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बस बतला रहा हूँ तुम्हें~

27 अगस्त 2022

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इन दिनों गुमसुम सी है कुछ चहचहाटें , बेरंग सी लगती है ये धूप जिनमें कभी इंद्रधनुष के सातों रंग नृत्यरत हो उठते थे । दिन का दोलन जो दरियाई फितरत रखता था पहाड़ सा सध गया हो जैसे । कुछ आवाज़ें जिनमें जीवन गुंजायमान सा हुआ करता था इन दिनों बेआवाज़ सा हो चला है । ये मखमली परिंदे जो पैगंबरों की मानिंद कुदरत की खबरों को सुनाने आ जाते थे । इन दिनों जैसे बदहवास से नजर आते हैं । कुछ देर तो टटोलते हैं वो मुझे और मेरे आस पास के माहौल को , फिर उनपे भी घिर जाती है वो मायूसी जिससे उनका राब्ता पहले कभी ना हुआ हो जैसे । मेरे मूक निवेदन को स्वीकार वो उड़ जाते हैं किसी और सुनहले छत और आंगन की ओर मानो जैसे वो भी मर्यादित हो दिन और रात , उजाले और अंधेरे के चक्र को निर्वाहित करने के लिए ~~

आजकल ना उन राहों पर काटें से उग आए हैं जिनपर चलने के पक्के वादे तुमने मुझसे लिए थे । ये काटें जाने कैसे उग आए , शायद तुम्हारे एहसासों की नमी में कोई कमी आ गयी है शायद या फिर , या फिर मैंने खुद बो लिए हो ये काटें अपने अचेतन मन के निर्देशन में । पर अक्सर उलझा लेते है ये काटें मुझे , इनकी चुभन से अब वो तकलीफ तो नही महसूस होती पर हां बेचैनी कुछ ज्यादा सी होने लगी है । धड़कनें अब उस तरह से उन दिनों के मानिंद तो नही बढ़ती पर नियमतः भी नही रहती है । सासें वैसी ही है दुरुस्त ,गहरी और गर्म बस अब इन्हें लेना पड़ता है सायास मानो ।

तुम्हारा दूर होना कुदरती इनायतों के दूर होने जैसा रहा , और आदतन मैंने कभी आवाज़ नही दी दूर जाती किसी भी चीज को । रसायन शास्त्र का वो अध्याय जैसे आत्मसात हो गया था मेरे वजूद में कि इलेक्ट्रॉन परमाणु की पात्रता के आधार पर ही उसके कक्ष में गतिमान होते हैं । अतः इलेक्ट्रॉन को सायास अंतस्थ रखने की सायास कोशिश हमेशा परमाणु को असंयत ही रखेगी ।


तुमसे मिले अधूरेपन ने मुझे अनगिनत जगहों पर मुकम्मल किया । शायद इसीलिए तुमसे मिले इस अधूरेपन को भरने की बात से कतराता रहा हूँ । परमाणु का केंद्र जिस मटेरियल से निर्मित है उसमें किया गया अभियांत्रिक परिवर्तन परमाणु के कुदरती गुणों से तो दूर ही कर देगा ना , क्या वो यंत्रवत नही हो जाएगा अन्य परमाणुओं के सदृश । नहीं मुझे मेरी सत्ता प्यारी हैं , वो शहर दिलरुबा लगती है जिसे निर्मित किया गया है तुम्हारे एहसासों के गारे माटी से । उसकी शीतल बयार में मुझे ईश्वरीय होने का सुख मिलता है तुम्हारे सानिध्य में । एक ऐसा शहर जहां चाहकर भी तुम मुझसे दूर नही हो सकती । जहां चाहकर भी समय या उम्र के बहाने बनाकर मैं खुद को आज़ाद नही कर सकता । ये शहर बेहद खूबसूरत है , जहां सब कुछ अपने हिसाब से चलता है जहां दूर दूर तक हम दोनों की सल्तनत है । इस शहर के मंदिर , मस्जिद ,गुरुद्वारे सब एक ही आंगन में खुलते हैं , और जहां परवरिश की जाती है इंसानियत की बुनियाद पर । मुझे यकीन है कि हमारे इस शहर की कुदरती हवा से ओढ़ लिए गए तमाम दुनियावी मर्ज़ों का इलाज हो सकेगा । इंसानों की और सुंदर बस्तियां बसेंगी । प्रेम के इस धार्मिक नगर में किसी भी सामाजिक बुराई के टीकाकारण की आवश्यकता नही होगी । बस बतला रहा हूँ तुम्हे •••••••


काव्या सोनी

काव्या सोनी

बहुत खूब

17 सितम्बर 2022

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

17 सितम्बर 2022

बहुत शुक्रिया 😊🙏

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रचनाएँ
कहना है तुमसे ~
5.0
ये किताब उस कहन का अभिलेखीय संग्रह है जिसे अक्सर हम किसी खास से रूबरू होकर कह नहीं पाये होते हैं । इस किताब के हर अध्याय में कुछ ऐसा है जो आपको ये एहसास कराएगा कि बिल्कुल यही सब तो कहना था । तो आइए इस सफर में तरोताज़ा कीजिये उन मखमली सुनहरी यादों को ,जिन्हें अल्फाज़ो में भरने की भरसक कोशिश इस क़िताब में की गयी है ।
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बस बतला रहा हूँ तुम्हें~

