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समय की चट्टान

18 अप्रैल 2022

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मत दबा समय की चट्टानों के नीचे,

दोनों हाथों तेरी मूरत को खींचे,

चरणों को धोते, आधे से दृग मींचे,

मैं पड़ा रहूँगा तरु-छाया के नीचे,

स्वागत, जग चाहे कितना कीच उलीचे।

मत दबा समय की चट्टानों के नीचे।

78
रचनाएँ
समर्पण
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यह कविता चतुर्वेदी जी के 'युगचरण' नामक काव्य-संग्रह से संगृहीत है। प्रसंग-इन पंक्तियों में कवि ने पुष्प के माध्यम से देश पर बलिदान होने की प्रेरणा दी है। व्याख्या-कवि अपनी देशप्रेम की भावना को पुष्प की अभिलाषा के रूप में व्यक्त करते हुए कहता है कि मेरी इच्छा किसी देवबाला के आभूषणों में गूंथे जाने की नहीं है।
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तुम भी देते हो तोल तोल

18 अप्रैल 2022
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तुम भी देते हो तोल-तोल! नभ से बजली की वह पछाड़, फिर बूँदें बनना गोल-गोल, नभ-पति की भारी चकाचौंध, उस पर बूँदों का मोल-तोल, बूँदों में विधि के मिला बोल। तुम भी देते हो तोल-तोल! भू पर हरितीमा का उ

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बेटी की बिदा

18 अप्रैल 2022
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आज बेटी जा रही है, मिलन और वियोग की दुनिया नवीन बसा रही है। मिलन यह जीवन प्रकाश वियोग यह युग का अँधेरा, उभय दिशि कादम्बिनी, अपना अमृत बरसा रही है। यह क्या, कि उस घर में बजे थे, वे तुम्हारे प्

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यह बारीक खयाली देखी

18 अप्रैल 2022
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यह बारीक खयाली देखी? पौधे ने सिर उँचा करके, पत्ते दिये, डालि दी, फूला, और फूलकर, फल बन, पक कर, तरु के सिर चढ़ झूले झूला, तुमने रस की परख बड़ी की रस पर रीझे, रस को पाया, पर फल की मीठी फाँकों में म

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तुम्हारा मिलन

18 अप्रैल 2022
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तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई! भूलती-सी जवानी नई हो उठी, भूलती-सी कहानी नई हो उठी, जिस दिवस प्राण में नेह-बंशी बजी, बालपन की रवानी नई हो उठी; कि रसहीन सारे बरस रसभरे हो गये जब तुम्हारी छटा भा

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लाल टीका

18 अप्रैल 2022
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गीत रच कर जब उठा तब स्वप्न बोले—’और बोलो’, कृष्ण की कालिन्दिनी बोली—’उमड़’ मुझमें डुबो लो! प्रणय से मीठी मधुर! जब बेड़ियाँ झंकार उट्ठीं शूलियों ने माँग भर कर कहा, जी में प्यार घोलो। मैं पथिक युग क

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युग-ध्वनि

18 अप्रैल 2022
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आग उगलती उधर तोप, लेखनी इधर रस-धार उगलती, प्रलय उधर घर-घर पर उतरा, इधर नज़र है प्यार उगलती! उधर बुढ़ापा तक बच्चा है, इधर जवानी छन-छन ढलती, चलती उधर मरण-पथ टोली, ’उनपर’ इधर तबीयत चलती! भुजदण्डों पर

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यह लाशों का रखवाला

18 अप्रैल 2022
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उनके सपने हरियाता मेरी सूझों का पानी मुझसे बलि-पन्थ हरा है, मुझ पर दुनियाँ दीवानी! एकान्त हमारा, विधि से विद्रोहों की मस्ती है, उन्माद हमारा, शत-शत अरमानों की बस्ती है। हमने दुनियाँ खो डाली, त

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उल्लास का क्षण

18 अप्रैल 2022
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मैं भावों की पटरानी, क्या समझेगा मानव गरीब, मेरी यह अटपट बानी? श्रम के सीकर जब ढुलक चले, अरमान अभागे झुलस चले, तुम भूल गये अपनी पीड़ा, जब मेरी धुन पहचानी। जिस दिन तुम भव पथ डोल चले, विष का र

