बिलकुल शांत और गंभीर,
अंदर ऊबासी लेते कमरे,
पसीने से लथ-पथ खिड़कियां,
वो गर्मी की दोपहर,
बिलकुल शांत और गंभीर,
बाहर गर्म हवाओं का शोर,
धूम में झुलसी हुई पत्तियाँ,
साल भर में मिलती थी फुरसत,
पढ़ाई से मिलती थी रुखसत,
मज़े करने पे होता था पूरा जोर,
मिलती जब थी गर्मी की छुट्टियाँ,
छुट्टियों का दौर अब हुआ खत्म,
ऊबासी वाले कमरे में नहीं हम,
मौज-मस्ती का ढल गया वक़्त,
अब तो कंधों पे है जिम्मेवारियाँ,
याद आती है…
वो गर्मी की दोपहर,
बिलकुल शांत और गंभीर,
वो चिड़ियों की चहचहाहट,
और वो गर्मी की छुटियाँ,
अब तो गर्मी की दोपहर,
साँस लेने की नहीं फुरसत,
ए.सी. की होती है ठंडी हवाएँ,