"सो मिस्टर शर्मा! यू विल एकंपनी मी विद ब्रीफ एंड प्रेजेंटेशन।" निदेशक ने मीटिंग समाप्त करते हुए मुझे हिदायत दी।
"श्योर सर!" मैंने उत्तर दिया और फाइल्स समेटने लगा।
सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार के फलस्वरूप हमें भी एक कैबिनेट और दो राज्य स्तर के नए मंत्री मिले है। इसलिए कल कर्टेसी मीटिंग के लिए जाना है ताकि अपने विभाग के बारे में मंत्रियों को अवगत कराया जा सके।
तभी मेरे मोबाइल की बेल बजी, देखा तो पिताजी का फोन था जोकि फिलहाल छोटे भाई के पास है। उनको लास्ट स्टेज कैंसर है और डॉक्टर ने कीमो के लिए बोला है। मैंने फोन उठाया तो उधर से रोने की आवाज सुनाई दी। दिल बैठ गया अनिष्ट की आशंका से। लेकिन ऑफिस में होने के कारण 2 मिनट तक धीमी आवाज में मम्मी! मम्मी! पुकारता रहा। मैंने सोचा, फोन काट कर भाई को लगाता हूं, पर तभी पापा की रुंधी हुई आवाज सुनाई दी।
"बेटा..…." और वे फिर रोने लगे।
दिल को शांति मिली कि सब ठीक है। "क्या हुआ पापा क्यों रो रहें है? आप तो कभी मायूस भी नही होते।"
"नहीं कुछ नहीं। आना तो बहु को भी ले आना, याद आ रही है।"
मैं किंकर्तव्यमविमूढ़ सा खड़ा रह गया। बहु की याद?
सिम्मी से कहूंगा तो कहेगी कि "क्या अपने पुराने दिए जख्म याद आ रहे है? या फिर मृत्यु को समीप देखकर अंतरात्मा जाग गई है। या अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहते है। कैसे-कैसे आरोप- प्रत्यारोप लगाते रहते थे मुझ पर।"
पर सिम्मी कौन सी कम है? मैं तो भाई साइड हो लेता हूं। अपने आप थोड़े टाइम बाद सब सही हो जाता है।
सिम्मी ने सुना था कि देवर की शादी में पूरे घर को कपड़े दिलाए जाते है और घर की बहु-बेटी के लिए कोई छोटा मोटा गहना भी बनवाने का रिवाज है। उसने बड़े लाड़ में आकर मम्मी को बोला कि देवर की शादी के लिए एक अच्छी सी 1500 - 2000 की साड़ी दिलवा देना। मम्मी ने पता नही पापा को क्या बोला कि पापा आपे से बाहर हो गए।
"तेरी औकात है इतनी महंगी साड़ी पहने की?"
इतनी सी बात पर ही सिम्मी का तो पारा हाई हो गया। इसमें दिल दुखने वाली क्या बात है भला! मैं खरीद देता, पर नहीं! नाक नीची नहीं हो जाती मैडम की! मेरे बहुत इसरार करने पर भी अपने पैसों से ही अपने लिए इतनी महंगी साड़ी खरीदी कि दुल्हन के पास भी नही थी वैसी। कितना बुरा लगा होगा सब को।
अब मम्मी ठहरी पुरानी पीढ़ी की। उनको रोज रात को घंटा आधा घंटा अपने पैर दबवाने में आनंद आता है तो कर दो ना यार! ऑफिस में सारा दिन बैठना ही तो होता है। आकर खाना बनाओ, पैर दबाओ, सब खुश और माहौल भी अच्छा। लेकिन नहीं, गाहे- बगाहे राग अलापना कि मैं थक जाती हूं। तो उसमें मैं क्या कर सकता हूं? मेरी मम्मी ने भी तो सारी जिंदगी यहीं दिल्ली में बिताई है और अकेले सारा काम किया है, वो तो सास के पास भी नही रह पाईं गांव में, जो सास से लाड़ लड़ाती। अब बहु मिली है तो उनके भी अरमान है ना ज्वाइंट फैमिली में रहने के! पर कोई समझे तब ना!