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स्मृति का वसन्त

18 अप्रैल 2022
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स्मृति के मधुर वसंत पधारो! शीतल स्पर्श, मंद मदमाती मोद-सुगंध लिये इठलाती वह काश्मीर-कुंज सकुचाती निःश्वासों की पवन प्रचारो स्मृति के मधुर वसंत पधारो! तरु दिलदार, साधना डाली लिपटी नेह-लता हरिय

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वृक्ष और वल्लरी

18 अप्रैल 2022
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वृक्ष, वल्लरि के गले मत मिल, कि सिर चढ़ जायगी यह, और तेरी मित भुजाओं पर अमित हो छायगी यह। हरी-सी, मनभरी-सी, मत जान, रुख लख, राह लख तू मधुर तेरे पुष्प-दल हों, कटु स्वफल लटकायगी यह। भूल है,

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न्याय तुम्हारा कैसा

18 अप्रैल 2022
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प्रिय न्याय तुम्हारा कैसा, अन्याय तुम्हारा कैसा? यह इधर साधु की कुटिया जो तप कर प्राण सुखाता, तेरी वीणा के स्वर पर दीनों में मिल-मिल जाता। मल धोता, जीवन बोता, छोड़े आँसू का सोता, जब जग हरियाला

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युग और तुम

18 अप्रैल 2022
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युग तुम में, तुम युग में कैसे झाँक रहे हो बोलो? उथल-पुथल तब हो कि समय में जब तुम जीवन घोलो। तुम कहते हो बलि से पहले अपना हृदय टटोलो, युग कहता है क्रान्ति-प्राण! पहिले बन्धन तो खोलो। तेरी अँगुली हि

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दूध की बूँदों का अवतरण

18 अप्रैल 2022
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गो-स्तनों पर घूमने वाली अँगुलियाँ कह रही थीं! दूध में मीठा न डालो उसे अपमानित न कर दो, प्राण ’थर’ बन तैरते हैं उन्हें निष्प्राणित न कर दो। ले मलाई से दृगों के पोर, गो-स्तन खींच लाये, बँधे धे

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यह बरसगाँठ

18 अप्रैल 2022
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किस तरुणी के प्रथम-हृदय-अर्पण के साहस-सी ये साँसें, और तरुण के प्रथम-प्रेम-सी जमुहाती, अटपटी उसाँसें, गई साँस के लौट-लौट आने का यह करोड़वाँ-सा क्षण वह क्षण जो बनने आया है परम याद के कर का कंकण।

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किनकी ध्वनियों को दुहराऊँ

18 अप्रैल 2022
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ऐ मेरी प्रेरणा-बीन के वादक! बे जाने जब जब, बजा चुके हो, जगा चुके हो, सोते फितनों को जब-तब, किन चरणों में आज उन्हें रक्खूँ? किसका अपमान करूँ? किसकी ध्वनियों को दुहराऊँ हृदय हलाहल-दान करूँ? आ

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झरना

18 अप्रैल 2022
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पर्वतमालाओं में उस दिन तुमको गाते छोड़ा, हरियाली दुनिया पर अश्रु-तुषार उड़ाते छोड़ा, इस घाटी से उस घाटी पर चक्कर खात छोड़ा, तरु-कुंजों, लतिका-पुंजों में छुप-छुप जाते छोड़ा, निर्झरिनी की गोदी के श

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आँसू से

18 अप्रैल 2022
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अरे निवासी अन्तरतर के हृदय-खण्ड जीवन के लाल त्रास और उपहास सभी में रहा पुतलियाँ किये निहाल। संकट में वह गोद, मोद कर जहाँ टपकता धन्य रहा, मार-मार में गिर न हठीले निर्जन है, मैं वन्य रहा। ठह

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गति-दाता

18 अप्रैल 2022
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जागृति के प्रलय-पुंज गति के गति-दाता। ऐ गुणेश ऐ गणेश ऐ महेश के निदेश श्वेत केश श्वेत वेश हिमगिरि-सा श्वेत देश, झर झर निर्झर, नगाधिराज के अशेष लेष! ऐ महान, ऐ सुजान, तांडव-पति-दिव्य-दान, तारक-

