आज सुबह जब ऑफिस को निकली तो लगा जैसे बारिश ने छुट्टी ले रखी हो। अपनी एक्टिवा से सड़क पर धीरे-धीरे चलते हुए सोच रही थी कि चलो कम से कम से हर दिन की बारिश की किचपिच से राहत तो मिली। लेकिन मेरा सोचना गलत था। सड़क पर बारिश रुकने से धूल भरी आंधी चल रही थी, गाड़ी-मोटर इतनी धूल उड़ा रहे थे कि उनके पीछे-पीछे चलना मुश्किल हो रहा है। आँखों में धूल के कण घुसने से आँखों से पानी बह रहा था, नाक से छींक फूट रही थी। बड़ी मुश्किल ऑफिस पहुँची तो लगा इससे तो अच्छी बारिश ही होती रहती, कम से कम इस धूल -धक्कड़ से बचे रहते। ऑफिस पहुँचकर सबसे पहले आंख-नाक अच्छे से साफ़ किये तो थोड़ी राहत पहुँची। बारिश रुकने के बाद भी सड़कों का हाल-बेहाल हो जाता है। सड़क पर लोगों का गाड़ी चलाना मुश्किल तो होता ही है, पैदल चलने वालों को भी बड़ी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। सड़क पर धूल उड़ने से दमा, फेफड़े, एलर्जी से पीड़ित व्यक्तियों को सबसे ज्यादा तकलीफ होती हैं। डॉक्टर भी ऐसे में लोगों को सड़क पर चलते हुए उड़ते धूल के कणों से अपनी आंख-नाक को बचाने की सलाह देते हैं।
मुझे धूल से बड़ी एलर्जी हैं, इसलिए मैं ऑफिस में काम करते हुए भगवान से शाम को घर लौटते समय रिमझिम बारिश के लिए प्रार्थना करती रही। कहते हैं न कि सच्चे मन ईश्वर से प्रार्थना करो तो उनके दरबार तक आवाज जरूर पहुँचती हैं। शाम को जैसे ही घर को निकली तो रिमझिम बदरा बरसने लगे तो मन को बड़ी ख़ुशी मिली कि ईश्वर ने मेरी आवाज सुन ली। बरसाती ओढ़कर ख़ुशी-ख़ुशी मैं घर को निकल पड़ी। बारिश में पिकनिक का आनंद लेते हुए मैं धीरे-धीरे अपनी एक्टिवा चला रही थी। अचानक तेज बारिश हुई तो सड़क पर पानी भरने लगा। जब कोई बड़ा वाहन पास से गुजरता उसके पहियों की छपाक से पानी मेरे ऊपर क्या उंडेलकर जाता कि लगता जैसे कमबख्त होली खेलने निकला हो। बारिश होती हैं तो मुसीबत और न हो तो भी मुसीबत। ऐसे हालात में कुछ सूझता नहीं कि "रोऊँ की हँसूं करूँ तो क्या करूँ?