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बापू

रामधारी सिंह दिनकर

4 अध्याय
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4 पाठक
25 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

जिस समय बापू नोआख़ाली की यात्रा पर थे, उसी समय 'बापू' कविता की रचना हुई थी। बापू नामक कविता संग्रह के रचयिता भारत के प्रसिद्ध कवि और निबन्धकार रामधारी सिंह दिनकर हैं। यह छोटी-सी पुस्तक विराट् के चरणों में वामन का दिया हुआ क्षुद्र उपहार है। दिनकर जी की इस पुस्तक का प्रकाशन 'लोकभारती प्रकाशन' द्वारा किया गया था।  

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पुस्तक के भाग

1

बापू

17 फरवरी 2022
1
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 (१)  संसार पूजता जिन्हें तिलक, रोली, फूलों के हारों से,  मैं उन्हें पूजता आया हूँ बापू ! अब तक अंगारों से ।  अंगार, विभूषण यह उनका विद्युत पी कर जो आते हैं,  ऊँघती शिखाओं की लौ में चेतना नई भर जा

2

महावलिदान

17 फरवरी 2022
1
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चालीस कोटि के पिता चले,  चालीस कोटि के प्राण चले;  चालीस कोटि हतभागों की  आशा, भुजबल, अभिमान चले ।     यह रूह देश की चली, अरे,  माँ की आँखों का नूर चला;  दौड़ो, दौड़ो, तज हमें  हमारा बापू हमसे

3

वज्रपात

17 फरवरी 2022
1
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टूटा पर्वत-मा महावज्र  सब तरह हमारा ह्रास हुआ,  रोने दो, हम मर-मिटे हाय,  रोने दो सत्यानाश हुआ है ।     है तरी भंवर के बीच और  पतवार हाथ से छूट गई;  रोने दो हाय, अनाथ हुए,  रोने दो किस्मत फूट

4

अघटन घटना, क्या समाधान ?

17 फरवरी 2022
1
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उस दिन अभागिनी संध्या की  अभिशप्त गोद में गिरे  देश के पिता,  राष्ट्र के कर्णधार,  जग के नर-सत्तम,  भारत के बापू महान  प्रर्थना-मंच पर इन्द्रप्रस्थ के अंचल में  गोली खाकर ।     कहने में जीभ स

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