टीसी खड़ा था।वो भी मुस्कराते हुए उससे बोला टिकिट दिखाइए मैडम अकेली हैं या कोई और है साथ में? उसने बिना किसी एक्सप्रेशन के पर्स से टिकिट निकाला, दिखायाऔर फिर करवट कर मुँह ढक कर लेट गईं।मगर उसका पूरा शरीर पसीने से तर तर हो रहा था।उसे लग रहा था इस ट्रेन का हर आदमी अजीब शक्ल का है और हँस रहा है।अगले स्टेशन पऱ गाड़ी रुकी तो ढेरों लोग शोर शराबे के साथ गाते बजाते चढ़े। किसी की पायल की आवाज,तोकिसी की ढोलक की, तो किसी के तालियों की आवाज उसके कानों में पड़ी। वो समझ गईं अब जरूर ये भूतों की फ़ौज चढ़ी होगी । उसका राम नाम तो आज सत्य है।
उसे अब हनुमान चालीसा भजने के अलावा कुछ दिखाई नहीं दिया।वह मन ही मन..जय हनुमान ज्ञान गुन सागर.. भजने लगी और कब नींद लग गईं पता ही नहीं चला। मगर भूतों ने उसका पीछा सपनों में भी नहीं छोड़ा। उसे लगा कोई दो हाथ उसका चादर खींचने की कोशिश कर रहे हैं। वो पूरी ताकत से राहुल और अपने को ढकने की कोशिश कर रही हैं।मगर राहुल को बचा नहीं पा रही
।दो हाथ उसका गला दवाने आगे बढ़ रहे हैं। वो चीख रही हैं ,चिल्ला रही है, उसका गला रुंध रहा है.पऱ उसकी आवाज शोर की वजह से लोंगो तक नहीं पहुंच पा रही है और वह राहुल को बचाते बचाते सीट से नीचे गीर गईं है। आँख खुली तो राहुल और खुद को सीट पऱ देखकर जान में जान आ गईं।
वो और आगे सोचने ही वाली थी कि गेट पऱ बजी घंटी ने उसे भूतिया ट्रेन से झटके से बाहर उतार दिया था ।उसने देखा वो तो बगीचे में ही टहल रही है।उसेअपनी ऊपर हँसी आ रही थी।इसका मतलब वो इतनी देर से विचारों की भूतिया ट्रेन में सफर कर रही थी। आज उसे समझ आ रहा था अगर इंसान निगेटिव सोच रखे तो भूतिया ट्रेन के सफर का और पॉजिटिव सोच रखे तो ईश्वरीय ट्रेन के सफर का मजा ले ।रोज तो वो पेड़ पौधों से बातें, चिडियों कि चुहु चुहु, कोयल कि कुहू कुहू,ठंडी ठंडी बह रही हवा और कुछ मंत्रो का जाप करती थी।फिरहाल उसने आज बिना इधर उधर देखे सुने सुबह का आध घंटा उस भूतिया ट्रेन में सफर किया था। जहाँ भूतों कि आवाज के अलावा उसे कुछ सुनाई नहीं दिया था और जिसके बारे में वो दो शब्द भी नहीं लिख सकती थी उसी भूतिया ट्रेन की पूरी कहानी लिख डाली। आज का सफर उसे अनोखा सफर लग रहा था।
@vineetakrishna