पुराना डर छुप के बैठा मेरे अंतर्मन में,
फैला हर तरफ अजीब सा सन्नाटा,
मानो फुटने को है कोई भयानक ज्वारभाटा,
पहले भी बीता था मौसम आँधियों वाला,
जिसमे जर्जर हो गया था मेरा संसार सारा,
मजबूत कर ली अपनी चारों दीवारें अभी,
डरती हूँ क्या हो अगर छत ही गिरा दे कोई,
धुप की गर्मी से तन भी जा रहा लहर,
ज़िन्दगी आकर रुक गयी कटीली मोड़पर,
पर.….
अपने मन का मैंने कस कर पकड़ा हाथ,
इस उथल-पुथल डूबने न दूँगी मन की साँस,
मैं डटकर खड़ी हूँ आज अपने मन के साथ,