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भाग -2

7 जून 2022

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प्रभाकर सिंह पीछे-पीछे चले आते थे, यकायक कैसे और कहाँ गायब हो गये? क्या उस सुरंग में कोई दुश्मन छिपा हुआ था जिसने उन्हें पकड़ लिया? या उन्होंने खुद हमें धोखा देकर हमारा साथ छोड़ दिया? इत्यादि तरह-तरह की बातें सोचती हुई इंदु बहुत ही परेशान हुई, मगर इस आशा ने कि अभी-अभी भूतनाथ उनका पता लगा के सुरंग से लौटता ही होगा, उसे बहुत कुछ सम्हाला और वह एकदम सुरंग की तरफ टकटकी लगाये खड़ी देखती रही, परन्तु थोड़ी ही देर में उसकी यह आशा भी जाती रही जब उसने भूतनाथ को अकेले ही लौटते देखा और दुःख के साथ भूतनाथ ने बयान किया कि “उनसे मुलाकात नहीं हुई! मेरी समझ में नहीं आता कि क्या भेद है और उन्होंने हमारा साथ क्यों छोड़ा? क्योंकि अगर किसी छिपे हुए दुश्मन ने हमला किया होता तो कुछ मुंह से आवाज तो आई होती या चिल्लाते तो सही”!

गुलाबसिंह : नहीं भूतनाथ, ऐसा तो नहीं हो सकता। प्रभाकर सिंह पर हम भागने का इल्जाम तो नहीं लगा सकते।

भूतनाथ : जी तो मेरा भी नहीं चाहता कि उनके विषय में मैं ऐसा कहूँ परन्तु घटना ऐसी विचित्र हो गई कि मैं किसी तरफ अपनी राय पक्की कर नहीं सकता। हाँ इंदुमति कदाचित् इस विषय में कुछ कह सकती हों!

इतना कह कर भूतनाथ ने इंदु की तरफ देखा मगर इंदु ने कुछ जवाब न दिया, सिर झुकाये जमीन को देखती रही, मानो उसने कुछ सुना ही नहीं! अबकी दफे गुलाबसिंह ने उसे संबोधन किया जिससे वह चौकी और एकदम फूट-फूट कर रोने और कहने लगी, “बस मेरे लिए दुनिया इतनी ही थी। मालूम हो गया कि मेरा बदकिस्मती मेरा साथ न छोड़ेगी। मैं व्यर्थ ही आशा में पड़ कर दुखी हुई और उन्हें भी दुःख दिया। मेरे ही लिए उन्हें इतना कष्ट भोगना पड़ा और मुझ अभागिन के ही कारण उन्हें जंगल की खाक छाननी पड़ी। हाय, क्या अब मैं पुन: इस दुनिया में रहकर उनके दर्शन कर सकती हूँ? क्यों न इसी समय अपने दुखांत नाटक का अंतिम पर्दा गिरा कर निश्चिन्त हो जाऊँ?”

इत्यादि इसी ढंग की बातें करती हुई इंदु प्रलापवास्था को लाँघकर बेहोश हो गई और जमीन पर गिर पड़ी।

गुलाबसिंह और भूतनाथ को उसके विषय में बड़ी चिंता हुई और वे लोग उसे होश में लाकर समझाने-बुझाने तथा शान्त करने की चिंता करने लगे।

भूतनाथ का यह स्थान कुछ विचित्र ढंग का था। इसमें भूतनाथ की कोई कारीगरी न थी, इसे प्रकृति ही ने कुछ अनूठा और सुन्दर बनाया हुआ था। इसके विषय में अगर भूतनाथ की कुछ कारीगरी थी तो केवल इतनी ही कि उसने इसे खोज निकाला था, जिसका रास्ता बहुत ही कठिन और भयानक था। जिस जगह इंदुमति, भूतनाथ और गुलाबसिंह खड़े हैं वहाँ से दिन के समय यदि आप आँख उठाकर चारों तरफ देखिए तो आपको मालूम होगा कि लगभग चौदह या पन्द्रह बिगहे के चौरस जमीन, चारों तरफ के ऊँचे-ऊँचे और सरसब्ज पहाड़ों से सुन्दर और सुहावने सरोवर के जल की तरह घिरी हुई है। जिस तरह चारों तरफ के पहाड़ों पर खुश रंग फूल-पत्ती की बहुतायत दिखाई दे रही है उसी तरह यह जमीन भी नरम घास की बदौलत सब्ज मखमली फर्श का नमूना बन रही है और जगह-जगह पर पहाड़ से गिरे हुए छोटे-छोटे चश्मे भी बह रहे हैं। यद्यपि आजकल पहाड़ों के लिये सरसब्जी का मौसम नहीं है मगर यहाँ पर कुछ ऐसी कुदरती तरावट है कि जिसके सबब से पतझड़ के मौसम का कुछ पता नहीं लगता, यों समझ सकते हैं कि बरसात के मौसम में आजकल से कहीं बढ़-चढ़कर खूबी, खूबसूरती और सरसब्जी नजर आती होगी।

