सुकून को पसंद नहीं,
कि समझ ले उसे कोई |
बचपन में जब हमें,
सुकून की समझ ना थी |
जीवन में तब हमारे,
सुकून ही सुकून था |
ज्यों हुई समझ सुकून की,
समझ हो गयी ख़फ़ा |
अब चौबीसों घंटे बस हमें,
सुकून की तलाश है |
पर सुकून कहां पास है |
सुकून को पसंद नहीं
कि समझ ले उसे कोई |
तीषु सिंह