छाँव वाला गाँव
जिसपर चलकर
जले न नंगे पाँव
बहे हवाएँ शीतल
पीने को ठण्डा जल
लूँ ठंडी ठंडी साँस
बावले मन के
भावनाओं में बहकर
टूटी मैं सच्चाई से
सोच न पाई
जिऊंगी कैसे बिन परछाईं के
परछाईं छूटने के डर ने
रख दिया झकझोर के
फिर बैठी नये ओर पे
देखी दुनिया नये छोर से
अब तो मैं जानूँ
सूर्य सृजन का तत्त्व है
जीवन का सत्य है
पाँव अब तैयार है
चलने को धूप में