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पास बैठे हो

18 अप्रैल 2022
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चट जग जाता हूँ, चिराग को जलाता हूँ, हो सजग तुम्हें मैं देख पाता हूँ कि पैठे हो; पास नहीं आते, हो पुकार मचवाते, तकसीर बतलाओ क्यों यों बदन उमैठे हो? दरश दिवाना, जिसे नाम को ही बाना, उसे शरण विलोकते

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अधिकार नहीं दोगे मुझको

18 अप्रैल 2022
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आते-आते रह जाते हो--जाते-जाते दीख रहे, आँखे लाल दिखाते जाते, चित्त लुभाते दीख रहे, दीख रहे, पावनतर बनने की धुन के मतवाले-से, दीख रहे, करुणा-मन्दिर-से प्यारे देश निकाले-से, दोषी हूँ, क्या जीने का

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दाईं बाजू

18 अप्रैल 2022
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ये साधन के बाँट साफ हैं, ये पल्ले कुटिया के, श्रम, चिन्तन, गुन-गुन के ये गुन बँधे हुए हैं बाँके, जितने मन पर मनमोहन अपना दर्शन दिखलाता कितनी बार चढ़ा जाता हूँ, उतना हो नहिं पाता। वे बोले जीवन दाँव

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अमर-अमर

18 अप्रैल 2022
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कलम चल पड़ी, और आज लिखने बैठी हैं युग का जीवन, विहँस अमरता आ बैठी त्योहार मनाने मेरे आँगन। पानी-सा कोमल जीवन बादल-सा बलशाली हो आया, भू पर मेरी तरुणाई का हँस-हँस कर अमरत्व सजाया। जगत ललक कर द

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फूल की मनुहार

18 अप्रैल 2022
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बिन छेड़े, जी खोल सुगन्धों को जग में बिखरा दूँगा; उषा-राग पर, दे पराग की भेंट, रागिनी गा दूँगा; छेड़ोगे, तो पत्ती-पत्ती चरणों पर बिखरा दूँगा; संचित जीवन साध कलंकित न हो, कि उसे लुटा दूँगा; किन्तु

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हरियालेपन की साध

18 अप्रैल 2022
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गौरव-शिखरों! नहीं, समय की मिट्टी में मिलवाओ, फिर विन्ध्या के मस्तक से करुणा-घन हो झरलाओ, पृथिवी के आकर्षण के प्रतिकूल उठूँ, दिन लाओ, जल से प्रथम मुझे आतप की किरणों में नहलाओ! कई गुना होकर अर्पित

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पर्वत की अभिलाषा

18 अप्रैल 2022
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तू चाहे मुझको हरि, सोने का मढ़ा सुमेरु बनाना मत, तू चाहे मेरी गोद खोद कर मणि-माणिक प्रकटाना मत, तू मिट जाने तक भी मुझमें से ज्वालाएँ बरसाना मत, लावण्य-लाड़िली वन-देवी का लीला क्षेत्र बनाना मत, जगत

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गोधूली है

18 अप्रैल 2022
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अन्धकार की अगवानिन हँस कर प्रभात सी फूली है, यह दासी धनश्याम काल की ले चादर बूटों वाली उढ़ा नाथ को, यह अनाथ होने के पथ में भूली है! गोधूली है। टुन-टुन क्वणित, कदम्ब लोक से, ले गायें धीमे-धीमे रज-

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दृग-जल-जमुना

18 अप्रैल 2022
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वे दिन भला किया जो भूले। दृग-जल-जमुना बढ़ी किन्तु श्यामल वे चरण न पाये, कोटि-तरंग-बाँह के पंथी, तट-मूर्च्छित फिर आये, अब न अमित! विभ्रम दे, चल चल सखि कालिन्दी कूलें, वे दिन भला किया जो भूले। गति

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बोल नये सपने

18 अप्रैल 2022
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कहानी बोल नये सपने! अरी अभागिन, पहिले ही क्यों ओंठ लगे कँपने? कहानी बोल नये सपने! देख तो, प्राण में एक तूफान-सा लोटता-सा चला जा रहा है कहाँ? व्यक्ति-वामन, उठा आ रहा पैर ले एक रक्खे यहाँ, एक रक्

