अब हम यहाँ पर कुछ हाल प्रभाकर सिंह का लिखना जरूरी समझते हैं। पहिले बयान में हम लिख आए हैं कि ‘प्रभाकर सिंह इंदुमति और गुलाबसिंह को लेकर भूतनाथ अपनी घाटी में गया तो रास्ते में सुरंग के अन्दर से यकायक प्रभाकरसिंह गायब हो गए।’ अस्तु इसी जगह से हम प्रभाकर सिंह का हाल लिखना शुरू करते हैं।
जब भूतनाथ उन लोगों को साथ लिए हुए सुरंग में गया और कुछ दूर जाने के बाद चौमुहानी पर पहुँचा तो रास्ते का हाल बताकर कुछ आगे चलने के बाद भूतनाथ ने मोमबत्ती बुझा दी और उसे यही खयाल रहा कि हमारे तीनों मेहमान हमारे पीछे-पीछे चले आ रहे हैं, मगर वास्तव में ऐसा न था। चौमुहानी से थोड़ी ही दूर आगे बढ़ने के बाद किसी ने प्रभाकर सिंह के दाहिने मोढ़े पर अपना हाथ रखा जो सबके पीछे-पीछे जा रहे थे। प्रभाकर सिंह ने चौंककर पीछे की तरफ देखा मगर अँधकार में कुछ भी दिखाई न दिया, हाँ एक हलकी-सी आवाज यह सुनाई पड़ी ‘ठहरो, और जरा मेरी बात सुन कर तब आगे बढ़ो।’ ठहरें या न ठहरें, भूतनाथ को रोकें अथवा चुप रहें इत्यादि सोचते हुए प्रभाकर सिंह कुछ ही देर रुके थे कि उनके कान में पुन: एक बारीक आवाज आई, “घबड़ाओ मत, जरा-सा रुककर सुनते जाओ कि अब तुम कैसी आफत में फँसना चाहते हो और उससे छुटकारा पाने की क्या तदबीर है!”
इन शब्दों ने प्रभाकर सिंह को और भी रोक लिया और वह कुछ ठिठके-से रहकर सोचने लगे कि क्या करना चाहिए। इतने ही में पिछली तरफ रोशनी मालूम हुई जो उसी चौराहे पर थी जिसे यह लोग छोड़कर कुछ दूर आगे बढ़ आये थे। उस रोशनी में दो औरतें दिखाई पड़ीं और यह भी मालूम पड़ा कि जिसने प्रभाकर सिंह के मोढ़े पर हाथ रख कर उन्हें रोका था वह भी एक औरत ही है जो अब कुछ पीछे हट इन्हें पुन: अपनी तरफ बुला रही है।
यद्यपि इस कार्रवाई में बहुत देर लगी तथापि इसी बीच में उस अनूठी और पेचीली सुरंग में गुलाबसिंह और इंदुमति को लिए भूतनाथ इतना आगे बढ़ गया कि न तो वह इन दोनों की बात ही सुन सका और न चौमुहानी वाली रोशनी ही पर उसकी निगाह पड़ी। कुछ वर्तमान और कुछ भविष्य को सोचते हुए प्रभाकर सिंह अटके और उन औरतों से जो कम-उम्र, नाजुक और सुन्दर थीं डरना व्यर्थ समझ कर चौमुहानी की तरफ मुड़कर उस औरत की तरफ चले जिसने इन्हें रोका था।
इन तीनों औरतों का नखशिख बयान करने और इनकी खूबसूरती के बारे में लिखने की यहाँ कुछ जरूरत नहीं है। यहाँ इतना ही कहना काफी है जितना कह आये हैं अर्थात् तीनों कम उम्र की थीं, नाजुक थीं, सुन्दर थी भड़कीली पोशाक् पहिरे हुए थीं।
जब चौमुहानी पर पहुँचे तो उन दोनों औरतों में से एक ने जो पहिले ही से वहाँ खड़ी थी प्रभाकर सिंह का हाथ पकड़ लिया और कहा, “भूतनाथ ने जरूर आप को कहा होगा कि चौमुहानी से उसके घर का रास्ता छोड़कर बाकी दोनों तरफ जाना खतरनाक है, मगर नहीं, वह बिलकुल झूठा है। आप जरा इधर आइए और देखिए मैं आपको कैसा अनूठा तमाशा दिखाती हूँ।”
इतना कहकर दोनों बल्कि तीनों औरतें प्रभाकर सिंह को सुरंग के उस रास्ते में ले चलीं जिधर जाने के लिए भूतनाथ ने मना किया था। हम नहीं कह सकते कि क्या सोच-समझकर प्रभाकर सिंह ने इन औरतों की बात मान ली और भूतनाथ की नसीहत पर कुछ भी ध्यान न दिया अथवा भूतनाथ का साथ छोड़ दिया। क्या संभव है कि वे इन तीनों औरतों को पहिले से पहिचानते हों?