इस स्थान में किसी तरह की इमारत बनी हुई न थी मगर चारों तरफ के पहाड़ों में सुन्दर और सुहावनी गुफाओं और कंदराओं की इतनी बहुतायत थी कि हजारों आदमी बड़ी खुशी और आराम के साथ यहाँ गुजारा कर सकते थे। इन्हीं गुफाओं में भूतनाथ तथा उसके तीस-चालीस संगी-साथियों का डेरा था और इन्हीं गुफाओं में उसके जरूरत की सब चीजें और हर्बे इत्यादि रहा करते थे, तथा उसके पास जो कुछ दौलत थी वह भी कहीं इन्हीं जगहों में होगी, जिसका ठीक-ठीक पता उसके साथियों को भी न था। भूतनाथ का कथन ऐसे-ऐसे कई स्थान उसके कब्जे में हैं और इस बात का कोई निश्चय नहीं है कि कब या कितने दिनों तक यह किस स्थान में अपना डेरा रखता या रखेगा।

सुबह की सफेदी अच्छी तरह फैल चुकी थी अब भूतनाथ और गुलाबसिंह के उद्योग से इंदुमति होश में आई। यद्यपि वह खुद इस खोह के बाहर होकर प्रभाकर सिंह की खोज में जान तक देने के लिए तैयार थी और ऐसा करने के लिए वह जिद्द भी कर रही थी मगर भूतनाथ और गुलाबसिंह ने उसे बहुत समझा-बुझाकर ऐसा करने से बाज रखा और वादा किया कि बहुत जल्दी उनका पता लगाकर उनके दुश्मनों को नीचा दिखाएँगे।

ये सब बातें हो ही रही थीं कि भूतनाथ के आदमी गुफाओं और कंदराओं में से निकलकर वहाँ आ पहुँचे जिन्हें भूतनाथ ने अपनी ऐयारी भाषा में कुछ समझा-बुझाकर बिदा किया। इसके बाद एक स्वच्छ और प्रशस्त गुफा में जो उसके डेरे के बगल में थी इंदुमति का डेरा दिलाकर और गुलाबसिंह को उसके पास छोड़कर वह भी उन दोनों से बिदा हुआ और अपने एक शागिर्द को साथ लेकर उसी सुरंग की राह अपनी इस दिलचस्प पहाड़ी के बाहर हो गया।

जब भूतनाथ सुरंग के बाहर हुआ तो सूर्य भगवान उदय हो चुके थे। उसे जरूरी कामों अथवा नहाने-धोने, खाने-पीने की कुछ भी फिक्र न थी, वह केवल प्रभाकर सिंह का पता लगाने की धुन में था।

यह वह जमाना था जब चुनार की गद्दी पर महाराज शिवदत्त को बैठे दो वर्ष का समय बीत चुका था। उसकी ऐयाशी की चर्चा घर-घर में फैल रही थी और बहुत से नालायक तथा लुच्चे शोहदे उसकी जात से फायदा उठा रहे थे। उधर जमानिया में दारोगा साहब की बदौलत तरह-तरह के साजिशें हो रही थीं और उनकी कमेटी का दौरदौरा खूब अच्छी तरह तरक्की कर रहा था अस्तु इस समय खड़े होकर सोचते हुए भूतनाथ का ध्यान एक दफे जमानिया की तरफ और फिर दूसरी दफे चुनारगढ़ की तरफ गया।

सुरंग से बाहर निकल एक घने पेड़ के नीचे भूतनाथ बैठ गया और उसने अपने शागिर्द से, जिसका नाम भोलासिंह था, कहा-

भूतनाथ : भोलासिंह, मुझे इस बात का शक होता है कि किसी दुश्मन ने इस खोह का रास्ता देख लिया और मौका पाकर उसने प्रभाकर सिंह को पकड़ लिया।

