सी ए ए ,एन सी आर , एन पी ए , डिटेन्शन सेंटर की ए बी सी डी ने देश में कोहराम मचा रखा है । साथ ही शायद मच रहे उत्पात के पीछे मुद्दों की ए बी सी डी न समझना भी है । उपरोक्त मुद्दों पर जिसकी जो राय हो उसका सम्मान करते हुए मैं सिर्फ दृष्टिगत वातावरण की बात करूंगा। इस समय सारी राजनीति निजी और दलगत स्वार्थ से प्रेरित , भ्रम और भय पर आधारित लगती है। कहने के लिये सिद्धान्त देश ,संविधान जैसे बड़े शब्दों का प्रयोग किया जाता है । नज़र अपने अपने वोट बैंक पर होती है । पहले सी ए ए के विरोध में प्रदर्शन प्रारम्भ हुए । इनमें जिस प्रकार हिंसा भड़की उसको कैसे समझा जाये ? हिंसा किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं हो सकती । किन्तु सामान्य मानवीय व्यवहार के अनुसार हिंसा क्रोध ,नफरत ,दुशमनी से उपज सकती है । किसी की कोई जायज मांग लंबे समय से लंबित हो , सरकार के किसी निर्णय से किन्हीं का कुछ छिनने वाला हो या भारी नुकसान होने वाला हो तो क्रोध आ सकता है । क्या नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA=citizenship amendment act) में ऐसा कुछ था ?
सी ए ए, और एन सी आर पर प्रधान मंत्री और गृहमंत्री के वक्तव्य के बाद कुछ संशय कम हुआ तो कुछ लोग एन पी आर पर भ्रम फैलाने और विरोध करने लगे जबकि एन पी आर (नेशनल पोपुलेशन रेजिस्टर) राष्ट्रीय जनहित की नीतियाँ बनाने में सहायता करता है और ये समयान्तर से हमेशा से किया जाने वाला कार्य है जिसका पहले कभी विरोध नहीं हुआ । डिटेन्शन सेंटर को लेकर डराया जा रहा है जैसे वो देश के नागरिकों को प्रताड़ित करने वाला हो और वर्तमान सरकार ही इसे खास तौर से बनवा रही हो । जबकि देश में कुछ जगह डिटेन्शन सेंटर के बनने की प्रक्रिया की शुरुआत कांग्रेस के शासन काल में हो चुकी थी । ये सेंटर गैरकानूनी तरीके से आए विदेशियों को अस्थायी रूप से रखने के लिए है । फिर भी किसी बात पर मतभेद है तो पार्टियों को शांतिपूर्ण विरोध /आंदोलन करना चाहिये और सावधान रहना चाहिये कि शरारती तत्व उनके आंदोलन पर हावी न हो सकें और हिंसा न कर सकें । बात बात पर महात्मा गांधी का नाम लेने वाली पार्टियो को याद रखना चाहिए आंदोलन हिंसक हो जाने की स्थिति में बापू आंदोलन वापस लेने में भी नहीं हिचकते थे ।