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उलहना

18 अप्रैल 2022
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यह लाली है, सरकार आपकी कृपा-पूर्ण जंजीरों के घर्षण से, निकले मोती हैं। रखवाली है, हर सिसक और चीत्कारों पर तस्वीर तुम्हारी होती है। मत खड़े रहो, ऐ ढीठ रुकावट होती है साँसों के आने-जाने में, तुम म

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नन्हे मेहमान

18 अप्रैल 2022
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महमान मेरे नन्हे से ओ महमान! हम दोनों का मेल है तू ही, जग का जीवन-खेल है तू ही, नेह सींखचों जेल है तू ही, ओ अम्मा के राजदुलारे साजन की मुसकान। महमान मेरे नन्हे-से ओ महमान! माँ की सब तरुणाई वारी

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क्या सावन, क्या फागन

18 अप्रैल 2022
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क्यों स्वर से ध्वनियाँ उधार लूँ? क्यों वाचा के हाथ पसारूँ? मेरी कसक पुतलियों के स्वर, बोलो तो क्यों चरण दुलारूँ? स्वर से माँगूँ भीख कि हिलकोरों में हूक उठे, वाचा से गुहार करता हूँ देवि, कलेजा द

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कैदी की भाव

18 अप्रैल 2022
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धूल लिपटे हुए हँस-हँस के गजब ढाते हुए, नंद का मोद यशोदा का दिल बढ़ाते हुए, दोनों को देखता, दोनों की सुध भुलाते हुए, बाल घुँघरालों को मटका कर सिर नचाते हुए। नंद जसोदा, जो वहाँ बैठे थे बतलाते हुए,

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युग-पुरुष

18 अप्रैल 2022
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उठ-उठ तू, ओ तपी, तपोमय जग उज्ज्वल कर गूँजे तेरी गिरा कोटि भवनों में घर-घर गौरव का तू मुकुट पहिन युग के कर-पल्लव तेरा पौरुष जगे, राष्ट्र हो, उन्नत अभिनव। तेरे कन्धों लहरावे, प्रतिभा की खेती, तेर

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गीत (१)

18 अप्रैल 2022
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मेरे युग-स्वर! प्रभु वर दे, तू धीरे-धीरे गाये। चुप कि मलय मारुत के जी में शोर नहीं भर जाये, चुप कि चाँदनी के डोरों को शोर नहीं उलझाये, मेरे युग-स्वर! प्रभु वर दे, तू धीरे-धीरे गाये। चुप कि तारकों

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हृदय

18 अप्रैल 2022
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वीर सा, गंभीर-सा है यह खड़ा, धीर होकर यों अड़ा मैदान में, देखता हूँ मैं जिसे तन-दान में, जन-दान में, सानंद जीवन-दान में। हट रहा है दंभ आदर-प्यार से, बढ़ रहा जो आप अपनों के लिए, डट रहा है जो प्रह

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युग-धनी

18 अप्रैल 2022
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युग-धनी, निश्वल खड़ा रह! जब तुम्हारा मान, प्राणों तक चढ़ा, युग प्राण लेकर, यज्ञ-वेदी फल उठी जब अग्नि के अभिमान लेकर। आज जागा, कोटि कण्ठों का बटोही मान लेकर, ढूँढने आ गई बन्धन-मुक्ति पथ-पहचान ल

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ध्वनि बिखर उठी

18 अप्रैल 2022
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हास्य का प्रपात, प्राण मेरु से गिरा कि ध्वनि बिखर उठी! और एक कान पर रखे करारविन्द छबि निखर उठी। हास्य-तंत्र हो गया जहान, यों कि उग उठा खेत-खेत! यों प्रवाहमान, नेह हो उठा कि भीग बही रेत-रेत! क

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ओ तृण-तरु गामी

18 अप्रैल 2022
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सिर से पाँव, धूलि से लिपटा, सभ्यों में लाचार दिगम्बर, बहते हुए पसीने से बनती गंगा के ओ गंगाधर; ओ बीहड़ जंगल के वासी, अधनंगे ओ तृण-तरु गामी एक-एक दाने को रोते, ओ सारी वसुधा के स्वामी! दो आँखों से म