भोलासिंह : मगर गुरुजी, मेरे चित्त में तो यह बात नहीं बैठती। क्या प्रभाकर सिंह इतने कमजोर थे कि आपके पीछे आते समय एक आदमी ने उन्हें पकड़ लिया और उनके मुँह से आवाज तक न निकली? इसके अतिरिक्त यह तो संभव ही न था कि बहुत से आदमी आपके पीछे-पीछे आते और आपको आहट भी न मिलती।

भूतनाथ : तुम्हारा कहना ठीक है और इन्हीं बातों को सोचकर मैं कह रहा हूँ कि दुश्मन के आने का शक होता है, यह नहीं कहता कि निश्चय होता है अस्तु जो कुछ हो, मैं प्रभाकर सिंह का पता लगाने के लिए जाता हूँ और तुमको इसी जगह छोड़कर ताकीद कर जाता हूँ कि जब तक मैं लौट कर न आऊँ तब तक सूरत बदले हुए यहाँ पर रहो और चारों तरफ घूम-फिर कर टोह लो कि किसी दुश्मन ने इस सुरंग का पता तो नहीं लगा लिया है। अगर ऐसा हुआ होगा तो कोई-न-कोई यहाँ आता-जाता तुम्हें जरूर दिखाई देगा। यदि कोई जरूरत पड़े तो तुम निःसन्देह अपने डेरे पर (सुरंग के अंदर) चले जाना, मैं इसके लिए तुम्हें मना नहीं करता मगर जो कुछ मेरा मतलब है उसे तुम जरूर अच्छी तरह समझ गए होंगे।

भोलासिंह : जी हाँ मैं अच्छी तरह समझ गया, जहाँ तक हो सकेगा मैं इस काम को होशियारी के साथ करूँगा, आप जहाँ इच्छा हो जाइए और इस तरफ से बेफिक्र रहिए।

भूतनाथ : अच्छा तो अब मैं जाता हूँ।

इतना कहकर भूतनाथ भोलासिंह से विदा हुआ और उसी घूमघुमौवे रास्ते से होता हुआ पहाड़ी के नीचे उतर आया, और इधर भोलासिंह देहाती ब्राह्मण की सूरत बना जंगल में इधर-उधर घूमने लगा।

ठीक दोपहर का समय था। धूप खूब कड़ाके की पड़ रही थी और गर्म-गर्म लू के झपेटे बदन का झुलसा रहे थे। ऐसे समय में भूतनाथ का शागिर्द भोलासिंह गर्मी से परेशान होकर एक घने पेड़ के नीचे बैठा आराम कर रहा था। यह स्थान यद्यपि उस सुरंग से लगभग दो-ढाई सौ दम की दूरी पर होगा परन्तु यहाँ से घूमघुमौवे रास्ते और जंगली पेड़ों तथा लताओं की झाड़ियों के कारण बहुत ध्यान देने पर भी उस सुरंग का मुहाना दिखाई नहीं देता था। भोलासिंह बैठा कुछ सोच रहा था कि यकायक उसके कान में कुछ आदमियों के बोलने की आहट मालूम हुई।

हमारे पाठकों में से जो महाशय जंगल की हवा खा चुके या पहाड़ों की सैर कर चुके हैं उन्हें यह बात जरूर मालूम होगी कि जंगल में सन्नाटे के समय मुसाफिरों के बातचीत करते हुए चलने की आहट बहुत दूर-दूर तक के लोगों को मिल जाती है, यहाँ तक कि आधी कोस की दूरी पर यदि दो-चार आदमी बातचीत करते हुए जाते हों तो ऐसा मालूम होगा कि थोड़ी दूर पर आदमी बातें कर रहे हैं परन्तु शब्द साफ-साफ सुनाई न देंगे, साथ ही इसके इस बात का पता लगाना भी जरा कठिन होगा कि ये बातचीत करते हुए जाने वाले आदमी किधर और कितनी दूर होंगे। अस्तु जब भोलासिंह को कुछ आदमियों के बोलने की आहट मालूम हुई तो ठीक-ठीक पता लगाने और जाँच करने की नीयत से वह उस पेड़ के ऊपर चढ़ गया और चारों तरफ गौर से देखने लगा मगर कुछ पता न लगा और न कोई आदमी ही दिखाई पड़ा। लाचार वह पेड़ के नीचे उतर आया और उसी आहट की सीध पर खूब गौर करता हुआ उत्तर की तरफ चल पड़ा जिधर के जंगली पेड़ बहुत घने और गुंजान थे।

