shabd-logo

भाग -11

7 जून 2022

32 बार देखा गया 32

ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन उसी अगस्ताश्रम के पास आधी रात के समय हम एक आदमी को टहलते हुए देखते हैं। हम नहीं कह सकते कि यह कौन तथा किस रंग-ढंग का आदमी है, हाँ, इसके कद की ऊँचाई से साफ मालूम होता है कि यह औरत नहीं है बल्कि मर्द है मगर यह नहीं मालूम पड़ता कि अपनी पोशाक के अन्दर यह किस ठाठ से है अर्थात् यह आदमी जिसने स्याह लबादे से अपने को अच्छी तरह छिपा रखा है सिपाहियों और बहादुरों की तरह के हर्बे-हथियारों से सजा हुआ है या चोरों की तरह संधियों और हत्थियों वगैरह से। जो हो, हमें इसके ब्यौरे से इस समय कोई मतलब नहीं, हमें सिर्फ इतना ही कहना है कि यह यद्यपि टहल कर अपना समय बिता रहा है मगर इसमें कोई शक नहीं कि अपने को हर तरह से छिपाए रखने की भी कोशिश कर रहा है। दिन का मुकाबला करने वाली चाँदनी यद्यपि अच्छी तरह छिटकी हुई है मगर उस अंधकार को दूर करने की शक्ति उसमें नहीं है जो इस समय पेड़ों के झुरमुट के अन्दर पैदा हो रहा है और जिससे उस टहलने वाले व्यक्ति को अच्छी सहायता मिल रही है। अगस्ताश्रम की तरफ घड़ी-घड़ी अटक कर देखने और आहट लेने से यह भी मालूम होता है कि वह किसी आने वाले की राह देख रहा है।

इसे टहलते हुए घंटा भर से ज्यादा हो गया और तब इसने दो आदमियों को आते और अगस्ताश्रम की तरफ जाते देखा ये दोनों कद के छोटे तथा ढाल-तलवार तथा तीर-कमान से ससज्जित थे मगर इनकी पोशाक के बारे में हम इस समय किसी तरह की निंदा या प्रशंसा नहीं कर सकते।

मालूम होता है कि वह टहलने वाला स्याहपोश इन्हीं दोनों आदमियों का इंतजार कर रहा था क्योंकि जैसे ही वे दोनों अगस्ताश्रम की चारदीवारी के अन्दर घुसे वैसे ही इसने उनका पीछा किया। उनके कुछ ही देर बाद यह स्याहपोश भी चारदीवारी के अन्दर जा पहुँचा मगर वहाँ उन दोनों पर निगाह न पड़ी। पहिले इसने मंदिर के चारों तरफ की परिक्रमा की और उन दोनों को ढूँढ़ा और जब पता न लगा तब मंदिर के अन्दर पैर रखा मगर वहाँ भी कोई न था।

हम पहिले कह आए हैं कि यह मंदिर बहुत छोटा और साधारण था अतएव इसके अन्दर किसी को खोजने में विलंब करना बेशक् पागलपन समझा जा सकता है मगर उस स्याहपोश ने इसका कुछ भी विचार न किया और खूब अच्छी तरह खोज डाला यहाँ तक कि उस छोटे-से कुंड में भी तलवार डाल कर जाँच लिया जिसमें हरदम पानी भरा रहता था।

उस स्याहपोश को बड़ा जी ताज्जुब हुआ और आश्चर्य के साथ सोचने लगा-“वे दोनों आदमी कहाँ गायब हो गए! इस छोटे-से मंदिर में किसी तरह छिप नहीं सकते, इसके अतिरिक्त वहाँ विशेष अँधकार भी नहीं है क्योंकि सभा मंडप में चंद्रमा की चाँदनी जो आड़ होकर पहुँच रही है उसकी चमक से मंदिर के अन्दर का अंधकार भी इस योग्य नहीं रह गया है कि अपनी स्याह चादर के अन्दर भी किसी को छिपा सके, अस्तु यही कहना पड़ता है कि यहाँ की जमीन उन दोनों को खा गई। जो हो, इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह मंदिर मेरे दुश्मन का मुँह है। खैर कोई चिंता नहीं, अब मैं बाहर चलता हूँ क्योंकि गरमी से जी व्याकुल हो रहा है तिस पर भारी पोशाक् ने और भी तंग कर रखा है।”

