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दुर्घटना से देर भली

Pawan Kumar Sharma kavi kautilya

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दोस्तों , आज आपको एक ऐसी सत्य घटना सुनाता हूं जो जीवन में बहुत प्रभाव छोड़ जाती है । और मेरे जीवन को बदलने में बहुत सार्थक है बात उन दिनों की है जब मैं गुजरात में एक सीमेंट कंपनी में सीनियर पेरा मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम कार्य करता था वहा पर सीमेंट प्लांट का प्रोजेक्ट चल रहा था ।आमतौर पर तो सभी सीमेंट कंपनियों की अपनी अलग ही आवासीय कॉलोनी होती थी परंतु प्रोजेक्ट के कारण उस समय हमारी आवासीय कालोनी का कार्य प्रगति पर था । इसीलिए हम लोग सभी कर्मचारी सीमेंट कंपनी से 35 किलोमीटर दूर रहते थे। हम जहा रहते थे वो अच्छा ब्लॉक स्तर का कस्बा था परन्तु जिले मुख्य शहर से करीब 70- 80 किलोमीटर दूर था । ऐसी स्थिति में ज्यादा मेडिकल सुविधाएं नहीं थी कस्बे के अंदर अगर कभी कोई इमरजेंसी होती तो हमें मरीज़ को साठ सत्तर किमी दूर लेकर जाना होता था । बात उन दिनों की है जब बस के द्वारा ड्यूटी पर जाते थे ।रोज का हमारा यही रूटीन रहता था सुबह 8:00 बजे जाना और शाम को 7:00 बजे वापस घर को आना हम अपनी नौकरी ठीक तरह से कर रहे थे तभी अचानक एक दिन की घटना आपको सुनाता हूं जिसने मेरे जीवन में बहुत प्रभाव डाला और बहुत कुछ सीखने को उस घटना से मुझे मिला , मैंने एक साथ 11 इंजीनियरों का एक्सीडेंट देखा जिसमे से एक भी नहीं बचा उस भयंकर एक्सीडेंट के कारण सभी की मौत हो गई उस गाड़ी में सिर्फ तीन आदमी जीवित बचे थे एक ड्राइवर और दो इंजीनियर जिनकी भी हालत बहुत नाजुक थी । बात उन दिनों की है जब बस के द्वारा ड्यूटी पर जाते थे ड्यूटी जाने का रोज का हमारा यही रूटीन रहता था सुबह 8:00 बजे जाना और शाम को 7:00 बजे वापस घर को आना हम अपनी नौकरी ठीक तरह से कर रहे थे तभी अचानक एक दिन की घटना आपको सुनाता हूं जिसने मेरे जीवन में बहुत प्रभाव डाला और बहुत कुछ सीखने को उस घटना से मुझे मिला मैंने एक साथ 14 इंजीनियरों का एक्सीडेंट देखा जो कि एक भी नहीं बचा उस भयंकर एक्सीडेंट के कारण सभी की मौत हो गई उस गाड़ी में सिर्फ तीन आदमी जीवित बचे थे एक ड्राइवर और दो इंजीनियर बात मई महीने की है हम ड्यूटी पर जा रहे थे उस दिन अचानक एक बस का ब्रेक डाउन हो गया ब्रेकडाउन होते ही हमारे ट्रांसपोर्ट अधिकारी ने हमारे लिए दो ट्रैक गामा गाड़ियों का अरेंजमेंट किया जिससे कि हम सभी लोग अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच सके। और अपनी जिम्मेवारी कर सके उसी के साथ वापस शाम को अपने तभी अचानक एक नौसिखिया ड्राइवर जो कि उस गाड़ी को रेगुलर चलाता था परंतु बहुत ही तेज स्पीड में गाड़ी चलाता था उसे सब कहते थे कि अरे यार गाड़ी थोड़ी धीरे चलाया करो परंतु वह सुनता नहीं था उसने सुबह हमें टाइम से हमारी ड्यूटी पर पहुंचा दिया लेकिन शाम को जब परंतु शाम को वापस लेने के लिए आया तब कुछ लोग जल्दी घर पहुंचने के चक्कर में जल्दी ही गाड़ी में आकर बैठ गए जब तक हम हमारा कार्ड आउट करते तब तक गाड़ी में सारी सीट फुल हो चुकी थी। और गाड़ी रवाना होने वाली थी तभी मैंने गाड़ी को हाथ दिया कि , मैं भी चलूंगा तो उन्होंने कहा कि नहीं गाड़ी अपने आप पीछे वाली गाड़ी में आ जाना मैंने और मेरे दोस्तों ने यह फैसला किया कि थी कि हम पीछे वाली गाड़ी में ही आ जाएंगे । और वह लाल ट्रेक्स यानी मौत की गाड़ी रवाना हो गई क्या बताऊं दोस्तों उस गाड़ी ने हमारे 11 इंजीनियरों की इस तरह जान ली कि आपको बता नहीं सकता आज भी वह दृश्य याद करता हूं तो आंखों में पानी और दिल में कपकपी सी छा जाती है हम लोग भी दूसरी बस में रवाना हो चुके थे सिर्फ 15 मिनट का ही फर्क था तभी हम रास्ते में चल रहे थे और मेरे मोबाइल पर कॉल आया की गाड़ी का एक्सीडेंट हो चुका है यह करीब चलने के आधा घंटा 45 मिनट बाद लाल गाड़ी एकदम हमारे गंतव्य के बिल्कुल करीब पहुंच चुकी थी। परंतु एक ऐसा एक्सीडेंट हुआ कि सामने से आए हुए ट्रक से टकराई और उसमें बैठे सारे लोगों की मृत्यु ऑन स्पॉट पर ही हो गई थी । उनमें से सिर्फ किस्मत से तीन आदमी ही जिंदा थे बाकी 11 इंजिनियर एक्सपायर हो चुके थे । एक्सपायर भी इस तरह सबके सर पर चोट थी । और पूरे शरीर में कुछ नहीं । एक ड्राइवर बच गया जैसे है ऐक्सिडेंट हुआ वो गाड़ी से बाहर कूद गया । पीछे एक इंजिनियर बैठा था उसकी भी विंडो का गेट खुल गया । और वो भी बाहर कूद गया । एक और इंजिनियर नाजुक स्थिति में था । उसकी स्थिति बहुत है गंभीर थी । सब सोच रहे थे ये भी नहीं बचेगा । उसको पहले है जिला अस्पाल के लिए रवाना कर दिया था। मैंने अपने चिकत्सा अधिकारी का फोन किया । डॉक्टर साहब ने बोला कि , तुम पहले ऐक्सिडेंट की जगह पहुंचो हम भी पहुंचते है । सबके घर का आने का समय करीब शाम को ही था । सब मैनेजर भी हमारी गाड़ी के पीछे ही आ रहे थे । तभी अचानक मैंने हमारी कंपनी की एम्बुलेंस पीछे से आती देखी ।मैंने एम्बुलेंस ड्राइवर को फोन किया । और बस से उतार कर हम लोग से दुर्घटना वाली जगह के लिए रवाना हो गए। ड्राइवर भी अनुभवी होने के कारण हम लोग दस मिनिट के अंदर दुर्घटाग्रस्त स्थान पर पहुंच गए । वहा सिर्फ दिन गाड़ियां चकनाचूर अवस्था में खड़ी थी। सामने से भयंकर टक्कर थी । देखकर लगता था कोई नहीं बचा होगा । फिर किसी ने बताया कि सभी को कस्बे के अस्पताल में लेकर गए है । हम भी वहां से सरकारी अस्पताल के लिए रवाना हो गए । जैसे ही अस्पताल पहुंचे तो वहां मामला बहुत गमगीन था । अधिकतर लोग इकट्ठा हो रहे थे । क्युकी सबके लिए बहुत बड़ा एक्सिडेंट था। मै एम्बुलेंस से उतारा हॉस्पिटल के अंदर गया तो नजारा देखा तो आंखो में पानी आ गया परन्तु नर्स होने के नाते हिम्मत रखी और अपने बुद्धि और विवेक से काम लिया । जो लोग एक घंटे पहले जीवित थे। हम लोगो से बात कर रहे थे ।वो सब मौत के मुंह में समा गए थे । एक एक करके में सबकी पहचान करने लगा । इतने में हमारे मुख्य चिकित्सा अधिकारी भी आ गए । उन्होंने बताया कि एक इंजिनियर की हालत नुजुक है । हम वहा जा रहे है ,पवन तुम यहां पर प्रबंध करो और अभी उनके परिवार जनों को कुछ नहीं कहना है। परिवार जनों में भी कौन किसी की पत्नी और किसी के बच्चे ,हम सब लोग तो परिवार से दूर रहकर अपनी नौकरी करते थे। तभी खबर अचानक पूरे कस्बे में आग की तरह फैल गई थी । लोगो की भीड़ इकट्ठी होने लग गई । अभी सभी मृत लोगों को पहचाना और