बस शब्द जोड़ती हूँ,
कभी अपनी कल्पना उभारती हूँ,
तो कभी अनुभव निखारती हूँ,
कभी खुद के प्रेम में डूबती हूँ
तो कभी अहसासों में खोती हूँ,
कभी खुद में जोश जगाती हूँ,
तो कभी कहीं प्रेरणाऐं ढूँढती हूँ,
कभी प्रार्थना में डूब जाती हूँ,
तो कभी वेदनाओं का दर्द निभाती हूँ,
कभी विचार आँकती हूँ,
तो कभी उम्मीदें विचारती हूँ,
मैं कवि तो नहीं