अमर आराधना की बेल, फूल जा, तू फूल जा!
श्याम नभ के नेह के जी का सलौना खेत पाकर
चमकते उन ज्योति-कुसुमों का बगीचा-सा लगाकर
चार चाँद लगा प्रलय में,
एक शशि को भूल जा।
अमर आराधना की बेल, फूल जा, तू फूल जा!
खुले ये छोड़ रक्खे हैं, कि कितना साहसी अम्बर
जगत तो बँट चुका सीमा नगर में द्वार में घर-घर!
बेकलेजे बेसहारा तारकों को झूल जा।
अमर आराधना की बेल, फूल जा, तू फूल जा!
गगन का गान मत गा तू धरा की जीत पर हँस री,
अमर की तू हँसी है तो सजग हो मौत को डँस री,
तू भले ही विश्व के अनुकूल जा,
प्रतिकूल जा।
अमर आराधना की बेल, फूल जा, तू फूल जा!
चमक की हाट नभ है? हो; न तू रख हाट में अपने,
न ये आँसू, न ये कसकें, न ये बलियाँ, न ये सपने,
गगन तो प्रतिबिम्ब है तेरे हृदय-भावों सजा।
अमर आराधना की बेल, फूल जा, तू फूल जा!
जग में गलियाँ, नभ में गलियाँ, बँधा जगत, पथ से चलने को,
सूरज की सौ-सौ किरनों में, विवश, प्रकाशोन्मुख जलने को,
तू अपना प्रकाश पाले, जी की जमना के कूल जा।
अमर आराधना की बेल, फूल जा,
तू फूल जा!