मम्मी 500 रुपए हर महीने जेब खर्च देती थीं, उसमे से बहनों को राखी पर गिफ्ट दे देती है तो हाथ तो तंग रहेगा ही ना। एक तो ननद है, उसी का ध्यान रखो और सुखी रहो। मैं भी तो अपनी सारी सैलरी मम्मी को देता हूं पर कभी परेशान नहीं होता। जब जरूरत होती हैं मांग लेता हूं। मेरा खुद का खर्च ही कितना है? पर मैं सिम्मी को कभी कुछ नही कहता चाहे वह कुछ भी खरीदे अपने लिए, पर दीदी के लिए भी वही ले आओ नहीं तो घर का माहौल खराब होगा, फिर मैं कुछ नही कर सकता। मैंने तो आज तक कुछ खरीदा ही नहीं, कौन पड़े इन चक्करों में। सब बोलते हैं, "मिस्टर शर्मा कितने सीधे आदमी है 5 साल से वही कमीजें पहन रहें हैं।"
सिम्मी प्रेगनेंट थी तो मम्मी ने उसकी बहन बुला ली थी। कितना आराम हो गया था उसको। मम्मी और दीदी को भी थोड़ा सहारा हो गया था। पर सिम्मी को अच्छी बातें तो याद ही नहीं रहती। प्रेग्नेंसी में मेरे साथ मोटरसाइकिल पर नही जाने दिया की कुछ ऊंच-नीच हो जायेगी, और फिर मुझे भी टाइम से ऑफिस पहुंचना होता था, सरकारी नौकरी थोड़ी है, जाओ और बैठ जाओ। मजे से अकेली रिक्शा और बस में जाती थी और ग्यारह बजे ऑफिस पहुंचती थी। कौनसा काम होता है सरकारी ऑफिस में?
पहली प्रेगनेंसी में एक बार रूटीन चेकअप के लिये गई तो डॉक्टर ने एडमिट कर लिया कि कॉम्प्लिकेशंस है, अभी डिलीवरी करनी पड़ेगी। अब पढ़ी लिखी हो, अपने आप एडमिशन करा कर ऑपरेशन थिएटर में चली गई तो क्या हो गया? वहां सेफ हैंड में ही थी ना! शाम को घर आकर मम्मी ने खाना और चाय देने के बाद बताया तो मैं डिलीवरी से पहले पहुंच तो गया था ! और पहले पहुंच भी जाता भूखा-प्यासा, तो दर्द तो तुम्हें ही सहना था। इतनी सी बात नही आती दिमाग में। मैं तो कुछ कहता ही नहीं!
दूसरी प्रेग्नेंसी में फिर ड्रामा! इतने साल हो गए बस में ट्रैवल करते, पता नही है कि कैसे चढ़ा-उतरा जाता है। पता नही क्या बवाल! सीधी हॉस्पिटल चली गई। अब मैं क्या कर सकता हूं। ताने मारती है कि "मैंने सबके साथ किया लेकिन मेरी दोनो डिलीवरी तक में कोई मेरे साथ नहीं गया।" अब हॉस्पिटल का बिल पापा को चुकाना पड़ा। जब पहले से पता था कि जरूरत पड़ेगी तो जीपीएफ से पैसे निकाल कर बैग में रख लेने थे। और बिल तुम्हारे ऑफिस में जमा होने है, तो तुम्हे ही पता होगा ना कैसे बनवाने है! तीन महीने बाद जब बिल पास हुआ तब वापिस किए सिम्मी ने पैसे, मम्मी तो नाराज रहेंगी ना! कुछ बोलो तो मूंह सड़ा लेती है, मैं तो चुप ही रहता हूं।
मम्मी को चेन और दीदी को हल्का सा हार बनवा दिया। मम्मी कह रही थीं शादी की लगन में जो पीतल की बड़ी परात आती है वो दी जाती है काजल डलवाई। लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी की हैं मैडम! ये सब रीति-रिवाज कहां पता हैं? अब मैं क्या करूं! लड़ूं सबसे! मेरा तो परिवार है, मैं क्या कर सकता हूं?
सिम्मी के पापा ने एक बार अपनी छोटी बेटी के लिए रिश्ता बताने को कहा। मेरे पापा ने बोल दिया बड़े अच्छे संस्कार दिए है अपनी बेटियों को जो मैं रिश्ता बताऊं। अब लड़की वालों को तो ऐसा छोटा- मोटा सुनना ही पड़ता है। इसमें मैं क्या कर सकता हूं? मैं तो कुछ नही कहता ना!