लगभग पन्द्रह या बीस कदम जाने के बाद उस तीसरी औरत ने जिसके हाथ में रोशनी थी नखरे के साथ हाथ से मोमबत्ती गिरा दी जिससे अँधकार हो गया। उसने यही जाहिर किया कि यह बात धोखे में उससे हो गई। उसके बाद उस औरत ने इनका हाथ भी छोड़ दिया। प्रभाकर सिंह अटक कर कुछ सोचने लगे और बोले- “जो हुआ सो हुआ, अब रोशनी करो तो मैं तुम्हारे साथ आगे मानो ही
आश्चर्य और चिंता के शिकार प्रभाकर सिंह कुछ देर तक खड़े सोचने के बाद अफसोस करते हुए पीछे की तरफ लौटे मगर अपने ठिकाने पर पहुँच सके। आठ ही दस कदम पीछे हटे थे कि दीवार से टकराकर खड़े हो गए और सोचने लगे-“हैं, यह क्या मामला है! अभी-अभी तो हम लोग इधर से आ रहे हैं, फिर यह दीवार कैसा? रास्ता क्यों कर बंद हो गया? क्या अब इस तरफ का रास्ता बंद हो ही गया!” इत्यादि।
वास्तव में पीछे फिरने का रास्ता बंद हो गया मगर अँधेरे में इस बात का पता नहीं लग सकता था कि यह कोई दीवार बीच में आ पड़ी है या किसी तरह के तख्ते या दरवाजे ने बगल से निकल कर रास्ता बंद कर दिया है अथवा क्या है! जो हो, प्रभाकर सिंह को निश्चय हो गया कि अब पीछे की तरफ लौटना असंभव है अस्तु यही अच्छा होगा कि आगे की तरफ बढ़ें, शायद कहीं उजाले की सूरत दिखाई दे तब जान बचे, आह! मैं इन औरतों को ऐसा नहीं समझता था और इस बात का स्वप्न में भी गुमान नहीं होता था कि ये मेरे साथ दगा करेंगी।
लाचार प्रभाकर सिंह अँधेरे में अपने दोनों हाथों को फैलकर टटोलते हुए आगे की तरफ बढ़े मगर बहुत धीरे-धीरे जाने लगे जिसमें किसी तरह का धोखा न हो। रास्ता पेचीला और ऊँचा था तथा आगे की तरफ से तंग भी होता जाता था। अढ़ाई-तीन सौ कदम जाने के बाद रास्ता इतना तंग हो गया कि एक आदमी से ज्यादा के चलने की जगह न रही। कुछ आगे बढ़ने पर रास्ता खत्म हुआ और एक बंद दरवाजे पर हाथ पड़ा। धक्का देने से वह दरवाजा खुल गया और प्रभाकर सिंह जो उनके सामने की तरफ बढ़ती हुई मालूम पड़ती थी। लगभग पच्चीस-तीस कदम जाने के बाद प्रभाकर सिंह खोह के बाहर निकले और तब उन्होंने अपने को एक सरसब्ज पहाड़ की ऊँचाई पर किसी गुफा के बाहर खड़ा पाया।
इस समय सवेरा हो चुका था और पूरब तरफ पहाड़ की चोटी के पीछे सूरज की लालिमा दिखाई दे रही थी। प्रभाकर सिंह ने अपने को एक ऐसे स्थान में पाया जिसे एक सुन्दर और सुहावनी घाटी कह सकते हैं। यह घाटी त्रिकोण अर्थात् तीन तरफ से पहाड़ के अन्दर दबी हुई थी और जमीन के बीचो बीच में एक सुन्दर बंगला बना हुआ था जो इस जगह से जहाँ प्रभाकर सिंह वहाँ पहुँचने के लिए रास्ता तलाश करने लगे मगर सुभीते से उतर जाने के लायक कोई पगडंडी नजर न आई, तथापि प्रभाकर सिंह हतोत्साह न हुआ और किसी-न-किसी तरह से उद्योग करके नीचे की तरफ उतरने ही लगे। वह सोच रहे थे कि देखें हमारा दिन कैसा कटता है, किस ग्रह दशा के फेर में पड़ते हैं, किसका सामना पड़ता है और खाने-पीने के लिए क्या चीज मिलती है अथवा यहाँ से निकलने का रास्ता ही क्यों कर मिलता है। उस बंगले तक पहुँचने में प्रभाकर सिंह को दो घंटे से ज्यादा देर लगी। पहाड़ी की चोटियों पर धूप अच्छी तरह फैल चुकी थी मगर बंगले के पास अभी धूप का नाम-निशान नहीं था।
बंगले के दरवाजे पर दो जवान लड़के पहरा दे रहे थे जिन्होंने प्रभाकर सिंह को रोका और पूछा, “तुम यहाँ क्यों कर आए?”
