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हरियाली का पर्व है हरेला

17 जुलाई 2022

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इन दिनों हमारे पहाड़ी प्रदेश उत्‍तराखंड में हरेला पर्व की धूम मची है। यह पर्व हमें प्रकृति से जोड़ता है। हरेला का मतलब हरियाली से है, यानि हरियाली का त्यौहार। ग्रीष्म के बाद वर्षा ऋतु के आगमन से प्रकृति में चारों तरफ हरियाली फ़ैल जाती है। ऐसे समय में जब रिमझिम बरसते हुए सावन का पहला दिन  आता है तो हरेला पर्व मनाया जाता है। इसको मनाने से ९-१० पहले इसकी तैयारी की जाती है, जिसमें 5-7 तरह के बीज- गेहूँ, मक्‍का, उड़द, सरसों और सेम आदि को एक बांस की टोकरी में बोया जाता है, जिसमें प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा पानी छिड़का जाता है, जिससे 3 से 4 दिन बाद अंकुरण के बाद यह ९-१० बाद यह  छोटे-छोटे पौधों का रूप धारण कर लेते हैं, जिन्हे स्थानीय भाषा में 'हरेला' कहा जाता है। इन हरे-भरे पौधों को काटकर इनके बीचों-बीच शिव-पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की प्रतिमा स्‍थापित कर अलग-अलग तरह के फल रखकर विधिवत पूजन किया जाता है। घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं, जो सबसे पहले इष्‍टदेव को चढ़ाए जाते हैं। इसके बाद घर के बड़े-बुजुर्ग सिर पर हरेला त‍िनकों को रखते हुए आशीर्वाद देते हैं।

श्रावण माह भगवान शंकर का सबसे प्रिय माह माना गया है। यह सर्वविदित है कि पहाड़ों पर ही भगवान शंकर का वास है। इसलिए हमारे उत्तराखण्ड में श्रावण माह में पड़ने वाले यह हरेला पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।  इसके अलावा इसे पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में मनाया जाता है। हरेला शब्द प्रकृति के सबसे करीब है, जो कि हरियाली का पर्याय है। हमारा पर्यावरण शुद्ध हो, इसके लिए इस पर्व पर लोग बड़े पैमाने पर विभिन्न प्रकार के छायादार व फलदार पौधे रोपकर उनके संरक्षण का संकल्प लेते हैं।

विष्णु-धर्म-सूत्र के अनुसार, ‘एक व्यक्ति द्वारा पालित-पोषित वृक्ष एक पुत्र के समान या उससे भी कहीं अधिक महत्व रखता है क्योंकि संतान तो पथभ्रष्ट भी हो सकती है, लेकिन वृक्ष पथभ्रष्ट नहीं होते। वृक्ष यदि फलदार है तो वह अवश्य फल देगा और यदि नहीं है तो भी छाया और ऑक्सीजन के साथ ही बूटी, पत्ते और लकड़ी तो अवश्य देती ही है। मनुष्य और प्रकृति का संतुलन बना रहे, इसके लिए आज प्रत्येक देश के हर एक नागरिक को अपने आसपास के क्षेत्र में पेड़-पौधे लगाने की आवश्यकता है, ताकि शुद्ध वायु मिलने से आयु बढ़े। जब धरती पर पेड़-पौधे लगेंगे और हरियाली छायेगी तो पर्यावरण-संकट के बादल स्वतः ही छंट जायेंगे और मनुष्य स्वस्थ जीवन जी सकेगा।

आइए! इस हरियाली के पर्व 'हरेला' में आप भी मेरे साथ-साथ पौधरोपण कर उसके संरक्षण का संकल्प करें।

काव्या सोनी

काव्या सोनी

Accha lga हरेला के बारे जानकर बहुत अच्छी प्रस्तुति है❤️

18 जुलाई 2022

Pradeep Tripathi

Pradeep Tripathi

बहुत अच्छा संकल्प।

17 जुलाई 2022

17 जुलाई 2022

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रचनाएँ
वर्षा ऋतु की बातें (दैनन्दिनी-जुलाई, 2022)
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जब ग्रीष्म ऋतु में सूरज के भीषण ताप से सम्पूर्ण धरती के साथ ही जीव-जंतु झुलस कर आकुल-व्याकुल हो उठते हैं तब समस्त जीव-जगत को वर्षा ऋतु के आगमन की प्रतीक्षा रहती है और जैसे ही आकाश में बादल आकर बरसते हैं तो झुलसी, मुरझाई धरती और जीव-जगत में नवजीवन संचरित हो उठता है। वर्षा की फुहार पड़ते ही प्रकृति अपना यौवन प्राप्त कर लेती है और जीव जगत को जीवन का आधार जल मिलता है, तो उनका मन भी प्रफुल्लित हो उठता है। वर्षा ऋतु के सुखद और भयावह दोनों रूप हमें देखने को मिलते हैं। इसी सन्दर्भ में कुछ बातें जुलाई माह की इस दैनंदिनी में आपको देखने-पढ़ने को मिलेंगी।
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वर्षा ऋतु में आहार-विहार

