बहुत दिनन के, बाद आयी हमका, मोरे पिहरवा की, याद रे ॥1॥ चाँदी जैसे खेतवा में, सोना जैसन गेहूँ बाली, तपत दुपहरिया में आस रे ॥2॥ अँगना के लीपन में, तुलसी तले दीया, फुसवा के छत की, बरसात रे ॥3॥
एक कूप में जैसे फँसी हो ज़िन्दगी; आधी-अधूरी-चौथाई ज़िन्दगी; टुकड़े-टुकड़े बिखरकर फैली हुई ज़िन्दगी। समेटकर सहेजने के प्रयास में कैकेयी के कोप-भवन सी और बिफरती हुई ज़िन्दगी; संवार कर जोड़ने के उध
आँखें बंद की हैं उनको आजमाने के लिए, वो आयेंगे भी या नहीं हमें मनाने के लिए । @नील पदम्
यहु तो विधाता की भली, स्मृति देत भुलाय, नहिं ते विपदा याद कर, जग जाता बौराय । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
स्वप्न यदि कुछ ख़ास कर, तो बढ़ के अपने पास कर, कर जतन, जब तक है दम, अपने पर विश्वाश कर । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
जब कभी ये वतन याद आये तुझे, माटी, ममता, मोहल्ला बुलाये तुझे, दो नयन मूँदना, पुष्प चढ़ जायेंगे, संग मिलेंगी करोड़ों दुआयें तुझे । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
सुन्दर तन तब जानिये, मन भी सुन्दर होय, मन में कपट कुलांचता, तन भी बोझिल होय । (c)@नील पदम्
जो निज माटी से करे, निज स्वारथ से बैर, उसको उस ठौं भेजिए, जित रस लें भूखे शेर।
साँसें कागज की नाँव पर, चलतीं डरत डराए, जाने किस पल पवन चले, न जाने कित जाएँ । (c)@नील पदम्
वक़्त सितम इस तरह, ढा रहा है आजकल, हाथ वायां दायें को, बहका रहा है आजकल ॥ @ नील पदम्
हर वक़्त इसी गम में दुश्मन, ग़मगीन हमारा रहता है, कोई बन्दा कैसे हरदम, यूँ खुशमिजाज रह लेता है। @नील पदम्
मुस्कुराने की आदत छोड़ नील पदम् , खुश रहना भी एक खता है समझो ॥ @नील पदम्
वक़्त गुजरेगा आहिस्ता-आहिस्ता, इसकी सिलवटें हर चेहरे पर होंगी । @नील पदम्
जनाब मासूम जनता है, यहाँ सब चलता है। @ नील पदम्
कोई हुनर में तब तलक कैसे, माहिर हो, पूरी सिद्दत से जब तलक ना, सीखा जाये। “नील पदम् ”
मुनासिब है, ऊंचाइयों पर जाकर रुके कोई, उड़ने का हुनर अगर, बाज से सीखा जाये । @नील पदम्
पत्थर का सफ़ीना भी, तैरता रहेगा अगर, तैरने के फलसफे को, दुरुस्त रखा जाये। @नील पदम्
छोड़ भगौने को चमचा, चल देगा उस दिन । माल भगौने के भीतर, ना होगा जिस दिन ॥ @ नील पदम्
मेरे वश में नहीं है, तुम्हारी सजा मुकर्रर करना । तुम ही कर लो जिरह औ फैसला मुकम्मल कर लो ॥ @नील पदम्
एक नौ वर्षीय बालक काशी के मणिकर्णिका घाट की सीढ़ियों पर बैठा हुआ था | उसकी आँखों से निकले हुए आंसू जो आग की गरमाहट से सूख से गए थे लेकिन उसका हृदय अभी भी विचलित था | घाट पर जल रही अनेकों चिताओं से निकल