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बेटी

Anju

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बेटी से ही घर की रोशनी। बेटी से ही घर में रौनक। बेटी ही तो है जो हर हाल में अपनो का साथ देती हैं। परन्तु बेटी अपना कर्तव्य निभाते हुए ये भूल जाती हैं कि जिस घर वो विदा होके गई है। वो भी तो उसी का कब से राह देख रहा था। बेटी,बहन,और माँ का दिल से रिश्ता निभाती हैं। अपनी हर जिम्मेदारी निभाती हैं। जैसे ही बेटी से बहूँ बन जाती हैं। सारे रिश्ते नाते भूल जाती हैं। अपनी जिम्मेदारी भूल जाती हैं। उनके लिए फिर कोई रिश्ता नही रहता। रहता है तो भी बेटी बन कर अपने माता पिता के लिए बस और जहाँ बहूँ बन कर गई वहाँ उनसे बड़ा योदान कोई नहीं समझ पाता है। साँस और ससुर को ताने और माँ पिता जी को नमन करती हैं।। सासँ ससुर को एक समय का खाना खिलाते जोर और माँ पिता जी को बडे आदत से भोजन सही समय पर। सासँ ससुर को उलटा बोलना और माँ पिता के सामने एक दम शांत। क्या बेटी केवल अपने माता पिता की ही होती हैं। ससुराल में उनके जो साँस और ससुर होते हैं उनकी बेटी नही....... उनकी केवल बहू ही होती हैं। ये प्रथा कैसी अजीब सी है। दोनों पक्ष में एक ही लोगों को अलग -अगर रुप क्यों। बेटी अपने घर से जिस घर जाती हैं। वहाँ भी इंसान खुद के दिलों में कोई तो अच्छा सोच कर बैठे होगे अपनी बहूँ के लिए। फिर ये बेटी और बहू में फर्क इतना क्यों? ये नहीं जान पायी मैं। कही साँस अच्छी तो बहू क्यो नही। और बहू अच्छी तो साँस क्यों नहीं समझ पाती एक दूसरे को। सच सामने होते हुए भी बस बेटी ही बेटी। एक सच ये भी है वही बेटी किसी की बहू भी है दोनों एक होते हुए भी बस नाम से इतना फर्क पड़ता है ऐसा सिर्फ एक अनोखी सी बात लगती है। 

bettii

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