अकेले हो तो क्या
व्याकुल नजरों से
पंथ न निहारो तुम
मन की उलझनों से
एक पल तो निकालो तुम
पलटकर भूतकाल में
जरा नजर डालो तुम
पहले भी अकेले ही चले
थे ये दोनों कदम
तुम कहोगे -
कैसे हो मन सबल भला
अगर न थामने को हाथ हो
मैं कहूँगी -
एक लम्बी सांस लो
अपना लक्ष्य बाँध लो
मिलेंगे हाथ थामने को
न मिलेंगे लक्ष्य बाँटने को
खुद को सदृढ़ करो
मन का हाथ थाम लो
खुद को सजग करो
कि कदमों को दम मिले
अपना लक्ष्य पाने को
वो बस चलता चले ।