हम इन्सानों की अजीब कहानी है
दस कदम चले नहीं कि
बस दोराहें आनी हैं
एक राह अपनानी है
तो दूजी छूट जानी है
जिस राह को चुन चल पड़े
वो लगती नहीं सुहानी है
जो राह छूट गयी है
बस उसपे पछतानी है
बस ऐसी ही अजीब सी
मेरी भी कहानी है
जो हाथ मेरे आता है
वो मुझको भाता नहीं
जो हाथ से छूट जाता है
उसपे मन पछताता है
कोई तो हो इस उलझन का उपाय
दो राहों की ये गुत्थी सुलझ जाए
कोई इन दोनों राहों से कह दे
वो हमसे मिलने बारी-बारी से आयें
-written b