कुछ दूर तक चले जाने पर भी भोलासिंह को किसी आदमी का तो पता न लगा मगर एक छोटे से पेड़ के नीचे बेहोश प्रभाकर सिंह पड़े जरूर दिखाई दिए यद्यपि उसने आज रात के समय प्रभाकर सिंह को देखा न था क्योंकि उस घाटी में जहाँ भूतनाथ का डेरा था पहुँचने के पहिले ही वह गायब हो चुके थे, परन्तु प्रभाकर सिंह एक अमीर बहादुर और नामी आदमी थे इसलिए भोलासिंह उन्हें पहिचानता जरूरत था और कई दफे ऐयारी की धुन में शहर में घूमते हुए उसने प्रभाकर सिंह को देखा भी था। इसके अतिरिक्त आज भूतनाथ ने उसे यह भी बता दिया था कि जिस समय प्रभाकर सिंह हमारे साथ से गायब हुए हैं उस समय उनकी पोशाक् फलाने ढंग की थी तथा उनके पास अमुक हर्बे थे। इन सब कारणों से भोलासिंह को उनके पहिचानने में किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं हुई और वह उन्हें ऐसी अवस्था में पड़े हुए देखते ही चौंक पड़ा। वह उनके पास बैठ गया और गौर से देखने लगा कि क्या उन्हें किसी तरह की चोट आई है या कोई आदमी जान से मार कर छोड़ गया है। किसी तरह की चोट का पता तो न लगा मगर इतना मालूम हो गया कि मरे नहीं हैं बल्कि बेहोश पड़े हैं।

भोलासिंह ने अपने ऐयारी के बटुए में से लखलखा निकाला और सुँघाने लगा थोड़ी ही देर में प्रभाकर सिंह होश में आ गए ओर उन्होंने अपने सामने एक देहाती ब्राह्मण को बैठा देखा।

प्रभाकर सिंह : आप कौन हैं? कृपा कर अपना परिचय दीजिए। मैं आपका बड़ा ही कृतज्ञ हूँ क्योंकि आज निःसन्देह आपने मेरी जान बचाई।

भोलासिंह : मैं एक गरीब देहाती ब्राह्मण हूँ। इस राह से जा रहा था कि यकायक आपको इस तरह पड़े हुए देखा, फिर जो कुछ बन सका किया।

प्रभाकर सिंह : (सिर हिलाकर) नहीं, कदापि नहीं, आप ब्राह्मण भले ही हों परन्तु देहाती और गरीब नहीं हो सकते, आप जरूर कोई ऐयार हैं।

भोलासिंह : यह शक आपको कैसे हुआ?

प्रभाकर सिंह : यद्यपि मैं ऐयारी नहीं जानता परन्तु ऐसे मौके पर आपको पहिचान लेना कोई कठिन काम न था क्योंकि आपको बहुत उम्दा लखलखा सुंघाकर मेरी बेहोशी दूर की है जिसकी खुशबू अभी तक मेरे दिमाग में गूंज रही है। क्या कोई आदमी जो ऐयारी नहीं जानता हो ऐसा लखलखा बना सकता है? आप ही बताइए!

भोलासिंह : आपका कहना ठीक है मगर मैं…

प्रभाकर सिंह : (बात काट कर) नहीं-नहीं, इसमें कुछ सोचने और बात बनाने की जरूरत नहीं है, मैं आपसे मिलकर बड़ा प्रसन्न हुआ क्योंकि मुझे निश्चय है कि आप जरूर मेरे दोस्त भूतनाथ के ऐयार हैं जिनसे सिवाय भलाई के बुराई की आशा हो ही नहीं सकती।

भोलासिंह : (कुछ सोच कर) बात तो बेशक् ऐसी ही है, मैं जरूर भूतनाथ का ऐयार हूँ और वे आपका पता लगाने के लिए गए हैं, मगर यह तो बताइए कि आप यकायक गायब क्यों हो गए और आपकी ऐसी दशा किसने की है?

