कृष्णा और कावेरी बचपन से ही साथ साथ खेले पढ़े और बड़े हुए थे। दोनों के घर अगल बगल में होने की वजह से दोनों का एक दूसरे के घर खूब आना जाना लगा रहता था। कभी कृष्णा कावेरी के घर जाकर उसके खिलौनों से खेला करता था तो कभी कावेरी कृष्णा के घर खेलने आया करती थी।
कावेरी का घर थोड़ा छोटा था मगर हर चीज व्यवस्थित तरीके से लगी रहती थी। कावेरी के पिता श्याम ज़ी पेशे से पुलिस में थे। उन्होंने अपने घर में गमलों में ही काफ़ी पेड़ पौधे लगा रखे थे तथा करीने से सजा रखे थे । कावेरी की माँ शांति देवी भी घर के कामों को सुचारु रूप से किया करती थी तथा घर में ही तरह तरह के स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर कावेरी के सँग कृष्णा को भी खिलाया करती थी।
कृष्णा को उनके हाथ का खाना बहुत भाता था। इसलिए कभी कभी खेलने के बहाने खाने भी आ जाया करता था। पर कावेरी के पिता को अव्यवस्था जरा भी पसंद नहीं थी अतः कभी कभी कृष्णा को डांट दिया करते थे।
कावेरी कृष्णा के जाने के बाद अपने पिता की शिकायत अपनी माँ से कर देती थी। कावेरी की माँ कावेरी का कृष्णा के प्रति अति लगाव अच्छे से महसूस करती थी और श्यामजी से बच्चों के बीच में बोलने के लिये मना कर देती थी। श्यामजी भी उसकी बात सुनकर चुप हो जाते थे।
इधर कृष्णा के पिता उमाशंकर ज़ी का खेती बाड़ी का काम था। घर भी बहुत बड़ा था और घर में ही कुआँ बगीचा था। खूब खेलने की जगह थी। कोई रोक टोक भी नहीं थी। पर कृष्णा की माँ कौशल्या देवी कावेरी को उसकी नीची समाज की वजह से पसंद नहीं करती थीं।
इधर कृष्णा कावेरी के पिता से डरता था तो कावेरी कृष्णा की माँ से। कोई भी चीज अगर कावेरी छू लेती थी तब तो आसमान सर पर उठा लेती थीं। बहुत ज्यादा सोलह सतरह में विश्वास करती थीं। कृष्णा को भी अपनी माँ का ये व्यवहार कावेरी के लिए अच्छा नहीं लगता था।
पर इस सब के वावजूद दोनों की दोस्ती में कोई कमी नहीं थीं।एक दूसरे के लिये लड़ने मरने को तैयार रहते थे।कावेरी के पिता से तो सारा मुहल्ला डरता था पेशे से पुलिस में जो थे। यही डंडा कावेरी भी मौका पड़ने पर अपने और दोस्तों पर चला दिया करती थी। कृष्णा कावेरी से अपने आप को सुरक्षित महसूस करता था।
अब कृष्णा और कावेरी बड़े होने लगे थे। एक दूसरे के साथ खेलते खेलते दोस्ती प्यार में बदलने लगी थी। कावेरी की माँ शांति देवी ने इसे बहुत जल्दी महसूस कर लिया था। उसने श्यामजी से कहकर कावेरी के लिये एक अच्छा लड़का भी ढूंढ लिया था। ज़ब कावेरी को इस बात का पता लगा तो उसने माँ से अपने और कृष्णा के बारे में जिक्र किया मगर उसकी माँ ने इस कान से सुनकर उस कान से निकाल दिया था । कावेरी ने कृष्णा को भी इस बारे में बताया पर कावेरी के पिता से बोलने की हिम्मत तो किसी में न थी।
कावेरी की शादी श्यामजी ने उच्च पद पर आसीन लड़के हरी से तय कर दी। पर कावेरी इस शादी से जरा भी ख़ुश नहीं थी। उसके तो दिल और दिमाग़ में कृष्णा ही छाया हुआ था। शादी के बाद भी ज़ब कावेरी अपने मायके आती थी तो कृष्णा से मिलने आ जाया करती थी। कृष्णा भी कावेरी से मिलकर बहुत खुश हुआ करता था।
पर अब कृष्णा की माँ की नज़र कावेरी पर रहने लगी थी। वो कृष्णा से कावेरी से मिलने के लिये मना करती थीं। पर न तो कृष्णा ही मानता था और न ही कावेरी ।
कृष्णा की माँ और पिता ने कावेरी के पिता श्यामजी से इस बारे में बात करके कुछ दिनों के लिये कावेरी का मायके आना बंद करा दिया था। और इसी बीच कृष्णा की शादी भी पक्की कर दी।मगर कृष्णा की जिस लड़की से शादी हुई उसमें उसने कावेरी जैसे एक भी गुण नहीं दिखे।
