कुसुम अभी हास्पिटल में थी....। होश में आने के बाद उसे पता चला की उस हादसे में उसका सब कुछ खत्म हो चुका हैं..। कुसुम पुरी तरह से टूट चुकी थी..। पल भर में उसकी दुनिया उजड़ चुकी थी..। वो अपने आप को संभाल नहीं पा रहीं थी..। बढ़ीं मुश्किल से उसने खुद को संभाला क्योंकि उसे अपने माँ पापा का अंतिम संस्कार जो करना था..।
कुसुम ने हिम्मत से अपने माँ पापा का दाह संस्कार किया...। कुछ दिनों तक उसकी भी मरहम पट्टी होती रही हास्पिटल में..। सब कुछ इतना जल्दी और अचानक हो गया था की कुसुम को कुछ समझ नहीं आ रहा था की आगे क्या करना हैं..। कुछ दिनों तक तो पडौ़स में रहने वाले लोगों ने उसकी सार संभाल की.. उसे वक्त पर खाना और दूसरी जरूरत की ची़जे देकर जातें थे..।
एक रोज उनके पास में रहने वाली कुछ औरतें कुसुम के पास आई ओर कुसुम से बोलीं:- कुसुम ऐसा कब तक चलेगा बेटा... होनी को कौन टाल सकता हैं.. जिंदगी में ऐसे उतार चढ़ाव तो सबके साथ होतें रहते हैं... हमें उनका सामना करना ही पड़ेगा..। कब तक तुम ऐसे ही उनकी याद में तड़प कर खुद की सेहत खराब करोगी..। बेटा अभी आगे तुम्हें खुद ही बढ़ना हैं..। ये मकान और तुम्हारे पापा की दुकान का किराया भी तुम्हे खुद देना हैं बेटा..। मैं जानती हूँ बेटा.... बहुत मुश्किल हैं इस वक़्त तुम्हारे लिए यह जिम्मेदारी उठाना पर आज नहीं तो कल उठानी तो पड़ेगी...। मैं ये भी जानती हूँ कि तुम्हारा सपना हैं डाक्टर बनने का... लेकिन बेटा अब शायद वो तुम्हारी किस्मत में नहीं हैं... अगर तुम चाहो तो जहाँ में काम करतीं हूँ वहाँ तुम्हारे लिए बात करूँ..। खुद की आजिविका के लिए तुम्हें कुछ तो काम करना ही पड़ेगा ना..।
कुसुम:- हां काकी... आप सब ठीक ही कह रहे हैं... और वैसे भी अब मुझे डाक्टर नहीं बनना..। क्योंकि मैं डाक्टर सिर्फ माँ पापा के लिए ही बनना चाहतीं थी... अब वो ही नहीं रहे तो....। आप बात कर लिजीए काकी मैं काम कर लूंगी जो भी काम होगा...। और काकी... काका को कहकर पापा की दुकान भी बंद करवा दिजिए.... मैं वहाँ नहीं जा पाउंगी अब..।
कुसुम सब को हाथ जोड़ती हुई दूसरे कमरे में चलीं गई और रोने लगीं..।
एक बुजुर्ग औरत उसके कमरे में गई और कुसुम के सिर पर हाथ फेड़ते हुए बोली:- हिम्मत से काम लो बेटा.... जो हो गया.. उसे विधी का विधान समझों.. भगवान ने तुम्हारे लिए भी कुछ ना कुछ सोचकर ही रखा होगा बेटा... इस करनी को भी भगवान की मर्जी समझकर आगे बढ़ो... आगे सब अच्छा ही होगा... विश्वास करो बेटा... इस तरह रोकर अपनी सेहत खराब मत करो...।
कुसुम उस बुजुर्ग औरत की बातें सुनकर उसके गले से लिपट कर फूट फूट कर रोने लगी और बोली:- इसमें क्या अच्छा हुआ अम्मा.... मुझे अनाथ करके क्या मिला उस भगवान को... क्या बिगाड़ा था हमने... अम्मा आपको तो पता हैं ना माँ कितना मानती थी भगवान को... एक वर्त नहीं छोड़ती थी... रोज़ पूजा पाठ करना.. रोज़ मंदिर जाना.... क्या सिला दिया भगवान ने उनकी पूजा का...। पापा ने अपनी पूरी जिंदगी में कभी किसी से उंची आवाज में बात नहीं की थी... कभी किसी का बुरा नहीं चाहा था... क्या मिला उनकी अच्छाई का....। कितने सपने देखें थे हमने अम्मा... माँ -पापा को आराम कराऊंगी.. दूनिया की सैर करवाऊंगी...। कुछ नहीं दे पाई मैं अपने माँ पापा को... कोई खुशी नहीं दे पाई... ।
अम्मा:- ऐसा नहीं कहते बेटा... ऊपर वाले को भी तो अच्छे और सच्चे इंसानों की जरूरत होती हैं ना... इसलिए वो हमेशा ऐसे लोगों को अपने पास बुला लेता हैं...। अभी तुम्हें हिम्मत से काम लेना हैं और उनका नाम रोशन करना हैं...। उठो बेटा ऐसे रो रो कर कब तक कमरे में बैठी रहोगी..।
कुसुम बहुत देर तक उस औरत के सीने से लगकर रोती रही... फिर रोते रोते बेसुध होकर वहीं सो गई।
कुछ दिनों बाद आखिर कार सभी के समझाने और होसला देने से कुसुम पहले से थोड़ा नार्मल हुई..। वो अपने घर का काम खुद से करने लगी..। अपनी बस्ती के पीछे बने बंगलों में पड़ोस की एक महिला के साथ वहाँ जाती और कुछ घरों में खाना बनाने का काम करने लगी...। लेकिन ये कुसुम अब पहले जैसी नहीं रहीं थी... वो चंचलता..... वो मजाक- मस्ती.... गुम हो चुकें थें...। कुसुम ने पढ़ाई भी छोड़ दी थी..। हरदम चहकने वाली खुशमिजाज कुसुम अब सिर्फ दिन काटने के लिए जी रहीं थी..। उसके चेहरे से मुस्कुराहट तो खो चुकी थी...।
लेकिन ऊपर वाले को शायद कुसुम पर अभी भी तरस नहीं आया था... अभी भी वो कुसुम के ओर इम्तिहान लेना चाहता था...। अब जो उसके साथ होने वाला था वो कुसुम की जिंदगी तबाह कर देने वाला था...।
क्या होगा आगे...
जानते हैं अगले भाग में..।
जय श्री राम..