प्रभाकर सिंह : मैं यह सब हाल तुमसे बयान करूँगा और यह भी बताऊँगा कि क्यों कर मेरी जान बच गई, मगर इस समय नहीं क्योंकि दुश्मनों के हाथ से तकलीफ उठाने के कारण मैं बहुत ही कमजोर हो रहा हूँ और जब मुझमें ज्यादा बात करने की ताकत नहीं है, अस्तु जिस तरह हो सके मुझे अपने डेरे पर ले चलो, वहाँ सब कुछ सुन लेना और उसी समय इंदुमति तथा गुलाबसिंह को भी मेरा हाल मालूम हो जाएगा। यद्यपि मुझमें चलने की ताकत नहीं है मगर तुम्हारे मोढ़े का सहारा लेकर धीरे-धीरे वहाँ तक पहुँच ही जाऊँगा।

भोलासिंह : अच्छी बात है, मैं तो आपको अपनी पीठ पर लादकर भी ले जा सकता हूँ।

प्रभाकर सिंह : ठीक है मगर इसकी कोई जरूरत नहीं है, अच्छा अब आप अपना नाम तो बता दो।

भोलासिंह : मेरा नाम भोलासिंह है।

इतना कहकर भोलासिंह उठ खड़ा हुआ और उसने हाथ का सहारा देकर प्रभाकरसिंह को उठाया। वह बहुत ही सुस्त और कमजोर मालूम हो रहे थे इसलिये भोलासिंह उन्हें टेकाता और सहारा देता हुआ बड़ी कठिनता से सुरंग के मुहाने पर ले आया। वहाँ पर प्रभाकर सिंह ने बैठकर कुछ देर तक सुस्ताने की इच्छा प्रकट की अस्तु उन्हें बैठाकर भोलासिंह भी उनके पास बैठ गया। इस समय दिन पहर भर के लगभग रह गया होगा। आह, यहाँ पर भोलासिंह ने बेढब धोखा खाया। यह जो प्रभाकर सिंह उसके साथ भूतनाथ की घाटी में जा रहे हैं वह वास्तव में प्रभाकर सिंह नहीं है बल्कि उनके दुश्मनों में से एक ऐयार है जिसका खुलासा हाल आगे के किसी बयान में मालूम होगा, यह उसे तथा भूतनाथ और उसके ऐयारों को धोखा दिया चाहता है और इंदुमति पर कब्जा कर लेने की धुन में है यद्यपि भोलासिंह भी ऐयार और बुद्धिमान हैं मगर साथ ही इसके उसे भांग का बहुत शौक है। सुबह, दोपहर और शाम तीनों वक्त छाने बिना उसका जी नहीं मानता। इतने पर भी बस नहीं, कभी-कभी वह नशे को कमी समझ कर दो-चार दम गाँजे के भी लगा लिया करता है और यही सबब है कि वह कभी-कभी बेढब धोखा खा जाता है। मगर यह ऐयार भी बड़ा ही मक्कार है जो उसके साथ जा रहा है, देखना चाहिए दोनों में क्यों कर निपटती है। भोलासिंह तो खुश है कि हमने प्रभाकर सिंह को खोज निकाला, और वह ऐयार सोचता है कि अब इंदुमति पर कब्जा करना कौन बड़ी बात है?

कुछ देर के बाद दोनों आदमी उठ खड़े हुए और भोलासिंह उस नकली प्रभाकर सिंह को साथ लिए सुरंग के अन्दर चला गया।

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रचनाएँ
भूतनाथ खण्ड -1
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भूतनाथ बाबू देवकीनंदन खत्री का तिलस्मि उपन्यास है। चन्द्रकान्ता सन्तति के एक पात्र को नायक का रूप देकर देवकीनन्दन खत्री जी ने इस उपन्यास की रचना की। किन्तु असामायिक मृत्यु के कारण वे इस उपन्यास के केवल छः भागों लिख पाये उसके बाद के अगले भाग को उनके पुत्र दुर्गाप्रसाद खत्री ने लिख कर पूरा किया।
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भाग -1

7 जून 2022
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मेरे पिता ने तो मेरा नाम गदाधर सिंह रखा था और बहुत दिनों तक मैं इसी नाम से प्रसिद्ध भी था परन्तु समय पड़ने पर मैंने अपना नाम भूतनाथ रख लिया था और इस समय यही नाम बहुत प्रसिद्ध हो रहा है। आज मैं श्रीमान