मेरी मम्मी की 49 साल की हो गई हैं, वो बच्चे कैसे संभालेंगी भला! ठीक है तुम्हारी मम्मी 52 साल की हैं, पर तुम्हारे घर में तो चार-चार अनमैरिड बहनें हैं, पता भी नहीं चलेगा कि बच्चे कैसे पल गए! अरे! सुबह ऑफिस जाते हुए बच्चों को मायके छोड़ दो और शाम को अपनी मम्मी के हाथ की चाय पीकर फ्रेश हो, बच्चों को ले आओ। रोज-रोज मायके जाना किसे नसीब होता है? मैं तो बस स्टॉप तक छोड़ देता हूं, प्रेगनेंट वाइफ और गोद में बच्चा, साथ मैं थैला, मेरा घर तक जाना रोज-रोज अच्छा लगता है क्या? सिम्मी के पड़ोसी क्या सोचेंगे!
मेरी दीदी शादी-शुदा है। लेकिन जीजाजी नौकरी पर दूसरे डिस्ट्रिक में हैं, तो क्या दीदी को बुड्ढे- बुढ़िया की सेवा के लिए छोड़ दें! मेरी मम्मी तो 8 साल रही बच्चे लेकर अपने मायके, जब पापा ने मकान बना लिया तब दिल्ली आई। दीदी भी आठ-दस साल में चली जायेगी, जब उसके बच्चे पल जायेंगे। इतनी सी बात समझ नही आती, तो मैं क्या कर सकता हूं!
मम्मीजी-पापाजी रिटायरमेंट के बाद गांव चले गए कि ना बड़ी बहु के बच्चे पाले, ना छोटी के पालूंगी। हम तो स्वतंत्र रहे हैं आगे भी स्वतंत्र ही रहेंगे। रिटायरमेंट के पैसे से गांव में बड़ा मकान बनवाया, नाक ऊंची हो गई। साल में दो-चार महीने तो वहां रह ही आते है, यहां फिर रहते ही कितने दिन है? जी भर के सेवा करो मेवा मिलेगी। जिस डाल पर फल होंगे वह तो झुकेगी ही। अब तुम्हारे मां-बाप को बेटा नही हुआ, तो मैं क्या करूं?
छोड़ो! उन सब बातों को, अब तो 22 साल बीत चुके हैं। मैंने तो अब चुप्पी ही साध ली है।
पापा-मम्मी गांव से आ गए है। पापा की हड्डियों में दर्द रहता है। डॉक्टर ने ब्लड कैंसर बताया है जो हड्डियों में फैल चुका है। सिम्मी काम तो सारे हँस-हँसकर करती है पर मम्मी कुछ कहती है तो मूंह बना लेती है। मेरे सामने तो हमेशा परेशान ही रहती है।
अब ऑफिसर बन गई है तो काम ही क्या है ऑफिस में? अभी सिर्फ 49 साल की है फिर भी थकी ही रहती है। घर में तो अब सिर्फ 6 प्राणी है दीदी भी चली गई है। मुझे कुछ समझ नहीं आता क्या करू?
पापा का पैर टूट गया है तो भाई के घर भेजना पड़ा क्योंकि मेरे फ्लैट में लिफ्ट नही है। रोज जाता हूं देखने । डॉक्टर को दिखाना, दवा, वॉकर, व्हील चेयर आदि सब कर देता हूं, पर मन में कसक सी रहती है। छोटे भाई की पत्नी मानसी बेचारी सारे दिन उन लोगों की तीमारदारी में लगी रहती है। सिम्मी तो अब फ्री हो गई है। मजे है उसके, बस ऑफिस जाओ और चार लोगों का खाना बना दो।
सिम्मी के पेरेंट्स बीमार हैं। तो भई! खाना बना दो और उन्हे देखकर शाम को आ जाना वापिस, जैसे ऑफिस से आती हो। मैंने तो कभी मना नही किया। अब तो डीटीसी बस फुल सीट में चल रही है और लेडीज के लिए फ्री भी है। मैं भी गाड़ी की सर्विस कराकर, मम्मी को डॉक्टर को दिखाकर शाम तक आ जाऊंगा। लेकिन मम्मी- पापा को इस बारे में मत बताना, बुरा मान जायेंगे।
"सिम्मी! पापा ने बुलाया है।"
एक हफ्ता हो गया उन्हे देखे हुए। अपने घर फिर कभी चली जायेगी। एक हफ्ते से छोटे भाई के घर पर हैं, वो लोग भी कितने परेशान होंगे।
"बाकी तुम्हारी मर्जी, मैं तो कभी कुछ बोलता ही नहीं!"
नौकरी वाली बीवी को संभालना आसान काम थोड़े ही है।
- गीता भदौरिया