शिनाख्त करना बहुत कठिन कार्य था क्यों करीब करीब सभी के सिर पर चोट थी । किसी का पूरा चेहरा बिगड़ा हुए था । इस समय मोबाइल की टॉर्च लगा लगा कर उन सभी साथियों की पहचान की काफी अंधेरा हो चुका था सबको एम्बुलेंस में शिफ्ट किया और जिला अस्पताल के लिए रवाना हो गए । बीच में खूब फोन आये सबके परिवारों से लेकिन सबसे बोल दिया कि अभी हालत गंभीर है और सभी को जिला अस्पताल जा रहे है । और सबकी डेड बॉडी जिला अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए शिफ्ट करवाई । और जिसकी हालत सीरियस थी । उसके पास गया तो देखा कि उसकी हालत भी जायदा गंभीर थी । नाक कान और मुंह से खून की धाराएं बह रही थी । तुरंत उसके लिए ब्लड का अरेंज हमारे साथियों से मिलकर किया । तब तक वहा के डॉक्टर ने जवाब दे दिया था । कि आप मरीज़ को जितना जल्दी हो सके नजदीकी आपातकालीन हॉस्पिटल में रेफर कीजिए । और उसे एम्बुलेंस से राजकोट के लिए रवाना कर दिया । सभी ने सोच लिया था कि हमारे इस साथी का बचाना भी मुश्किल है । लेकिन डॉक्टर्स के अथक प्रयासों से और नर्सेज की मेहनत से उसकी जान बच गई । और वह तीन महीने बाद सकुशल हो गया अब रात ही को उन सब लोगों का पोस्टमार्टम करवाना और उनकी डेड बॉडी को ताबूत में रखकर उनके घर तक पहुंचना ये सारा मैनेज करना था । वैसे साथ में और भी एच आर की टीम भी थी । और हमारे डॉक्टर साहब के सुपर विजन में हम सब लोग कार्य कर रहे थे । सिविल सर्जन ने बोला पोस्टमार्टम सुबह चार बजे से शुरू करेंगे । सभी डेड बॉडीज को मोर्चरी में रखवाई । रात के दो बज गए थे। फिर ताबूत और कफ़न का प्रबंध किया । इतने ताबूत तैयार नहीं मिलते है कभी । फिर ऑर्डर देकर बनवाए । सुबह के चार बज गए । फिर सफेद कफ़न का इंतजाम करना था । सुबह चार बजे कहा मिलेंगे । तभी मार्केट जाने के लिए में निकला । दुकान तो सभी बंद थी सुबह का समय था तभी ध्यान आया कि रास्ते में कोई राहगीर चल रहे है मैने उन्हे रोका और रात की सारी घटना बताई और उन्होंने ने मानवता के नाते मेरी मदद की और अपने एक परिचीत की दुकान पर मुझे लेकर गए । उन्होंने अपने परिचित को उठाया और दुकान खुलवाई । दुकानदार बोला मानवता के लिए में दुकान खोल रहा हू । उनका बिल देकर उनका शुक्रिया अदा किया , और हॉस्पिटल आ गए सारी डेड बॉडी को कफ़न के साथ पैक करवाई । सुबह के पांच बज चुके थे ।फिर कुछ बर्फ का प्रबंध किया । क्योंकि कुछ इंजिनियर बहुत दूर के रहने वाले थे । तो कुछ दिल्ली के उनकी बॉडी फ्लाईट से भेजनी थी । कुछ बॉडी को एम्बुलेंस के की सहायता से रवाना किया । एयरपोर्ट पहुंच कर ताबूत को बुक करवाया । तब तक शाम के चार बज गए थे । फिर हम सब हम हमारे घर पर आए । किसी ने उस दिन खाना भी नहीं खाया । उस दिन पता चला जान कि कीमत का और संकट के समय धेर्य और साहस की जरुरत होती है । कभी भी इसी प्रकार की परिस्थियो का मुकाबला करना चाहिए । जल्दी कभी नहीं करनी है । जीवन अनमोल है दोस्तो , हमेशा कही भी सफर में जाओ और कोई चालक गाड़ी जल्दी चला रहा है तो उसे टोंको। आप सभी नियत गति से ड्राइविंग करे । दुर्घटना से देर भली । आपका पवन कुमार शर्मा " कोटिल्य" चित्तौड़गढ़ राजस्थान  

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