बात यहां से शुरू होती है एक बार मेरे पड़ोस की बहु मेरे घर किसी काम से आई तो थोड़ी देर बैठ ली। बातों बातों मेंअपनी आप बीती सुनाने लगी।ऑन्टी मेरे पापा ने तो पूरा घर सर पर उठा लिया। मैंने पूँछा क्यों क्या हुआ? तो बोली अगर मेरे घर में किसी को छींक भी आ जाये तो समझ लो आदमी और छींक दोनों की तो नौबत आ गई। आई तो आई कैसे वो घर में और वो भी बिना दादाजी के पूंछे? उसकी इतनी हिम्मत ? घर के कायदे क़ानून भी होते हैं कुछ।
बाकायदा पूँछ पांछ के,घंटी बजाके, हाथ जोड़के, पैर पड़के, अनुमति लेके, क्या में आपके घर आ सकती हूँ? ऐसा बोलकर आना चाहिए था उसे। ये क्या बिना बताये घर में घुस आई? ऐसे आता है कोई किसी के घर? गलती की है तो इसकी सजा भी जरूर मिलेगी। छींक को और छीकने वाले को भी। अरे दोनों को सजा मिले तो भी ठीक है।पर यहाँ तो पूरे के पूरे खानदान को उस छींक का मर्डर कराने में लगा देते हैं। वो अपने पूरे सुर में बोले जा रही थी।
सुबह सुबह तुलसी अदरक काली मिर्च लौंग का काढ़ा देना। खाने में चावल मत देना ठंडा होता है। शाम को लोहे की कढ़ाई में दूध उबालकर हल्दी डालकर देना और रात में सोते समय इसके पैरों में गर्म तेल और सीने में विक्स मल देना। और कुछ दवाइयां मैं लेकर आ रहा हूँ डॉक्टर से बात हो गई है मेरी। पहले मैं homiopethik इलाज कराऊंगा। अगर उससे आराम नहीं मिला तो आयुर्वेदिक और सबसे लास्ट में allopethik क्योंकि इसमें रिएक्शन का खतरा रहता है।
मम्मी ज़ब चिढ़ जाती हैं तो कहती हैं।.एम्बुलेंस मँगा लो aims चले जाओ। ज़ब aims की नौबत आये तो घर में इलाज कर लेना। पापा मम्मी पर भी चिल्लाने लगते हैं तो वो भी चुप हो जाती हैं। कहते हैं जितना कहा जाये उतना किया करो।बीमारी रखना अच्छी चीज नहीं है। एक बार ठीक हो जाये फिर मुझे कोई मतलब नहीं।
अब बताओ ऑन्टी भला किसी बीमारी की इतनी ताकत जो हमारे घर में घुसे।
कोरोना की ताकत नहीं थी जो हमारे घर आंख उठा के देखता। दरवाज़े पर ही उसकी आंखे निकाल ली जाती। अंधा होकर बेचारा क्या करता? न घर का रहता न घाट का।और अगर धोखे से देख भी लेता तो उसे दरवाज़े से ही काढे की खुशबु और जगह जगह sainitizer और मिनी मेडिकल स्टोर खुले दिखाई देते । उसने सोचलिया होगा इस घरमें जाने से तो मेरी ही अर्थी निकलेगी।यहां अपना निशाना नहीं सधेगा भाग जाने में ही भलाई है।
इतना ही नहीं ऑन्टी अगर छींक आना बंद हो गई तो उसके लिये भी परेशान। अरे जुकाम नहीं निकल रहा। छींक आ जाती तो थोड़ी राहत मिल जाती। छींक की तो ऑन्टी बहुत बुरी हालत है। न मरे चैन न जिए चैन।
अभी अभी कुछ दिनों से उसकी बेटी को (जिसे सब प्यार से छुटकी कहते हैं ) के पूरे शरीर में छोटे छोटे दाने निकल आये थे। हर सप्ताह डॉक्टर भी बदल रहे थे पर उसे आराम नहीं मिल रहा था। पड़ोसन भी खूब देखभाल कर रही थी ।किसी ने कहा छोटी माता तो किसी ने कहा बड़ी माता। वो देवी ज़ी को जल बगैरह भी चढ़ा रही थी । क्योंकि उसको इसमें कोई ज्यादा बुराई नज़र नहीं आती थी । दवा के साथ साथ अगर दुआ हो तो दवा भी जल्दी असर करती है।
दाने कभी उभरे तो कभी दबे दिखाई दे रहे थे.।डॉक्टर का कहना था की अपने आप ठीक हो जायेंगे.।
पर दादाजी को कहाँ चैन? हर दूसरे व्यक्ति से सलाह लेना शुरू कर दी थी । जितनी सलाह मिली उतनी घर में लागू होना शुरू हो गई। घर का हर व्यक्ति परेशान हो गया। छुटकी का कष्ट भूलकर सब अपने को बचाने में लग गए थे।
बहु ने बताया ऑन्टी पापा इस बीमारी को सही करने के लिये कॉटन का बहुत बड़ा सफ़ेद थान लाये हैं। कह रहे हैं छुटकी को यही बिछाओ यही उड़ाओ और मैं ढेर सारे झबले बनबाकर दे रहा हूँ यही पहनाओ। मैंने तो मम्मी को मना कर दिया।मैं इतना तो नहीं कर सकती.।न ही मैं ऐसे कपड़े छुटकी को पहनाउंगी । मुझे उसकी बातों पर बहुत हंसी आ रही थी.। मगर वो सच में परेशान थी.। मैंने कहा मम्मी को बोला करो ... तो बोली पर ऑन्टी पापा मम्मी की भी सुनते कहाँ हैं? मैंने कहा तुम छुटकी को दादाजी को ही दे दो और कहना ज़ब ठीक हो जाये तब हमें दे देना।वो भी हंसने लगी और चली गई।
यही सब बातें मैं ऑफिस में सहेलियों को बता रही थी। उन लोगों को भी बहुत हंसी आ रही थी।बोली मैम इस पर आप एक कहानी लिखो छुटकी के दाने। टाइटल मेरे मन को छू गया। मैंने कहा देखती हूँ.।तभी दूसरी सहेली बोली छुटकी के दाने, दादाजी चले मिटाने।
लाइन में संपूर्णता और सुंदरता दिखाई दी। शाम को घर आते ही चाय पीकर बैठ गई लिखने। कैसी लिखी है? ये तो आप लोग ही बता पाएंगे। लिखना तो कुछ और था पर इसी पर लिखने का मन बना लिया तो लिख डाला।
@ vineetakrishna
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