टूटा पर्वत-मा महावज्र
सब तरह हमारा ह्रास हुआ,
रोने दो, हम मर-मिटे हाय,
रोने दो सत्यानाश हुआ है ।
है तरी भंवर के बीच और
पतवार हाथ से छूट गई;
रोने दो हाय, अनाथ हुए,
रोने दो किस्मत फूट गई ।
किरणें' समेट फिर नबी एक
भूतल को कर श्रीहीन चला,
फिर एक बार मोहन यसुदा को
सभी भाँति कर दीन चला ।
यह अवधपुरी के राम चले,
वृन्दावन के घनश्याम चले,
शूली पर चढ़कर चले ईसा (?),
गौतम प्रबुद्ध, निष्काम चले ।
प्यासे को शोणित पिला, तोड़
कोई अपनी जंजीर चला,
दानव के दंशों पर हँसता
यह स्वर्ग-देश का वीर चला ।
धरती को आकुल छोड़,
मनुजता को करके म्रियमाण चले,
बापू दे अन्तिम बार जगत को
हृदय-विदारक दान चले !
आकाश विभासित हुआ, भूमि से
हरि का लो ! अवतार चला,
पृथ्वी को प्यासी छोड़ हाय,
करुणा का पारावार चला ।
चालीस कोटि के पिता चले,
चालीस कोटि के प्राण चले;
चालीस कोटि हतभागों की
आशा, भुजबल, अभिमान चले ।
यह रूह देश की चली, अरे,
माँ की आँखों का नूर चला;
दौड़ो, दौड़ो, तज हमें
हमारा बापू हमसे दूर चला ।
रोको , रोको, नगराज ! पन्थ,
भारतमाता चिल्लाती है,
है जुल्म ! देश को छोड़ देश की
किस्मत भागी जाती है ।
अम्बर की रोको राह, बढ़ो,
नगराज ! शून्य में जा ठहरो,
बापू यह भागे जाते हैं,
चरणों को बढ़ पकड़ो-पकड़ो ।
पकड़ो वे दोनों चरण, पकड़ कर
जिन्हें हमें सौभाग्य मिला,
पकड़ो वे दोनों चरण, जिन्हें
छूकर जीवन का कुसुम खिला !
पकड़ो वे दोनों चरण, दासता
जिनके सेवन से छुटी,
पकड़ो वे दोनों पद, जिनसे
आजादी की गंगा फूटी ।
जल रहा देश का अंग-अंग,
शीतल घन को पकड़ो-पकड़ो,
भारतमाता कंगाल हुई,
जीवन-धन को पकड़ो-पकड़ो ।
है खड़ा चतुर्दिक काल,
दासता-मोचन को पकड़ो-पकड़ो,
आता खा गिरी पछाड़,
भागते मोहन को पकड़ो-पकड़ो ।
है बीच धार में नाव, खबर है
प्रलय-वायु के आने की,
थी यही घडी क्या हाय, हमारे
कर्णधार के जाने की ?
दौड़ो, कोई जा कहो, नाव
किस्मत की डूबी जाती है,
बापू ! लौटो, अंचल पसार
भारतमाता गुहराती है ।
किस्मत का पट है तार-तार,
हा ! इसे कौन सी पायेगा ?
बापू ! लौटो, यह देश
तुम्हारे बिना नहीं जी पायेगा !
अपनी विपन्नता की गाथा
यह रो-रो किसे सुनायेगी ?
बापू, लौटो, भारतमाता रो
बिलख-बिलख मर जायेगी ।
दुनिया पूछेगी कुशल हाय,
किससे क्या बात कहेंगे हम ?
बापू ! लौटो, सिर झुका
ग्लानि का कैसे दाह सहेंगे हम ?"
लौटो, अनाथ के नाथ,
देश की ईति-भीति हरनेवाले !
लौटो, हे दयानिकेत देव
शत पाप क्षमा करनेवाले !
लौटो, दुखियों के प्राण !
नि:स्व के धन ! लौटो निर्बल के बल !
लौटो, वसुधा के अमृतकोष !
लौटो भारत के गंगाजल है !
लौटो, बापू ! हम तुम्हें
मृत्यु का वरण नहीं करने देंगे,
जीवन-मणि का इस तरह
काल को हरण नहीं करने देंगे ।
लौटो, छूने दो एक बार फिर
अपना चरण अभयकारी,
रोने दो पकड़ वही छाती
जिसमें हमने गोली मारी है ।
करुणा की सुनो पुकार, फिरो,
या अपनी बाँह दिये जाओ,
संतप्त देश को राम-सदृश
हे बापू ! साथ लिये जाओ ।
(३१ जनवरी १९४८)