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भाग -2

7 जून 2022
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प्रभाकर सिंह पीछे-पीछे चले आते थे, यकायक कैसे और कहाँ गायब हो गये? क्या उस सुरंग में कोई दुश्मन छिपा हुआ था जिसने उन्हें पकड़ लिया? या उन्होंने खुद हमें धोखा देकर हमारा साथ छोड़ दिया? इत्यादि तरह-तरह

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भाग -3

7 जून 2022
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बेचारी इंदुमति बड़े ही संकट में पड़ गई है। प्रभाकर सिंह का इस तरह यकायक गायब हो जाना उसके लिए बड़ा ही दुःखदायी हुआ इस समय उसके आगे दुनिया अंधकार हो रही है। उसे कहीं भी किसी तरह का सहारा नहीं सूझता। उस

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भाग -4

7 जून 2022
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अब हम यहाँ पर कुछ हाल प्रभाकर सिंह का लिखना जरूरी समझते हैं। पहिले बयान में हम लिख आए हैं कि ‘प्रभाकर सिंह इंदुमति और गुलाबसिंह को लेकर भूतनाथ अपनी घाटी में गया तो रास्ते में सुरंग के अन्दर से यकायक प

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भाग -5

7 जून 2022
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संध्या का समय था जब नकली प्रभाकर सिंह इंदुमति को बहका कर और धोखा देकर भूतनाथ की विचित्र घाटी से उसी सुरंग की राह ले भागा जिधर से वे लोग गए थे। उस समय इंदुमति की वैसी ही सूरत थी जैसी कि हम पहिले बयान म

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भाग -6

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जब इंदु होश में आई और उसने आँखें खोलीं तो अपने को एक सुन्दर मसहरी पर पड़े पाया और मय सामान कई लौडियों की खिदमत के लिए हाजिर देखकर ताज्जुब करने लगी। आँख खुलने पर इंदु ने एक ऐसी औरत को भी अपने सामने इज

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भाग -7

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प्रभाकर सिंह को इस घाटी में आए यद्यपि आज लगभग एक सप्ताह हो गया मगर दिली तकलीफ के सिवाय और किसी बात की उन्हें तकलीफ नहीं हुई। नहाने-धोने, खाने-पीने, सोने-पहिरने इत्यादि सभी तरह का आराम था परन्तु इंदु क

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आज प्रभाकर सिंह उस छोटी-सी गुफा के बाहर आए हैं और साधारण रीति पर वे प्रसन्न मालूम होते हैं। हम यह नहीं कह सकते कि वे इतने दिनों तक निराहार या भूखे रह गए होंगे क्योंकि उनके चेहरे से किसी तरह की कमजोरी

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भाग -9

7 जून 2022
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तीन दिन नहीं बल्कि पाँच दिन तक मेहमानी का आनन्द लूट कर आज प्रभाकर सिंह उस अद्भुत खोह के बाहर निकले हैं। इन पाँच दिनों के अन्दर उन्होंने क्या-क्या देखा-सुना, किस-किस स्थान की सैर की, किस-किस से मिले-जु

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भाग - 10

7 जून 2022
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रात लगभग ग्यारह घड़ी के जा चुकी है। भूतनाथ, गुलाबसिंह और प्रभाकर सिंह उत्कंठा के साथ उस (अगस्तमुनि की) मूर्ति की तरफ देख रहे हैं। एक आले पर मोमबत्ती जल रही है जिसकी रोशनी से उस मंदिर के अन्दर की सभी च

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भाग -11

7 जून 2022
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ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन उसी अगस्ताश्रम के पास आधी रात के समय हम एक आदमी को टहलते हुए देखते हैं। हम नहीं कह सकते कि यह कौन तथा किस रंग-ढंग का आदमी है, हाँ, इसके कद की ऊँचाई से साफ मालूम होता है कि

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भाग - 12

7 जून 2022
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दिन पहर-भर से ज्यादा चढ़ चुका था जब भूतनाथ की बेहोशी दूर हुई और वह चैतन्य होकर ताज्जुब के साथ चारों तरफ निगाहें दौड़ाने लगा। उसने अपने को एक ऐसा कैदखाने में पाया जिसमें से उसकी हिम्मत और जवाँमर्दी उसे

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भाग -13

7 जून 2022
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रात आधी से ज्यादा बीत जाने पर भी कला, बिमला और इंदुमति की आँखों में नींद नहीं है। न मालूम किस गंभीर विषय पर ये तीनों विचार कर रही हैं! संभव है कि भूतनाथ के विषय ही में कुछ विचार कर रही हों, अस्तु जो क

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