कावेरी जितनी खूबसूरत बाहर से थी उतनी अंदर से भी थी। कृष्णा को जरा सा भी उदास देखकर विचलित हो जाती थी कावेरी और उसके लिये हर वो काम करती थी जिससे कृष्णा खुश हो। इधर जिस लड़की से कृष्णा की शादी हुई थी वो देखने में तो थी ठीक ठाक थी पर जबान की बहुत तेज थी। एक के बदले चार सुनाने की दम रखती थी। कृष्णा को तो जैसे इशारों पर चलाती थी। कृष्णा को उसका ये व्यवहार जरा भी नहीं सुहाता था।उसे रह रह कर कावेरी की याद आती थी। मगर अब कुछ नहीं हो सकता था।
एक दिन कावेरी के पति हरी ने उससे मायके न जाने का कारण पूँछ लिया। पहले तो कावेरी बहुत घबरा गई।पर ज़ब उसने देखा की हरी भी एक बहुत ही सुलझे हुए इंसान हैं उसकी हर बात को गौर से सुनते हैं तथा उसे समझाते भी हैं। उसने अपने और कृष्णा के बारे में सब सच सच बता दिया।
हरी को समझते देर नहीं लगी और बोले तुम मायके जाने की तैयारी करो कावेरी। कावेरी घबरा गई और बोली जैसा आप समझ रहे वैसा कुछ भी नहीं हैं। कावेरी की ह्रदय की धड़कने तेज तेज चल रही थीं उसे एक मिनट के अंदर अपनी सारी दुनिया उजड़ती हुई नज़र आ रही थी। मगर हरी की बात को टाल भी नहीं सकती थी।
उसने अपना सामान पैक किया और हरी के साथ मायके चल दी थी। हरी रास्ते भर कावेरी से इधर उधर की अच्छी अच्छी बातें करता रहा। पर कावेरी को कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। उसे अपने पिता का और कृष्णा के साथ कुछ उल्टा सीधा होने का डर खाये जा रहा था।
आखिर उसका मायका भी आ गया था। अचानक इस तरह से आये बिटिया दामाद को देखकर दोनों ही हक्के बक्के रह गये थे। श्यामजी ने हरी को आदर से बैठाया और अचानक आने का कारण पूँछा तो हरी ने अपनी बात श्याम ज़ी के आगे रख दी। श्याम ज़ी को तो सब पहले से ही पता था। घबरा गये और बोले ये तो बचपन की बातें हैं हो जाती हैं। आगे से किसी तरह की कोई शिकायत नहीं मिलेगी आपको ।
हरी बोला आप मेरे पिता समान हैं। मैं कावेरी को किसी भी दुविधा में या डर में जीते नहीं देख सकता। आप प्लीज एक बार कृष्णा को अपने घर बुला लें। मैं उससे बात करना चाहता हूँ। श्याम ज़ी को दामाद ज़ी की बात माननी पड़ी और कृष्णा को बुला लिया गया।
हरी ज़ी को सामने देखते कृष्णा के हाथ पैर काँपने लगे। हरी ज़ी कुछ बोलते कि कृष्णा ने उनसे माफ़ी मांग ली और आगे से फिर कभी भी कावेरी से न मिलने का वायदा किया।
हरी ने कावेरी को भी कृष्णा के सामने बुला लिया और कहा जो भी बात करनी है आज यहीं कर लो।दोनों ने नज़रें नीचे कर ली थीं । तब हरी ने कहा कृष्णा जो हमारा नहीं हो सकता उसके बारे में हम क्यों सोचें ? प्यार को पा लेना ही सब कुछ नहीं है। प्यार को निभाना सबसे बड़ी पूजा है। जो तुमसे बंध गया है उसे बेहतर बनाओ न कि जो तुम्हारा नहीं हो सकता उसे पाने कि कोशिश में अपना जीवन व्यर्थ कर दो। अगर मेरी बात तुम्हें गलत लगे तो तुम अपनी बात भी कह सकते हो।
कृष्णा ने एक नज़र हरी को देखा और उसके पैरों में गिर पड़ा। बोला प्यार का ये रूप पहली बार देख रहा हूँ इसके आगे तो मुझे अपने प्यार में स्वार्थ कि बदबू आ रही है। उसने कावेरी से कहा तुम धन्य हो जो तुम्हें प्यार खुदा के रूप में पति से मिला। तुम दोनों को ही आज से में अपने मन मंदिर में बैठाकर पुजूँगा। तुम दोनों से बड़ा और कोई भगवान नहीं है मेरा।
हरी ने कृष्णा को गले से लगा लिया था और कावेरी हरी से जाकर गले लग गई थी । श्याम ज़ी ऐसा दामाद पाकर मन ही मन गद गद हो रहे थे तथा कावेरी कि माँ कौसल्या देवी आँचल से ख़ुशी के आंसू पोंछ रही थी।
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