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मन की साख

18 अप्रैल 2022
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मन, मन की न कहीं साख गिर जाये, क्यूँ शिकायत है?-भाई हर मन में जलन है। दृग जलधार को निहारने का रोज़गार कैसे करें?-हर पुतली में प्राणधन है। व्यथा कि मिठास का दिवाला कैसे काढ़े उर? कान कहाँ जायें? ल

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उधार के सपने

18 अप्रैल 2022
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बहुत बोल क्या बोलूँ ये सब सपने हैं उधार के राजा। बहुत भले लगते हैं; गहने अपने हैं उधार के राजा! तुझे जोश आता है, देखा; तुझे क्रोध आता है, माना। पर ’हमने’ अपने दाता की हरी पुतलियों को पहिचाना? तू

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गीत (२)

18 अप्रैल 2022
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चरण चलें, ईमान अचल हो! जब बलि रक्त-बिन्दु-निधि माँगे पीछे पलक, शीश कर आगे सौ-सौ युग अँगुली पर जागे चुम्बन सूली को अनुरागे, जय काश्मीर हमारा बल हो, चरण चलें, ईमान अचल हो। स्मरण वरण का हिमगिरि का

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जोड़ी टूट गई

18 अप्रैल 2022
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तरुणाई के प्रथम चरण में जोड़ी टूट गई, फूली हुई रात की रानी, प्रातः रूठ गई! गन्ध बनी, साँसों भर आई छन्द बनी फूलों पर छाई बन आनन्द धूलि पर बिखरी यौवन के तुतलाते वैभव, सन्ध्या लूट गई! फूलों भरी रात

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अटल

18 अप्रैल 2022
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हटा न सकता हृदय-देश से तुझे मूर्खतापूर्ण प्रबोध, हटा न सकता पगडंडी से उन हिंसक पशुओं का क्रोध, होगा कठिन विरोध करूँगा मैं निश्वय-निष्क्रिय-प्रतिरोध तोड़ पहाड़ों को लाऊँगा उस टूटी कुटिया का बोध। चू

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हिमालय पर उजाला

18 अप्रैल 2022
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लिपट कर गईं बलवान चाहें, घिसी-सी हो गईं निर्माल्य आहें, भृकुटियाँ किन्तु हैं निज तीर ताने हुए जड़ पर सफल कोमल निशाने। लटें लटकें, भले ही ओठ चूमें, पुतलियाँ प्राण पर सौ साँस झूमें। यहाँ है किन्

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कुलवधू का चरखा

18 अप्रैल 2022
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चरखे, गा दे जी के गान! इक डोरा-सा उठता जी पर, इक डोरा उठता पूनी पर, दोनों कहते बल दे, बल दे, टूट न जाये तार बीच में, टूट न जाये तान, चरखे, गा दे जी के गान! उजली पूनी, उजले जीवन, है रंगीन नहीं

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लक्ष्य-भेद के उतावले तीर से

18 अप्रैल 2022
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"तू धीर धर हे वीर वर"--उस तीर से मैंने कहा! "बस छूट पड़ने दो अजी, मुझसे नहीं जाता रहा"। -जाता रहा, तो काम से ही जान ले जाता रहा, छूटा कि छूटा, और हो होकर टूक ठुकराता रहा। मैदान में है सीख तू बाजी

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वीणा का तार

18 अप्रैल 2022
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विवश मैं तो वीणा का तार। जहाँ उठी अंगुली तुम्हारी, मुझे गूँजना है लाचारी, मुझको कम्पन दिया, तुम्हीं ने, खुद सह लिया प्रहार। दिखाऊँ किसे कसक सरकार! अभागा मैं वीणा का तार। विवश मैं तो वीणा का तार

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गीत (३)

18 अप्रैल 2022
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बदरिया थम-थम कर झर री! सागर पर मत भरे अभागन, गागर को भर री! बदरिया थम-थम कर झर री! एक-एक, दो-दो, बूँदों में, बँधा सिन्धु का मेला, सहस-सहस बन विहँस उठा है, यह बूँदों का रेला। तू खोने से नहीं बा