इस तरह की बातें सोचता और कुछ बुदबुदाता हुआ वह आदमी मंदिर के बाहर निकला और फिर उसी जगह पेड़ों की झुरमुट और आड़ में जा पहुँचा जहाँ हम इसे पहले टहलते हुए देख चुके हैं। इस समय यहाँ एक आदमी और खड़ा है जिसके चेहरे पर नकाब पड़ी हुई थी और जिसे देखते ही उस स्याहपोश ने पूछा, “केम?” इसके जवाब में उसने कहा, “चहा।”

जवाब सुनते ही स्याहपोश ने अपने ऊपर से स्याह लबादा उतार कर उसके हवाले किया और कहा, “अब मैं इसे नहीं ओढ़ सकता क्योंकि इस गरमी में तकलीफ होने के सिवाय अब इसकी जरूरत भी न रही, मैं भूतनाथ की सूरत में अच्छा हूँ मुझे कोई पहिचानने वाला नहीं। केवल गुलाबसिंह और प्रभाकर सिंह के खयाल से ओढ़ लिया था सो उनके मिलने की अब कोई उम्मीद नहीं रही!”

दूसरे नकाबपोश ने यह लबादा ले लिया और जवाब में कहा, “मेरे लिए अब क्या आज्ञा होती है?”

ाठक अब समझ गए हों कि यह स्याहपोश वास्तव में भूतनाथ है अस्तु उसने अपने साथी नकाबपोश से कहा, “तुम्हारी यहाँ कोई जरूरत नहीं रही, तुम जाओ जो कुछ मैं पहिले हुक्म दे चुका हूँ उसी के अनुसार काम करो, मैं जब यहाँ से जल्दी नहीं टल सकता क्योंकि इस मंदिर ने मुझे अपने जाल में फँसा लिया है।

नकाबपोश चला गया और भूतनाथ फिर उसी अंधकार में टहलने लगा। कुछ देर बाद उस मंदिर में अन्दर से दो आदमी बाहर निकले और दक्खिन की तरफ चल पड़े। हम नहीं कह सकते कि ये वे ही थे जो पहिले मंदिर में जाकर गायब हो गए थे अथवा कोई दूसरे।

भूतनाथ ने उन दोनों का पीछा किया मगर बड़ी कठिनता से अपने को छिपाता और उन्हें देखता हुआ जाने लगा क्योंकि चाँदनी उसके काम में बाधा डाल रही थी। लगभग आधा कोस जाने के बाद वे दोनों एक ऐसी जगह पहुँचे जहाँ की जमीन पत्थर के बड़े-बड़े ढोकों से कुछ भयानक-सी हो रही थी उसी जगही खोह का एक मुहाना भी था जिसे भूतनाथ ने सहज ही में समझ लिया और यह इरादा कर लिया कि इन दोनों को यहाँ पर खोह के अन्दर घुसने के पहिले ही रोक लेना चाहिए, ताज्जुब नहीं कि खोह के अन्दर जाने पर ये फिर मेरे हाथ न लगें।

वे दोनों आदमी खोह के मुहाने पर पहुँच कर रुके और आपस में कुछ बातें करने लगे। उसी समय भूतनाथ उनके पास जाकर खड़ा हो गया और यह देखकर कि उसके चेहरे पर नकाब पड़ी हुई है बोला, “तुम दोनों कौन हो?”

एक : तुम्हें इससे मतलब?

भूतनाथ : मतलब यही है कि यह स्थान हमारी हुकूमत के अन्दर है और हम जानना चाहते हैं कि तुम दोनों कौन हो और तुम्हारे उस अगस्ताश्रम के मंदिर जाने-आने का कारण क्या है?

एक : न तो इस सरजमीन के तुम मालिक ही हो और न ही तुम्हें कुछ पूछने का कोई अधिकार ही है। जिस तरह एक बेईमान और नमक हराम ऐयार बेईज्जती के साथ अपनी जिंदगी बिता सकता है उसी तरह तुम भी अपनी जिंदगी के दिन बिताने के सिवाय और कुछ नहीं कर सकते। हम खूब जानते हैं कि तुम्हारा नाम गदाधरसिंह है और अब अपनी असलियत को छिपाते हुए तुम भूतनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ चाहते हो!

