आज शाम मिली फुरसत मुझको अकेले में
पर पड़ गई फिर उसी चिन्तन के झमेले में
उस दिन ये जो हुआ तो क्यों हुआ
काश वो होता तो कितना अच्छा होता
उस सोच की सोच में घंटों लगा दिये
शुकून से जो पल बिताने थे यूँ ही गवां दिये
अब अदरक वाली चाय पीकर सुस्ता रही हूँ
सरदर्द कैसे जाये इस सोच में डूबी जा हूँ
किससे करूँ शिकायत किस से होऊं नाराज
मेरी ही गलती होती है समझ आई आज
जो बातें बीत गई कहाँ लौट के आनी है
फिर बीते कल की चिंता में आज क्यों गवानी है
सोची हूँ आज के बाद सोचूंगी ना इतना
चिन्ता ये है इस सोच पे कायम रहूँगी कितना।