कहानी का विषय "नृत्याँगना "पढ़ते ही गरिमा के अंदर से आवाज आई...इस विषय पऱ आज फिर कुछ नहीं लिखा जा.....। अभी वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था कि जग की सबसे बड़ी नृत्याँगना माँ दुर्गा की मूर्ति उसकी आँखों के आगे नाच गईं। सारा संसार जिनके इशारों पऱ नाचता है उनका ख्याल आते ही गरिमा का सिर श्रद्धा से शत शत नमन के लिये उनके आगे झुक गया ।
सौभाग्य कि बात ये थी कि आज से ही गुप्त नवरात्रि का पर्व शुरू था।साथ ही आज गरिमा कि शादी को पूरे बत्तीस वर्ष हो गए थे।अतः भरपूर ऊर्जा से ओत प्रोत होकर आज वह माँ दुर्गा का आर्शीवाद भी लेना चाहती थी। चूंकि उसका विश्वास मन वचन और कर्म की पूजा में ज्यादा था अतः उसने सबसे पहले अपने बगीचे में जाकर सारे पेड़ पौधोंके अगल बगल का कूड़ा करकट साफ कर उन्हें अच्छे से नहलाया, पक्षियों को दाना डाला, साथ ही योगा प्रणायाम करते करते झूमते लहराते पेड़ पौधों से ढेरों बातें की।
उसे लग रहा था जैसे वो सब आज बहुत खुश हैं और कह रहे हैं बहुत दिनों बाद आज अच्छे से नहाया है तो तन और मन दोनों हल्का हो गया । पेड़ पौधों को मुस्कराता हुआ देख गरिमा भी मन ही मन मुस्करा उठी थी तथा ऊर्जावान महसूस करने लगी।
साथ ही यह बजी सोचती जा रही थी...इसमें उसका क्या है?आज जो कुछभी वो कर रही है उन्हीं के वजह से ही तो कर पा रही है। वरना दुनिया ने उसकी सरलता सहजता,सच्चाई को उसकी बेबकूफी मानकर जो नाच नचाया था कि जीवन पर्यन्त वो उसे चाहकर भी नहीं भूल सकती। उस नाच ने उसे कमजोर,असहाय,और मजबूर कर किसी गड्ढे में गिरा दिया था। तब शायद इसी शक्ति ने अपना सहारा देकर उसे बाहर निकाला था और गले लगा लिया था।तब से वो दुनिया को छोड़ सिर्फ इनके इशारों पऱ नाचने लगी थी।मगर सृष्टि की नृत्याँगना द्वारा द्वारा नचाये गए नाच में उसे भरपूर आनंद आ रहा था।उसेआत्मसम्मान से जीना आ गया था।उसका मनोबल बढ़ रहा था तथा पूरी तरह से अपने आपको सुरक्षित व ऊर्जावान महसूस कर रही थी।
थोड़ी ही ढेर में गरिमा वहाँ से उठी और अपनी दैनिक दिनचर्या निपटाकर, नहाधोकर पूजा कक्ष में आ गईं।सबसे पहले माँ दुर्गा की फोटो पऱ जल छिड़कर गुलाबी रंग की चुनरी उड़ाई,बगीचे से तोड़कर लाये गए कुछ रंग बिरंगे पुष्पों से उनका श्रृंगार किया,माँ द्वारा बनाई गईं प्रसाद स्वरूप खीर का भोग लगाया। दिया और धूपबत्ती से मंदिर को सुगंधित व प्रकाशमय किया। फिर आँख बंद कर देवी जी का ध्यान कर ढोलक मजीरा के साथ आरती भजन कीर्तन कर थोड़ा सा नृत्य किया और हाथ जोड़कर आर्शीवाद के तहत अपना सिर उनके चरणों में रख दिया।
माँ का आर्शीवाद पाकर आज वो बहुत खुश नज़र आ रही थी। वो अपने चेहरे पऱ तेज, आँखों में चमक, शरीर में शक्ति और मन में भक्ति महसूस कर रही थी।इससे बड़ा आर्शीवाद और क्या हो सकता?ये सोचकर गरिमा सृष्टि की नृत्याँगना के सामने मुस्कुराती हुई हमेशा नाचनेके लिये दण्डवत ख़डी थी।
@vineetakrishna