भूतनाथ : (गुस्से से पेच खाकर) मालूम होता है कि तुम दोनों की शामत आई है जिससे मेरी बातों के साफ-साफ जवाब न देकर जली-कटी बातें करते और मुझे गदाधरसिंह के नाम से संबोधन करते हो। मैं नहीं जानता कि गदाधरसिंह किस चिड़िया का नाम है पर संभव है कि यह कोई भेद की बात हो, इसलिए मैं गदाधरसिंह के बारे में कुछ नहीं पूछता और एक दफे तुम्हारी इस ढिठाई को माफ करके फिर कहता हूँ कि तुम दोनों आदमी अपना परिचय दो नहीं तो…

एक : नहीं तो क्या, तुम हमारा कर ही क्या सकते हो? पहिले तुम अपनी जान बचाने का बंदोबस्त तो कर लो। हम लोग तुम्हारी झूठी बातों से धोखा नहीं खा सकते, बस चले जाओ और अपना काम करो, हम लोगों का पीछा करके तुम अच्छा नतीजा नहीं निकाल सकते।

भूतनाथ खिलखिलाकर हँस पड़ा और उसने फिर पूछा।

भूतनाथ : मैं समझता हूँ कि तुम दोनों मर्द नहीं बल्कि औरत हो। खैर इससे भी कोई मतलब नहीं। मैं वह आदमी नहीं हूँ जो किसी तरह का मुलाहिजा कर जाऊँ, इस तलवार को देख लो और जल्द बताओ कि तुम कौन हो!

इतना कहकर भूतनाथ ने म्यान से तलवार निकाल ली मगर उन दोनों का दिल फिर भी न हिला और एक ने पुन: कड़क कर भूतनाथ से कहा- “चल दूर हो मेरे सामने से। तेरी निर्लज्ज तलवार से हम डर नहीं सकते! समझ ले कि तू इस ढिठाई की सजा पावेगा और पछतावेगा।”

इसके जवाब में भूतनाथ ने हाथ बढ़ाकर एक की कलाई पकड़ ली, मगर साथ ही इसके दूसरे नकाबपोश ने भूतनाथ पर छुरी का वार किया जिसके लिए शायद वह पहिले ही से तैयार था। वह छुरी यद्यपि बहुत बड़ी न थी मगर भूतनाथ उसकी चोट खाकर सम्हल न सका। छुरी भूतनाथ के बगल में चार अंगुल धंस गई और साथ ही भूतनाथ यह कहता हुआ जमीन पर गिर पड़ा-“ओफ, यह जहरीली छुरी…।”

13
रचनाएँ
भूतनाथ खण्ड -1
0.0
भूतनाथ बाबू देवकीनंदन खत्री का तिलस्मि उपन्यास है। चन्द्रकान्ता सन्तति के एक पात्र को नायक का रूप देकर देवकीनन्दन खत्री जी ने इस उपन्यास की रचना की। किन्तु असामायिक मृत्यु के कारण वे इस उपन्यास के केवल छः भागों लिख पाये उसके बाद के अगले भाग को उनके पुत्र दुर्गाप्रसाद खत्री ने लिख कर पूरा किया।
1

भाग -1

7 जून 2022
15
1
1

मेरे पिता ने तो मेरा नाम गदाधर सिंह रखा था और बहुत दिनों तक मैं इसी नाम से प्रसिद्ध भी था परन्तु समय पड़ने पर मैंने अपना नाम भूतनाथ रख लिया था और इस समय यही नाम बहुत प्रसिद्ध हो रहा है। आज मैं श्रीमान

2

भाग -2

7 जून 2022
5
0
0

प्रभाकर सिंह पीछे-पीछे चले आते थे, यकायक कैसे और कहाँ गायब हो गये? क्या उस सुरंग में कोई दुश्मन छिपा हुआ था जिसने उन्हें पकड़ लिया? या उन्होंने खुद हमें धोखा देकर हमारा साथ छोड़ दिया? इत्यादि तरह-तरह

