इन दिनों हमारे पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में हरेला पर्व की धूम मची है। यह पर्व हमें प्रकृति से जोड़ता है। हरेला का मतलब हरियाली से है, यानि हरियाली का त्यौहार। ग्रीष्म के बाद वर्षा ऋतु के आगमन से प्रकृति में चारों तरफ हरियाली फ़ैल जाती है। ऐसे समय में जब रिमझिम बरसते हुए सावन का पहला दिन आता है तो हरेला पर्व मनाया जाता है। इसको मनाने से ९-१० पहले इसकी तैयारी की जाती है, जिसमें 5-7 तरह के बीज- गेहूँ, मक्का, उड़द, सरसों और सेम आदि को एक बांस की टोकरी में बोया जाता है, जिसमें प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा पानी छिड़का जाता है, जिससे 3 से 4 दिन बाद अंकुरण के बाद यह ९-१० बाद यह छोटे-छोटे पौधों का रूप धारण कर लेते हैं, जिन्हे स्थानीय भाषा में 'हरेला' कहा जाता है। इन हरे-भरे पौधों को काटकर इनके बीचों-बीच शिव-पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की प्रतिमा स्थापित कर अलग-अलग तरह के फल रखकर विधिवत पूजन किया जाता है। घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं, जो सबसे पहले इष्टदेव को चढ़ाए जाते हैं। इसके बाद घर के बड़े-बुजुर्ग सिर पर हरेला तिनकों को रखते हुए आशीर्वाद देते हैं।
श्रावण माह भगवान शंकर का सबसे प्रिय माह माना गया है। यह सर्वविदित है कि पहाड़ों पर ही भगवान शंकर का वास है। इसलिए हमारे उत्तराखण्ड में श्रावण माह में पड़ने वाले यह हरेला पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा इसे पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में मनाया जाता है। हरेला शब्द प्रकृति के सबसे करीब है, जो कि हरियाली का पर्याय है। हमारा पर्यावरण शुद्ध हो, इसके लिए इस पर्व पर लोग बड़े पैमाने पर विभिन्न प्रकार के छायादार व फलदार पौधे रोपकर उनके संरक्षण का संकल्प लेते हैं।
विष्णु-धर्म-सूत्र के अनुसार, ‘एक व्यक्ति द्वारा पालित-पोषित वृक्ष एक पुत्र के समान या उससे भी कहीं अधिक महत्व रखता है क्योंकि संतान तो पथभ्रष्ट भी हो सकती है, लेकिन वृक्ष पथभ्रष्ट नहीं होते। वृक्ष यदि फलदार है तो वह अवश्य फल देगा और यदि नहीं है तो भी छाया और ऑक्सीजन के साथ ही बूटी, पत्ते और लकड़ी तो अवश्य देती ही है। मनुष्य और प्रकृति का संतुलन बना रहे, इसके लिए आज प्रत्येक देश के हर एक नागरिक को अपने आसपास के क्षेत्र में पेड़-पौधे लगाने की आवश्यकता है, ताकि शुद्ध वायु मिलने से आयु बढ़े। जब धरती पर पेड़-पौधे लगेंगे और हरियाली छायेगी तो पर्यावरण-संकट के बादल स्वतः ही छंट जायेंगे और मनुष्य स्वस्थ जीवन जी सकेगा।
आइए! इस हरियाली के पर्व 'हरेला' में आप भी मेरे साथ-साथ पौधरोपण कर उसके संरक्षण का संकल्प करें।