एक औरत जो लड़की थी,
कुछ ना सोचा करती थी,
ना कुछ समझा करती थी,
हवाओं सी बहती थी,
बेफिक्री में रहती थी,
ना सुबह शाम का होश था,
ना मन में कोई रोष था,
चेहरे पे मुस्कान लिए
दिन-भर फिरा करती थी,
उम्र का एक पड़ाव था वो,
जो उसने अब छोड़ दिया,
नए रास्तों के धागों से
अब उसने खुद को जोड़ लिया,
खासकर जब से है वो माँ बनी,
बेवजह ही बन गई जुनूनी,
पल-पल का वो करे हिसाब,
जैसे perfection का लेना हो खिताब,
बेवजह के उसके चोंचले हैं,
All-rounder बनने के हौसले हैं,
मानो सब कुछ उसे आता है,
बस discipline ही उसे भाता है,
पूरी दुनिया का बोझ लिए
दिन-रात फिरा करती है,
एक औरत जो लड़की थी,
बड़ी मस्ती में रहती थी ।