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चले समर्पण आगे-आगे

18 अप्रैल 2022
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यों मरमर मत करो आम्र--वन गरबीले युग बीत न जाएँ, रहने दो वसन्त को बन्दी, कोकिल के स्वर रीत न जाएँ। उठीं एशिया की गूजरियाँ, मोहन के वृत, मोहन में रत, दानव का बल बढ़ न जाय, वे इस घर से भयभीत न जाएँ।

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अंधड़ और मानव

18 अप्रैल 2022
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अंधड़ था, अंधा नहीं, उसे था दीख रहा, वह तोड़-फोड़ मनमाना हँस-हँस सीख रहा, पीपल की डाल हिली, फटी, चिंघाड़ उठी, आँधी के स्वर में वह अपना मुँह फाड़ उठी। उड़ गये परिन्दे कहीं, साँप कोटर तज भागा, लो,

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आराधना की बेली

18 अप्रैल 2022
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अमर आराधना की बेल, फूल जा, तू फूल जा! श्याम नभ के नेह के जी का सलौना खेत पाकर चमकते उन ज्योति-कुसुमों का बगीचा-सा लगाकर चार चाँद लगा प्रलय में, एक शशि को भूल जा। अमर आराधना की बेल, फूल जा, तू फूल

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झूला झूलै री

18 अप्रैल 2022
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संपूरन कै संग अपूरन झूला झूलै री, दिन तो दिन, कलमुँही साँझ भी अब तो फूलै री। गड़े हिंडोले, वे अनबोले मन में वृन्दावन में, निकल पड़ेंगे डोले सखि अब भू में और गगन में, ऋतु में और ऋचा में कसके रिमझिम

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पतित

18 अप्रैल 2022
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ममता के मीठे आमिष पर रहा टूटता भूखा-सा, भावों का सोता कर डाला, तीव्र ताप से रूखा-सा। कैसे? कहाँ? बता, चढ़ पाए जीवन-पंकज सूखा-सा, आवे क्यों दिलदार, जहाँ दिल हो, दावों से दूखा-सा? गिरने को जी चाह रह

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मुक्ति का द्वार

18 अप्रैल 2022
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मेरे गो-कुल की काली रातों के ऐ काले सन्देश, रे आ-नन्द-अजिर के मीठे, प्यारे घुँघराले सन्देश। कृष-प्राय, कृषकों के, आ राधे लख हरियाले सन्देश, माखन की रिश्वत के नर्तक, मेरे मतवाले सन्देश, जरा गुद-गुद

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आने दो

18 अप्रैल 2022
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मत रूठो ओ भाव-रंगिनी, स्वर पर कुछ निखार आने दो! सौ उसाँस पर एक साँस की नागन बार-बार आने दो। गोदी में लो, कान उमेठो, गले लगाओ, शत शिर डोलें, पर वीणा में आँसू-सा असहाय न तुम उतार आने दो। मत रूठो ओ

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तेरा पता

18 अप्रैल 2022
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तेरा पता सुना था उन दुखियों की चीत्कारों में, तुझे खेलते देखा था, पगलों की मनुहारों में, अरे मृदुलता की नौका के माँझी, कैसे भूला, मीठे सपने देख रहा काग़ज की पतवारों में? सागर ने खोला सदियों से, द

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टूटती जंजीर

18 अप्रैल 2022
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एक कहता है कि जीवन की कहानी बेगुनाह, एक बोला चल रही साँसें-सधीं, पर बेगुनाह, एक ने दोनो पलक यों धर दिये, एक ने पुतली झपक ली, वर दिये, एक ने आलिंगनों को आस दी, एक ने निर्माण को बनवास दी, आज तारों

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दूर या पास

18 अप्रैल 2022
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यौवन के छल की तरह दूर, कलिका से फल की तरह दूर, सीपी की खुली पंखुड़ियों से, स्वाती के जल की तरह दूर, ताड़ित तरंग की तरह पास, अधकटे अंग की तरह पास, उल्लास-श्वास की तरह? नहीं, पागल उलास की तरह पास, म

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तर्पण का स्वर

18 अप्रैल 2022
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ना, ना, ना, रे फूल, वायु के झोंको पर मत डोल सलोने, सोने सी सूरज-किरनों से, पंखड़ियों से बोल सलोने, सावन की पुरवैया जैसे भ्रंग--कृषक तेरे तेरे पथ जोहें, तेरे उर की एक चटख पर हो न जाय भू-डोल सलोने!

