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वर्त्तमान में दिल्ली की सीमा पर चल रहे पंजाब के किसान आंदोलन की जो रूप रेखा है वह एक आदर्श हो सकती है। लम्बे संघर्ष की रणनीतिक तैयारी गजब की है। रसद सप्लाई। थोड़े थोड़े दिन बाद लोगों का घर लौटना और नये लोगो का आकर जुड़ना। मौसम के हिसाब से कपड़ों का इंतजाम। मेडिकल सुविधाएँ। बढ़िया खाने की व्यवस्था। कमाल है। इसके पीछे उच्च कोटि के व्यावसायिक इवेंट मैनेजर या कोई सेवानिवृत फौजी अफसरान हो सकते हैं। आंदोलन में अनेक परिवार शामिल हैं।
आंदोलन के इंतजाम को देखते हुए किसी का भी मन आंदोलन में शामिल होने का हो सकता है।
मुख्यरूप से पंजाब के किसानों को सरकार द्वारा लाये गए तीन कानूनों से शिकायत है और उनकी मांग या कहें जिद हैं इन कानूनों को रद्द किया जाय। यह सही बात है उन्हें कुछ तो दिक़्क़्क़त होगी तब तो इतनी बड़ी संख्या में वे आन्दोलन कर रहे हैं। चाहे जितनी सुखसुविधाएं हो घर जैसा आराम तो नहीं दे सकतीं।
बात ये समझ में नहीं आती कानून संसद में बने ;सारे देश के किसानों के लिए बने। सरकार कहती है कानून किसानों के हित में है फिर भी हर विन्दु पर आंदोलन कारियों से चर्चा करने को तैयार है। सिर्फ एक राज्य के किसानों की मांग पर कानून क्यों वापस लिए जाएँ ?जबकि सरकार कानूनों में आवश्यक बदलाव के लिए तैयार है।
विपक्षी अपना धर्म निभा रहे है। सरकार के हर कार्य का विरोध करना तथा जहाँ और जब भी मौका मिले सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी करना। उनका और किसी बात से लेना देना नहीं लगता।