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शर्मशार होती इंसानियत

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हर इंसान को कुछ न कुछ तो विरासत में मिलता है,मुझे भी कुछ चीजे विरासत में मिली है ,कुछ क्या बहुत कुछ मिला है,बहुत सारा प्यार मिला तो उस से भी ज्यादा दर्द मिला,शिक्षा मिली,आदर मिला, संस्कार मिला, अपनी म

रमन एक गरीब व्यक्ति था उसकी पत्नी और दो बच्चों के साथ एक बूढी मां भी रहती थी उसका घर एक झोपड़ी का था रामपुर गांव का रहने वाला था उसे गांव में सभी लोगों के पास बहुत ज्यादा  जायदाद था लेकिन केवल रमन अके

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सर्द रात का कहर,यूं थमता हर पहर,कर रहे मिलकर ये इशारा,दहशत पूछ रही पता हमारा...सन्नाटे का बढ़ता शोर,फ़ैल गया है चारों ओर,बनकर वक़्त भी काला चोर,अंधेरे में घूम रहा हर ओर...आजमाइश की ये तपती रेत,बनाकर ह

जब भी घर का कूड़ा निकलता है तो उस कूड़े को हम सब अपने अपने घर के कूड़ेदान में डालते रहते है,और जैसे ही कूड़ेदान भर जाता है हम उस कूड़े को ,या तो कही फेक देते है या कूड़े वाले को दे देते है,और कूड़ेदान

स्वप्न झर रहे हों यदि,  ताबीर हो पाती नहीं, प्रयास अपने गौर कर, रोक कैसी है यदि कहीं।  @नील पदम् 

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क्यों इंसानियत के क़त्ल हो रहे हैं हर जगह, मजहब-ए-इंसानियत को कोई मानता नहीं, मशरूफ हैं औरों के हक पर निगाहें गड़ी  हुईं,    कोई  अपने हक की बात क्यों जानता नहीं ।   @नील पदम्               

आज कल इतनी शादियां क्यों टूट रही? आज से दस बीस साल पहले तो ऐसा नहीं था, बहुत ही कम ratio होता था तलाक का ,पर आज कल तो तलाक सामान्य हो गया है।फैमिली कोर्ट के बाहर लाइन लगी होती है जैसे अब और कोई काम बच

तुम्हारी  कहानी में तुम सही सही  हमारी कहानी में हम सही  कही न कही कोई तो गलत था  वार्ना ऐसे तो हमारी कहानी अधूरी नहीं होती !                       

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एक कूप में जैसे फँसी हो ज़िन्दगी; आधी-अधूरी-चौथाई ज़िन्दगी; टुकड़े-टुकड़े बिखरकर फैली हुई ज़िन्दगी। समेटकर सहेजने के प्रयास में कैकेयी के कोप-भवन सी और बिफरती हुई ज़िन्दगी; संवार कर जोड़ने के उध

सुन्दर तन तब जानिये,  मन भी सुन्दर होय,  मन में कपट कुलांचता, तन भी बोझिल होय ।                (c)@नील पदम्   

जो निज माटी से करे,  निज स्वारथ से बैर,  उसको उस ठौं भेजिए, जित  रस लें भूखे शेर।                     

साँसें कागज की नाँव पर, चलतीं   डरत  डराए, जाने किस पल पवन चले, न जाने कित  जाएँ । (c)@नील पदम्

धूप की उम्मीद कुछ कम सी है, कि मौके का फायदा उठाया जाये। इतने सर्द अह्सास हुए हैं सबके, घर एक बर्फ का बनाया जाये ॥ @” नील पदम् “ 

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कौन कहता है, सो रहा है शहर, कितने किस्से तो कह रहा है शहर। किसी मजलूम का मासूम दिल टूटा होगा, कितना संजीदा है, कितना रो रहा है शहर। ये सैलाब किसी दरिया की पेशकश नहीं, अपने ही आँसुओं में बह

इसकी तामीर की सज़ा क्या होगी, घर एक काँच का सजाया हमने । मेरी मुस्कान भी नागवार लगे उनको, जिनके हर नाज़ को सिद्दत से उठाया हमने । वक़्त आने पर बेमुरव्वत निकले, वो जिन्हें गोद में उठाया हमने । सितम

नारी हारी नहीं। हर नारी का सम्मान करना सीखे। इंसानियत के मरहम को जाने। नारी को जननी कहा जाता हैं। उस जननी का भी तो ख्याल रखे। जिसने जन्म देकर मात्रभूमि का अंग बनाया, उसी मात्रभूमि मे जननी के साथ एक घ

जुबां पे दिलकश दिलफरेबी बातों का शहद, दिल में जहर-ओ-फरेब का समंदर हो ॥ मुस्कराहट के साथ फेरते हो नफरती तिलिस्म, सोचता हूँ कितने ऊपर औ कितने जमीं के अन्दर हो ॥ फूलों की डाल से दिखाई देते हो लेक

मणिपुर में एक वायरल वीडियो पर आक्रोश के बीच में, भाजपा ने दावा किया कि दो आदिवासी महिलाओं को नग्न कर दिया गया था और कुछ दिनों पहले पश्चिम बंगाल के मालदा में दुर्व्यवहार किया गया था। एक वायरल वीडियो पर

मैतेई समुदाय की १० साल से अधिक पुरानी मांग मणिपुर में हिंसा में वृद्धि का कारण है। हालाँकि, मणिपुर उच्च न्यायालय का आदेश, जो राज्य सरकार को 29 मई तक संघ ट्राइबल अफेयर्स मंत्रालय को ST टैग देने का निर्

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गर्व था मुझे मेरे, मन के विश्वामित्र पर, अभिमान था मुझे मेरे, चित्त के स्थायित्व पर, स्वच्छंद मृग सा घूमता था, डोलता था हर समय, स्वयं के ही अंतर्मन से, खेलता था हर समय। पर उसी क्षण द्वार पर, म

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