उन दोनों पहरेवालों ने प्रभाकर सिंह की बात का कुछ भी जवाब न दिया। प्रभाकरसिंह गुस्से में आकर कुछ कहा ही चाहते थे कि उनकी निगाह एक मौलसिरी के पेड़ के ऊपरी हिस्से पर जा पड़ी जो इसी बंगले के पूरब और दक्षिण के कोने पर बड़ी खूबसूरती के साथ खड़ा था। इस बंगले के चारों कोनों पर चार मौलसिरी के बड़े-बड़े दरख्त थे जो इस समय खूब ही हरे-भरे थे और उनके फूलों से वहाँ की जमीन ढक रही थी तथा खुशबू से प्रभाकर सिंह का दिमाग मुअत्तर हो रहा था।
जिस मौलसिरी के पेड़ के ऊपर प्रभाकर सिंह की निगाह पड़ी उसके ऊपरी हिस्से में रेशमी डोर के साथ एक हिंडोला लटक रहा था जो झुकी हुई डालियों की आड़ में छिपा हुआ था मगर जब हवा के झपेटों से उसकी डालियाँ हिलती और इधर-उधर हटती थीं तो उस हिंडोले पर एक सुन्दर औरत बैठी हुई दिखाई देती थी और इसी पर प्रभाकर सिंह की निगाह पड़ी थी। गौर से देखने पर प्रभाकर सिंह को इंदुमति का गुमान हुआ और ये दौड़ कर उस पेड़ के नीचे जा खड़े हुए।
प्रभाकर सिंह ने सर उठाकर पुन: उस औरत को देखा-इस आशा से कि यह इंदुमति है या नहीं, इस बात का निश्चय कर लें, मगर प्रभाकर सिंह का खयाल गलत निकला क्योंकि वह वास्तव में इंदुमति न थी, हाँ, इंदुमति से उसकी सूरत रुपये में बाहर आना जरूर मिलती-जुलती थी यहाँ तक कि यदि यह औरत केवल अपने दोनों होठ और अपनी ठुड्डी हाथ से ढाँक कर प्रभाकर सिंह की तरफ देखती होती तो दोपहरी की चमकचमाती हुई रोशनी में और दस हाथ की दूरी से भी वे इसे न पहिचान सकते और यही कहते कि जरूर मेरी इंदुमति है।
इस समय वह औरत भी प्रभाकर सिंह की तरफ देख रही थी। जब वे उस पेड़ के नीचे आए तब उसने हाथ के इशारे से उन्हें भाग जाने को कहा जिसके जवाब में प्रभाकर सिंह ने कहा, “तुम इस बात का गुमान भी करो कि तुम्हारा हाल जाने बिना मैं यहाँ से चला जाऊँगा।”
औरत : (अपने माथे पर हाथ रख कर) बात तो अब यह है कि आप अब यहाँ से जा नहीं सकते और न आपको निकल जाने का रास्ता ही मिल सकता है।
प्रभाकर सिंह : तुम्हारे इस कहने से तो निश्चय होता है कि तुम्हारी जुबानी मुझे यहाँ का सच्चा-सच्चा हाल मालूम हो जाएगा और मैं अपने दुश्मनों से बदला ले सकूँगा।
औरत : नहीं क्योंकि एक तो मुझे यहाँ का पूरा-पूरा हाल मालूम नहीं, दूसरे अगर कुछ मालूम भी है तो उसके कहने का मौका मिलना कठिन है, क्योंकि अगर कुछ कहने की कोशिश करूँगी तो मेरी ही तरह से आप भी कैद कर लिए जाएंगे।
प्रभाकर सिंह : तो तुम कैदी हो?
औरत : (आँचल से आँसू पोंछकर) जी हाँ!!
प्रभाकर सिंह : तुम्हें यहाँ कौन ले आया?
औरत : मेरी बदकिस्मती!
प्रभाकर सिंह : तुम्हारा क्या नाम है?
औरत : तारा
प्रभाकर सिंह : (ताज्जुब से) तुम्हारे बाप का क्या नाम है?
औरत : (रोकर) वही जो आपकी इंदुमति के बाप का नाम है!! अफसोस, आपने मुझे अभी तक नहीं पहिचाना!
इतना कहके वह और भी खुलकर रोने लगी जिससे प्रभाकर सिंह का दिल बेचैन हो गया और उन्होंने पहिचान लिया कि यह बेशक् उनकी साली है। वह चाहते थे कि पेड़ पर चढ़कर उसे नीचे उतारें और अच्छी तरह बात करें मगर इसी बीच में कई आदमियों ने आकर उन्हें घेर लिया। बंगले के दरवाजे पर पहरा देने वाले दोनों नौजवान लड़कों ने प्रभाकर सिंह को जब उस औरत से बातचीत करते देखा तब तेजी के साथ वहाँ से चले गए और थोड़ी ही देर में कई आदमियों ने आकर उनको घेर लिया।