मेरी एक सहेली अभी दो दिन पूर्व अमरनाथ यात्रा पर निकली है। आज शाम करीब 5.30 बजे जब अमरनाथ में बादल फटने की जानकारी मिली तो तब से बहुत परेशान हूँ। ऑफिस से घर आकर कई बार मोबाइल लगा चुकी हूँ लेकिन लग नहीं रहा है तो बड़ी चिंता हो रही है। व्हाट्सएप पर भी मैसेज किया है, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। टीवी पर समाचार देखकर मन बड़ा घबरा रहा है। सुना है जब बादल फटा उस समय गुफा के पास 10 से 15 हजार श्रद्दालु मौजूद थे। सुना है कि पहाड़ों से तेज बहाव के साथ आए पानी से श्रद्धालुओं के लिए लगाए गए करीब 25 टेंट और दो-तीन लंगर बह गए हैं जिसमें १३ लोगों की मौत और करीब ४० श्रद्धालुओं के बहने की आशंका जताई जा रही है। भोलेनाथ से सब ठीक होने की प्रार्थना कर रही हूँ और इधर-उधर फ़ोन से उससे संपर्क करने की कोशिश में लगी हूँ।
वर्षा ऋतु में बारिश का हम सभी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं क्योंकि वर्षा होती है तो खेती फलती-फूलती है, जिससे अकाल नहीं पड़ता है। अनाज महँगा नहीं होता है। बादल बरसते हैं तो नदी, ताल, पोखर पानी से भर जाते हैं, जिससे जीवधारियों के साथ ही चातक की भी प्यास शांत होती हैं। बारिश होती है तो धरती का कूड़ा-कचरा धुल जाता है और सम्पूर्ण वायुमंडल शीतल और सुखद हो जाता है। धरती हरी-भरी होकर मन को लुभाती है। लेकिन यदि अतिवृष्टि हुई तो जल-प्रलय का भयंकर रूप सबसे दुःखदायी बन जाता है। दूर-दूर तक पानी ही पानी। सड़क, मकान, गाडी-मोटर, पेड़-पौधे सब जल मग्न। जीवन भर की संचित सम्पत्ति पल भर में बह जाती है। लोग अपने ही घरों से बेघर हो जाते है। सड़क और झुग्गी-झोपड़ियों में जीवन व्यतीत करने वाले लोगों का तो सबसे बुरा हाल होता है। उनका उठना-बैठना, सोना-जागना, खाना-पीना सब दुश्वार हो जाता है। जलवृष्टि से जो आपदा उत्पन्न होती है उसका स्वरुप जीवजगत के लिए कितना भयावाह होता है, उसकी कल्पना मात्र से मन सिहर उठता है।