जय श्री कृष्णा 🌹
रागिनी अपने घर में छाये ग्रहों की महादशा से परेशान हो गई थी। आखिर सारे के सारे गृह उसके घर में वक्री होकर क्यों बैठ गये थे ? वो ग्रहों को समझने औऱ पूजने का पूरा प्रयास कर रही थी पर परिणाम असफल ही आ रहा था।
न तो उसने कभी अपने मायके में ग्रहों को पूजते पापा मम्मी को देखा है औऱ न ही ससुराल में सास ससुर ज़ी को। अतः उसका विश्वास भी सिर्फ महाशक्ति में था। वो ग्रहों को नाम से तो नहीं पूज रही थी पर काम ग्रहों के हिसाब से ही करती थी। उसे कुदरत के नियमानुसार काम करने बेहद पसंद था औऱ पापा से मिले हुए कर्म भूमि का ज्ञान उसकी नसों में बह रहा था।
उसका सोचना था हमारा हाथ जगन्नाथ। इसी से सब कुछ किया जा सकता है। बाक़ी बातें फालतू की हैं। पर सब कुछ उसके पास होते हुए भी वो बार बार फेल हो रही थी। आखिर वो दिन भी आ गया ज़ब बाहर के लोगों ने ग्रहों को औऱ कुंडली को कर्म से ऊपर रख दिया।
मरती क्या न करती चल पड़ी कुंडली दिखाने, ग्रहों का हेर फेर पता लगाने। ज्योतिषी विज्ञान के अनुसार सारे के सारे गृह वक्री निकले राहु केतु की महादशा निकली।
वो सोच रही थी ये तो उसे सब कुछ पहले से ही पता था।ज्योतिषी ज़ी ने अलग क्या बता दिया? पर थोड़ी ही देर में उन्होंने रतनों औऱ तावीज पहनाने की बात रख दी। एक लम्बी लिस्ट मोती चांदी में, पुखराज सोने में ,नीलम चांदी में, शनि की महादशा के लिये घोड़े की नाल औऱ लोहे का छल्ला औऱ भी रत्न किस ऊँगली में, कितने ग्राम के औऱ कब पहनना है पकड़ा दी।
लिस्ट देखकर घुमा हुए सिर औऱ घूम गया। वो सोचने लगी लिस्ट अभी हाथ में भी नहीं आई तब ये दशा? ज़ब इसका प्रयोग करेंगे तब कौन सी दशा शेष रह गई है बिगड़ने को?
खैर लिस्ट लेकर घर वापस आ गई।पति देव ने भी आनन फानन में सारे रत्न औऱ तावीज बनबा डाली। एक सप्ताह बाद उनको पहनने का मुहूर्त भी आ गया। सबने नहा धोकर दिन,समय, दिशा देखकर पहनना शुरू कर दी। पति देव ने तो सारी की सारी अंगूठी अपने हाथ में पहन ली क्योंकि घर के मुखिया तो वही थे।वहीं से सबकी दशा जुडी हुई थी।
रागनी के हाथ में भी एक मोती की अंगूठी औऱ लोहे का छल्ला आ गया औऱ बच्चों को तावीज पहना दी गई। जो व्यक्ति कुछ भी न पहनता हो औऱ उसे इतने सारे रत्न पहना दो तो उसका सारा समय तो रतनों को सम्भालने में ही लग जायेगा। मतलब एक औऱ समस्या शुरू। रत्नो औऱ तावीज को पहने सप्ताह भी नहीं हो पाया कि बच्चों को शरीर पर दाने निकलना शुरू हो गये।
फिर ज्योतिषी के पास दौड़े ज्योतिषी ज़ी ने अपना उवाच देना शुरू किया। सब सही दिन, सही तरीके से तो किया था? जैसा बता रहे हैं वैसा ही करना वरना इसका उल्टा असर भी हो सकता है। रागनी को लगा कह दे सारा कुछ आपके सामने आपके घर में ही करें क्या? पर चुप रहने औऱ वहाँ से निकलने में ही भलाई समझी।
घर आकर पतिदेव ने सारे के सारे रतनों को उतारा बस एक चांदी का छल्ला बीच कि ऊँगली में डाल लिया औऱ बच्चों कि तावीज भी निकाल कर तालाब में बहा दी। रागनी मोती अपने हाथ में मन कि शांति के लिये डाले रही ये सोचकर कि मोती ठंडा ठंडा होता है।
ज्योतिषी विज्ञान ने एक औऱ ग्रह जो नहीं था उसको भी घर में घुसा दिया था।शारीरिक बीमारियों कि दशा भी शुरू होने वाली थी मानसिक बीमारियों के साथ साथ यानि कोढ में खाज। या फिर पहले शारीरिक बीमारियां लाती घर में औऱ फिर उससे मानसिक बीमारियां खत्म करती। तौबा तौबा...।
अब उसे वापस उसी पथ पर चलने का मन हो रहा था जहाँ वो पहले थी। यानि सर्वशक्ति को पूज रही थी। सिर्फ उसकी ही दृष्टि ऐसी थी जो सब कुछ वक्री होने के बाद भी आशा कि किरण बनाये हुए थी।रागनी औऱ उसके पति को विश्वास था कि एक न एक दिन वो दोनों सारी ग्रहदशा पर विजय पा लेंगे औऱ फिर उसके घर राम कृपा बरसेगी। वो लोग फिर से ग्रहों की महादशा से कोसों दूर हों गए थे।
@ vineetakrishna