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वर्षा ऋतु में वायु का विशेष प्रकोप तथा पित्त का संचय होता है। वर्षा ऋतु में वातावरण के प्रभाव के कारण स्वाभाविक ही जठराग्नि मंद रहती है, जिसके कारण पाचनशक्ति कम हो जाने से अजीर्ण, बुखार, वायुदोष का प्

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नगरीय निकाय और कोचिंग चुनाव का एक दिन

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कल बुधवार को नगर निगम चुनाव का मतदान दिवस था, जिसके लिए शासकीय अवकाश घोषित किया गया था। पिछले तीन-चार दिन तेज बारिश का दौर चल पड़ा था, जिस कारण बुधवार को मतदान के लिए कई जनप्रतिनिधि और उम्मीदवार बड़

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वर्षा का भयावाह रूप है अतिवृष्टि

8 जुलाई 2022
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मेरी एक सहेली अभी दो दिन पूर्व अमरनाथ यात्रा पर निकली है। आज शाम करीब 5.30 बजे जब अमरनाथ में बादल फटने की जानकारी मिली तो तब से बहुत परेशान हूँ। ऑफिस से घर आकर कई बार मोबाइल लगा चुकी हूँ लेकिन लग नहीं

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आकाशीय बिजली गिरने की घटना की याद

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इन दिनों देश के कई हिस्सों में बारिश कहर बनकर टूट रहा है। अभी दो दिन पहले शनिवार को देर रात हमारे भोपाल में भारी बारिश और बादलों की भयानक डरावनी गड़गड़ाहट के साथ कड़कती बिजली की तीखी आवाज ने नींद हराम कर

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मर्यादा में ही सब अच्छे, पानी हो या कि हवा

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ग्रीष्मकाल आया तो सूरज की तपन से समस्त प्राणी आकुल-व्याकुल हो उठे। खेत-खलियान मुरझाने और फसल कुम्हालाने लगी। घास सूखने और फूलों का सौन्दर्य-सुगंध तिरोहित होने लगा।  दुपहरी की तपन से छोटे-बड़े पेड़-

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आओ हम सब झूला झूलें पेंग बढ़ाकर नभ को छू लें

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सावन आते ही कभी धूप तो कभी मूसलाधार बारिश से मौसम बड़ा सुहावना हो गया है। झमाझम बरसते बदरा को देख हरे-भरे पेड़-पौधों के बीच छुपी कोयल की मधुर कूक, आसमान से जमीं तक पहुँचती इन्द्रधनुषी सप्तरंगी छटा,

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हरियाली का पर्व है हरेला

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बाबा भोलेनाथ का पहला सावन सोमवार

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आज सावन का पहला सोमवार था। सावन माह में सोमवार का विशेष महत्व माना जाता है।   माना जाता है सावन माह के हर सोमवार के दिन भगवान भोलेनाथ अपने सूक्ष्म रुप में मंदिर में विराजमान रहते हैं। माना जाता है

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बारिश से गड्ढों में तब्दील हुई सड़कें दुर्घटना का कारण बनते हैं

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आज शाम को जैसे ही ऑफिस से घर निकल रही थी तो अचानक तेज बारिश शुरू हो गयी।  जब काफी देर तक बारिश बंद नहीं हुई तो अँधेरा होता देख मैंने बरसाती पहनी और घर को को निकल पड़ी। तेज बारिश के कारण जगह-जगह सड़क पर

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आज सुबह जब ऑफिस को निकली तो लगा जैसे बारिश ने छुट्टी ले रखी हो।  अपनी एक्टिवा से सड़क पर धीरे-धीरे चलते हुए सोच रही थी कि चलो कम से कम से हर दिन की बारिश की किचपिच से राहत तो मिली। लेकिन मेरा सोचना

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आज सुबह-सुबह दरवाजे के घंटी बजी तो देखा कि हमारे पड़ोस की बिल्डिंग में रहने वाली एक महिला खड़ी थी। उसे देखकर मैंने उसे बैठने को कहा तो वे कहने लगी कि वह नहा-धोकर सीधे हमारे घर आयी है, फुर्सत में कभी

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बरसात का मौसम आते ही शासन स्तर से लेकर कई सामाजिक संस्था, समाचार पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से लोगों को पेड़-पौधे लगाने के लिए प्रेरित किया जाता है। क्योंकि पेड़-पौधे लगाने के लिए बरसात का समय सर्वथा उपयु

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