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दूर गई हरियाली

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एक मौत पर, दूजे दिल पर, और तीसरे ’उन पर’ आली, मेरा बस न चलाये चलता, साधें रीतीं, आँखें खाली! अब तो दूर गई हरियाली बिजली का सिर चढ़ चढ़ जाना, श्याम घनों का गल-गल गिरना, कैसे दो वरदान, मिले हैं,

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धरती तुझसे बोल रही है

18 अप्रैल 2022
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धरती बोल रही है--धीरे धीरे धीरे मेरे राजा, मेरा छेद कलेजा हल से फिर दाना बन स्वयं समा जा। माटी में मिल जा ओ मालिक, माँद बना ले गिरि गह्वर में, एक दहाड़, करोड़ गुनी हो, गूँजे नभ की लहर लहर में। ह

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रोटियों की जय

18 अप्रैल 2022
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राम की जय पर खड़ी है रोटियों की जय? त्याग कि कहने लग गया लँगोटियों की जय? हाथ के तज ’काम’ हों आदर्श के बस ’काम’ राम के बस काम क्यों? हों काम के बस राम। अन्ध-भाषा अन्ध-भावों से भरा हो देश, ईश का

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जबलपुर जेल से छूटते समय, दरवाजे पर, आम के नीचे

18 अप्रैल 2022
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ये जयति-जय घोष के काँटे गड़े, लोटने ये हार सर्पों से लगे, छोड़ कर आदर्श देव-उपासना, बन्धु, तुम किस तुच्छ पूजा को जगे? बँध चली ममता कसी जंजीर-सी, यह परिस्थिति का गुनह-खाना+ बना, घिर गये आत्मीय,

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पथ में

18 अप्रैल 2022
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यौवन की पुकार करते हो, जीने दो दरकार नहीं, रूप-राशि का दम भरते हो, मुझे किन्तु एतबार नहीं, नहीं सीपियों पर ललचूँगी, मुझे चाहिए वे मोती, भूतल हीतल अंतरतल में जगमग हो जिनकी जोती, चाँदी-सोने मकराने

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जलियाँ वाला की बेदी

18 अप्रैल 2022
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नहीं लिया हथियार हाथ में, नहीं किया कोई प्रतिकार, ’अत्याचार न होने देंगे’ बस इतनी ही थी मनुहार, सत्याग्रह के सैनिक थे ये, सब सह कर रह कर उपवास, वास बन्दियों मे स्वीकृत था, हृदय-देश पर था विश्वास,

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नज़रों की नज़र उतारूँगा

18 अप्रैल 2022
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माँ—लल्ला, तू बाहर जा न कहीं, तू खेल यहीं, रमना न कहीं। बेटा—क्यों माँ? माँ—डायन लख पाएगी, लाड़ले! नजर लग जाएगी। बेटा—अम्मा, ये नभ के तारे हैं, किस माँ के राज-दुलारे हैं? अम्मा, ये खड़े उघारे ह

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समय की चट्टान

18 अप्रैल 2022
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मत दबा समय की चट्टानों के नीचे, दोनों हाथों तेरी मूरत को खींचे, चरणों को धोते, आधे से दृग मींचे, मैं पड़ा रहूँगा तरु-छाया के नीचे, स्वागत, जग चाहे कितना कीच उलीचे। मत दबा समय की चट्टानों के नीचे।

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गीत (४)

18 अप्रैल 2022
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नयनों पर सुख, नयनों पर दुख, सुख में दुख, दुख में सुख जोड़ा। खुले अन्ध-नीलम पर तारे, रच-रच तोड़े कौन निगोड़ा? संग चलो संग-संग री डोलो, मन की मोट सम्भालो संग-संग, हरी-हरी होवे वसुन्धरा, इस पर अमृ