3

भाग -3

7 जून 2022
2
0
0

बेचारी इंदुमति बड़े ही संकट में पड़ गई है। प्रभाकर सिंह का इस तरह यकायक गायब हो जाना उसके लिए बड़ा ही दुःखदायी हुआ इस समय उसके आगे दुनिया अंधकार हो रही है। उसे कहीं भी किसी तरह का सहारा नहीं सूझता। उस

4

भाग -4

7 जून 2022
2
0
0

अब हम यहाँ पर कुछ हाल प्रभाकर सिंह का लिखना जरूरी समझते हैं। पहिले बयान में हम लिख आए हैं कि ‘प्रभाकर सिंह इंदुमति और गुलाबसिंह को लेकर भूतनाथ अपनी घाटी में गया तो रास्ते में सुरंग के अन्दर से यकायक प

5

भाग -5

7 जून 2022
3
0
0

संध्या का समय था जब नकली प्रभाकर सिंह इंदुमति को बहका कर और धोखा देकर भूतनाथ की विचित्र घाटी से उसी सुरंग की राह ले भागा जिधर से वे लोग गए थे। उस समय इंदुमति की वैसी ही सूरत थी जैसी कि हम पहिले बयान म

6

भाग -6

7 जून 2022
2
0
0

जब इंदु होश में आई और उसने आँखें खोलीं तो अपने को एक सुन्दर मसहरी पर पड़े पाया और मय सामान कई लौडियों की खिदमत के लिए हाजिर देखकर ताज्जुब करने लगी। आँख खुलने पर इंदु ने एक ऐसी औरत को भी अपने सामने इज

7

भाग -7

7 जून 2022
1
0
0

प्रभाकर सिंह को इस घाटी में आए यद्यपि आज लगभग एक सप्ताह हो गया मगर दिली तकलीफ के सिवाय और किसी बात की उन्हें तकलीफ नहीं हुई। नहाने-धोने, खाने-पीने, सोने-पहिरने इत्यादि सभी तरह का आराम था परन्तु इंदु क

8

भाग - 8

7 जून 2022
1
0
0

आज प्रभाकर सिंह उस छोटी-सी गुफा के बाहर आए हैं और साधारण रीति पर वे प्रसन्न मालूम होते हैं। हम यह नहीं कह सकते कि वे इतने दिनों तक निराहार या भूखे रह गए होंगे क्योंकि उनके चेहरे से किसी तरह की कमजोरी

9

भाग -9

7 जून 2022
1
0
0

तीन दिन नहीं बल्कि पाँच दिन तक मेहमानी का आनन्द लूट कर आज प्रभाकर सिंह उस अद्भुत खोह के बाहर निकले हैं। इन पाँच दिनों के अन्दर उन्होंने क्या-क्या देखा-सुना, किस-किस स्थान की सैर की, किस-किस से मिले-जु

10

भाग - 10

7 जून 2022
2
0
0

रात लगभग ग्यारह घड़ी के जा चुकी है। भूतनाथ, गुलाबसिंह और प्रभाकर सिंह उत्कंठा के साथ उस (अगस्तमुनि की) मूर्ति की तरफ देख रहे हैं। एक आले पर मोमबत्ती जल रही है जिसकी रोशनी से उस मंदिर के अन्दर की सभी च

11

भाग -11

7 जून 2022
1
0
0

ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन उसी अगस्ताश्रम के पास आधी रात के समय हम एक आदमी को टहलते हुए देखते हैं। हम नहीं कह सकते कि यह कौन तथा किस रंग-ढंग का आदमी है, हाँ, इसके कद की ऊँचाई से साफ मालूम होता है कि

12

भाग - 12

7 जून 2022
1
0
0

दिन पहर-भर से ज्यादा चढ़ चुका था जब भूतनाथ की बेहोशी दूर हुई और वह चैतन्य होकर ताज्जुब के साथ चारों तरफ निगाहें दौड़ाने लगा। उसने अपने को एक ऐसा कैदखाने में पाया जिसमें से उसकी हिम्मत और जवाँमर्दी उसे

13

भाग -13

7 जून 2022
1
0
0

रात आधी से ज्यादा बीत जाने पर भी कला, बिमला और इंदुमति की आँखों में नींद नहीं है। न मालूम किस गंभीर विषय पर ये तीनों विचार कर रही हैं! संभव है कि भूतनाथ के विषय ही में कुछ विचार कर रही हों, अस्तु जो क

---

किताब पढ़िए