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वज्रपात

17 फरवरी 2022

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टूटा पर्वत-मा महावज्र 

सब तरह हमारा ह्रास हुआ, 

रोने दो, हम मर-मिटे हाय, 

रोने दो सत्यानाश हुआ है । 

  

है तरी भंवर के बीच और 

पतवार हाथ से छूट गई; 

रोने दो हाय, अनाथ हुए, 

रोने दो किस्मत फूट गई । 

  

किरणें' समेट फिर नबी एक 

भूतल को कर श्रीहीन चला, 

फिर एक बार मोहन यसुदा को 

सभी भाँति कर दीन चला । 

  

यह अवधपुरी के राम चले, 

वृन्दावन के घनश्याम चले, 

शूली पर चढ़कर चले ईसा (?), 

गौतम प्रबुद्ध, निष्काम चले । 

  

प्यासे को शोणित पिला, तोड़ 

कोई अपनी जंजीर चला, 

दानव के दंशों पर हँसता 

यह स्वर्ग-देश का वीर चला । 

  

धरती को आकुल छोड़, 

मनुजता को करके म्रियमाण चले, 

बापू दे अन्तिम बार जगत को 

हृदय-विदारक दान चले ! 

  

आकाश विभासित हुआ, भूमि से 

हरि का लो ! अवतार चला, 

पृथ्वी को प्यासी छोड़ हाय, 

करुणा का पारावार चला । 

  

चालीस कोटि के पिता चले, 

चालीस कोटि के प्राण चले; 

चालीस कोटि हतभागों की 

आशा, भुजबल, अभिमान चले । 

  

यह रूह देश की चली, अरे, 

माँ की आँखों का नूर चला; 

दौड़ो, दौड़ो, तज हमें 

हमारा बापू हमसे दूर चला । 

  

रोको , रोको, नगराज ! पन्थ, 

भारतमाता चिल्लाती है, 

है जुल्म ! देश को छोड़ देश की 

किस्मत भागी जाती है । 

  

अम्बर की रोको राह, बढ़ो, 

नगराज ! शून्य में जा ठहरो, 

बापू यह भागे जाते हैं, 

चरणों को बढ़ पकड़ो-पकड़ो । 

  

पकड़ो वे दोनों चरण, पकड़ कर 

जिन्हें हमें सौभाग्य मिला, 

पकड़ो वे दोनों चरण, जिन्हें 

छूकर जीवन का कुसुम खिला ! 

  

पकड़ो वे दोनों चरण, दासता 

जिनके सेवन से छुटी, 

पकड़ो वे दोनों पद, जिनसे 

आजादी की गंगा फूटी । 

  

जल रहा देश का अंग-अंग, 

शीतल घन को पकड़ो-पकड़ो, 

भारतमाता कंगाल हुई, 

जीवन-धन को पकड़ो-पकड़ो । 

  

है खड़ा चतुर्दिक काल, 

दासता-मोचन को पकड़ो-पकड़ो, 

आता खा गिरी पछाड़, 

भागते मोहन को पकड़ो-पकड़ो । 

  

है बीच धार में नाव, खबर है 

प्रलय-वायु के आने की, 

थी यही घडी क्या हाय, हमारे 

कर्णधार के जाने की ? 

  

दौड़ो, कोई जा कहो, नाव 

किस्मत की डूबी जाती है, 

बापू ! लौटो, अंचल पसार 

भारतमाता गुहराती है । 

  

किस्मत का पट है तार-तार, 

हा ! इसे कौन सी पायेगा ? 

बापू ! लौटो, यह देश 

तुम्हारे बिना नहीं जी पायेगा ! 

  

अपनी विपन्नता की गाथा 

यह रो-रो किसे सुनायेगी ? 

बापू, लौटो, भारतमाता रो 

बिलख-बिलख मर जायेगी । 

  

दुनिया पूछेगी कुशल हाय, 

किससे क्या बात कहेंगे हम ? 

बापू ! लौटो, सिर झुका 

ग्लानि का कैसे दाह सहेंगे हम ?" 

  

लौटो, अनाथ के नाथ, 

देश की ईति-भीति हरनेवाले ! 

लौटो, हे दयानिकेत देव 

शत पाप क्षमा करनेवाले ! 

  

लौटो, दुखियों के प्राण ! 

नि:स्व के धन ! लौटो निर्बल के बल ! 

लौटो, वसुधा के अमृतकोष ! 

लौटो भारत के गंगाजल है ! 

  

लौटो, बापू ! हम तुम्हें 

मृत्यु का वरण नहीं करने देंगे, 

जीवन-मणि का इस तरह 

काल को हरण नहीं करने देंगे । 

  

लौटो, छूने दो एक बार फिर 

अपना चरण अभयकारी, 

रोने दो पकड़ वही छाती 

जिसमें हमने गोली मारी है । 

  

करुणा की सुनो पुकार, फिरो, 

या अपनी बाँह दिये जाओ, 

संतप्त देश को राम-सदृश 

हे बापू ! साथ लिये जाओ । 

(३१ जनवरी १९४८)  

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रचनाएँ
बापू
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जिस समय बापू नोआख़ाली की यात्रा पर थे, उसी समय 'बापू' कविता की रचना हुई थी। बापू नामक कविता संग्रह के रचयिता भारत के प्रसिद्ध कवि और निबन्धकार रामधारी सिंह दिनकर हैं। यह छोटी-सी पुस्तक विराट् के चरणों में वामन का दिया हुआ क्षुद्र उपहार है। दिनकर जी की इस पुस्तक का प्रकाशन 'लोकभारती प्रकाशन' द्वारा किया गया था।
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बापू

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महावलिदान

17 फरवरी 2022
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चालीस कोटि के पिता चले,  चालीस कोटि के प्राण चले;  चालीस कोटि हतभागों की  आशा, भुजबल, अभिमान चले ।     यह रूह देश की चली, अरे,  माँ की आँखों का नूर चला;  दौड़ो, दौड़ो, तज हमें  हमारा बापू हमसे

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