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झंकार कर दो

18 अप्रैल 2022
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वह मरा कश्मीर के हिम-शिखर पर जाकर सिपाही, बिस्तरे की लाश तेरा और उसका साम्य क्या? पीढ़ियों पर पीढ़ियाँ उठ आज उसका गान करतीं, घाटियों पगडंडियों से निज नई पहचान करतीं, खाइयाँ हैं, खंदकें हैं, जोर है

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क्या-क्या बीत रही है

18 अप्रैल 2022
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मैंने मारा, हाँ मैंने ही मारा है, मारा है, पथ से जारा बहकते युग को ललकारा है मैंने। तुम क्या जानो, मेरे युग पर क्या-क्या बीत रही है, सब इल्जाम मुझे स्वीकृत हैं, किन्तु न ठहरूँगा मैं। मुझको स्वाँग

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तुम न हँसो

18 अप्रैल 2022
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तुम न हँसो, हँसने से जालिम धोखा और सबल होता है, मैं हँसने की जड़ खोजूँ तो वह हँसने का फल होता है, हँसते हो जाने कैसा सा, बिखर-बिखर पारा झरता है। स्वयं हार जाता हूँ, देखा, मुँह से अंगारा झरता है।

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नीलिमा के घर

18 अप्रैल 2022
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यह अँगूठी सखि निरख एकान्त की, जड़ चलो हीरा उपस्थिति का, सुहागन जड़ चलो। दामिनी भुज की--सयम की--अँगुली छिगुनी, पहिन कर बैठे जरा नीलम भरे जल-खेत में, साढ़साती हो, पहिन लो समय, नग जड़ी, नीलम लगी है

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यह आवाज

18 अप्रैल 2022
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और यह आई मधुर आवाज-सी जब प्रलय ने नेत्र खोला किन्तु मानव था, न डोला बादलों ने घुमड़ कर जब बिजलियों का ज्वार खोला। कुछ गिरे पाषाण कुछ आये बवन्डर थरथराए कुछ बदन कुछ गिर गये घर, कुछ अँधेरा ब

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ऊषा

18 अप्रैल 2022
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यह बूँद-बूँद क्या? यह आँखों का पानी, यह बूँद-बूँद क्या? ओसों की मेहमानी, यह बूँद-बूँद क्या? नभ पर अमृत उँड़ेला, इस बूँद-बूँद में कौन प्राण पर खेला! लाओ युग पर प्रलयंकरि वर्षा ढा दें, सद्य-स्नाता

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कुछ पतले पतले धागे

18 अप्रैल 2022
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कुछ पतले-पतले धागे मन की आँखों के आगे! वे बोले गीतों का स्वर, गीतों की बातों का घर, हौले-हौले साँसों में टूटा है, जी जगती पर, प्राणों पर सावन छाया, जिस दिन श्यामल घन जागे। द्रव पतले-पतले धागे,

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तरुणई का ज्वार

18 अप्रैल 2022
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तरुणई ज्वार बन कर आई। वे कहते मुझसे गई उतर, मैंने देखा वह चढ़ छाई। जीवन का प्यार खोलती है, माँ का उभार खोलती है, विष-घट खाली कर अमृत से घट भर कर मस्त डोलती है। आशा के ऊषा द्वार खोल, सूरज का सो

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सखि कौन

18 अप्रैल 2022
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श्यामल प्रभु से, भू की गाँठ बाँधती, जोरा-जोरी, सूर्य किरण ये, यह मन-भावनि, यह सोने की डोरी, छनक बाँधती, छनक छोड़ती, प्रभु के नव-पद-प्यार पल-पल बहे पटल पृथिवी के दिव्य-रूप सुकुमार! कलियों में रस-

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हौले-हौले, धीरे-धीरे

18 अप्रैल 2022
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तुम ठहरे, पर समय न ठहरा, विधि की अंगुलियों की रचना, तोड़ चला यह गूंगा, बहरा। घनश्याम के रूप पधारे हौले-हौले, धीरे-धीरे, मन में भर आई कालिन्दी झरती बहती गहरे-गहरे। तुम बोले, तुम खीझे रीझे, तुम दीखे

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