27 अगस्त 2022
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इन दिनों गुमसुम सी है कुछ चहचहाटें , बेरंग सी लगती है ये धूप जिनमें कभी इंद्रधनुष के सातों रंग नृत्यरत हो उठते थे । दिन का दोलन जो दरियाई फितरत रखता था पहाड़ सा सध गया हो जैसे । कुछ आवाज़ें जिनमें जीवन

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एक जरुरी बात~

27 अगस्त 2022
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एक जरूरी बात अक्सर कहनी होती है तुमसे जो अनकही रह जाती है ।इस दुनियावी बियावान में अक्सर बहुत कुछ अधूरा ऐसा रह जाता है जिसका कोई सिरा पूरा नही पड़ता कहने के क्रम में ,तुम जो कह

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वो शून्य जो भरा नहीं गया~

27 अगस्त 2022
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‌वो शून्य फिर से भरा नही गया , जो रिक्त हो गया तुम्हारे जाने के बाद । लाख जतन अनगिनत मनुहार ,समझौते सब करके देख लिए , पर उस क्षुधा की तृप्ति संभव ना हो सकी । शायद होगी भी

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तब और अब~

27 अगस्त 2022
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अक्सर थका हारा जब भी बैठता हूँ अपने संग की गुफ्तगू में तोतुम्हारा वो हल्की उलझनों से लबरेज से चेहरा जेहन में कौंध ही उठता है । उन दिनों अक्सर तुम्हारे वजूद के

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एक तुम्हारा होना क्या से क्या कर जाता है~

19 सितम्बर 2022
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एक तुम्हारा होना~तुमसे कही बातों का कोई अंत क्यो नही मिलता । हर बार कहकर सोचता हूँ अब आखिरी बात तो कह डाली मैंने , पर देखो न अंतिम दफा की कहन अपनी मेढ़ को तोड़कर बह चुकी है किसी ओर , और अब मैं इसे शब्द

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इब्नबतूता मन~

21 सितम्बर 2022
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कुछ उलझने मुख़्तलिफ़ सी होती है । वैसे तो हर उलझन खुद में मुख़्तलिफ़ ही होती है पर कुछ पशोपेश ए हालात भी उस कलंकित भोर के तारे की तरह होते हैं , जिसे देखना कलंक का एक प्रतिमान माना जाता है तो बिना उसे देख

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चलते चलते यूं ही~

21 सितम्बर 2022
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सब कुछ ठीक ही तो चल रहा था आज भी , मौसम का मिज़ाज़ कमाल था , हवाएं लयबद्ध होकर बह रही थी , आसमान बिल्कुल साफ नीलिमा लिए हुए पसरा हुआ था , धरती मानो स्वयं को अर्पित करने को तत्पर थी , एक सोंधी सुगंध पूरे

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मुस्कुरा भी दीजिये~

21 सितम्बर 2022
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एक अदद मुस्कान है ईश्वरीय वरदान । एक जादुई मुस्कान चेहरे पर चंद मांस पेशियों की वर्जिश से पोशीदां हो उठती है , और सामने वाले की सुंदरता में चार चांद लगा देती है। आंखों का जीवंत संकुचन लहू की च

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प्रेम को सप्रेम~

22 सितम्बर 2022
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जब आप प्रेम में होते हैं, तो प्रकृति के सबसे नजदीक होते हैं, ठंडी हवायें कुछ ज्यादा शिद्दत से महसूस होती है । सूरज की तपती रौशनी चाँदनी सरीखा एहसास दिलाती हैं, सुबह पक्षियों का कलरव आपकी प्रेम गाथा का

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तुम्हारी उपमा~

22 सितम्बर 2022
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सब उपमाएं बेबस सी बहुत लाचार हो उठती हैं , उनसे जब तुम्हारे लिए कोई उम्दा सा संबोधन मांगता हूं । वो ठहर जाती हैं, चाँद हो सितारे कि कली या फूल, हो कि गुलाब ,चंपा या चमेली , काली घटाएं हो या बहती नदी,

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ये भी कहना था के~

22 सितम्बर 2022
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कोई आकर गुजरा है ,बिल्कुल अलहदा सा , अल्हड़ सी बातें अल्हड़ ही अंदाज़पर्वतों पर दूर गूंजती किसी मंदिर के आरती जैसी आभा उसकी । ज़ज़्बात उछल से पड़े ,कहीं से हवा सरसरा उठी,कही ब

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तुमसे मिलने की कोशिश में~

4 अक्टूबर 2022
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उम्मीदों का फटा पैरहन ,,बार बार सिलना पड़ता है ,, तुमसे मिलने की कोशिश में ,,किस किस से मिलना पड़ता है ~

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