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एक तरफा प्यार अनोखा रिश्ता

24 दिसम्बर 2021

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तन बावरा मन बावराऔर उस पर बावरी से बह रही है यह हवा भी। वृंदा फिर से तय समय में खिड़की के पास आकर खड़ी हुई यही समय तो है, उस शख्स के उस पास की सड़क से गुजरने का। वृंदा छुप छुप कर इस खिड़की से देखा करती है।वह दूर से ही एक सलीका पसंद तहजीबदार इंसान मालूम पड़ता है। उसके सधे कदमों से चलने का अंदाज तो किसी को भी प्रभावित करने के लिए काफी था। वेल अप टू डेट कहीं कोई खामी वृंदा को उसमें नजर नहीं आती थी।

 समाज की नजरों में वृंदा एक परित्यक्ता थी। 4 साल के बेटे के साथ अकेली रहती थी। वृंदा जिस स्कूल में नौकरी करती थी उसी स्कूल मे अपने बेटे राज का एडमिशन भी कराया था, वह जब 8:00 बजे अपने स्कूल के लिए निकलती उस समय वो शख्स अपने पौधों को पानी देता रहता और वृंदा से उसकी यह दिन की पहली मुलाकात होती और दूसरी जब वृंदा स्कूल से घर आ जाती तो खिड़की पर, एक अनजाने के लिए मन में पनपने वाले आकर्षण में वृंदा बंधती चली जा रही थी।।

 इस अनोखे रिश्ते में वृंदा ऐसी उलझ गई थी कि उसे यह आभास भी नहीं था कि वह कर क्या रही है ? अपने द्वारा गढ़े गए मानसिक रिश्ते में इस कदर खो गई थी वृंदा कि अगर किसी दिन स्कूल जाते समय वो दिखाई नहीं देता तो वृंदा का पूरा मूड ही खराब रहता वह अपना काम भी ठीक से न कर पाती। उसके मन में संशय घर कर जाते सबसे पहला तो कहीं वह अब मकान तो खाली नहीं कर गया या फिर तबियत तो खराब नहीं हो गई होगी उसकी, ऐसे विचार मन में आते ही वृंदा भगवान से मन्नत मांगने लगती प्रार्थनाएं करती।

 दूर ही से उस शख्स के साथ वृंदा ने एक ऐसा एकतरफा रिश्ता जोड़ लिया था जिसका न वो नाम जानती थी ना ही जात जानती थी और ना ही उसके परिवार के बारे में ही कुछ जानती थी। सिवाय इसके कि वह उसके घर के सामने रहता है वृंदा को यहां आए अभी 3 महीने हुए हैं। वह एक किराएदार थी। पर उसे यह नही पता था कि सामने वाला व्यक्ति किराएदार है या मकान का ऑनर है।
 जहां वृंदा रहती वहां के लोग शुरू में तो उसे परिचय बढ़ाने की कोशिश करते मगर जैसे ही उन्हें यह पता चलता कि पति ने छोड़ दिया है लोगों का नजरिया ही बदल जाता लोग खींचे खींचे रहने लगते और कानाफूसी करते सो अलग। तो वृंदा को यह सब बहुत बुरा लगता है कई बार मन में आया कि यहां से कहीं दूसरी जगह चली जाए फिर सोचती जहां भी जाती हूं ऐसा ही होता है क्योंकि बहाने बनाना और झूठ बोलना वृंदा के बस की बात नहीं थी। ऐसे माहौल में राज का कोई दोस्त भी नहीं बनता हां स्कूल के दोस्त स्कूल तक ही सीमित रहते।

 राज हमेशा अपने अकेलेपन की शिकायत करता वृंदा भी समझती थी कि इसकी ेशिकायत वाजिब है। वृंदा भी उसे बहलाने की  कोशिश करती है पर कभी-कभी राज हद से ज्यादा इमोशनल हो जाता तो ऐसे में वृंदा भी परेशान हो जाती वृंदा ने राज से वादा किया की अगली पेमेंट में राज के लिए साइकिल खरीदेगी यह सुनकर राज बहुत खुश हो जाता है।

आज पांच तारीख है वृदा को पेमेंट मिली। तो उसने हाफ डे ले लिया। राज से किया गया वादा जो पूरा करना था। राज को साथ लेकर वृंदा सीधे मार्केट के लिए निकल गई।
आटो में बैठी हुई वृंदा सोच रही थी कि आज राज साइकिल पाकर कितना खुश होगा मार्केट में ऑटो से उतरकर ऑटो वाले को पैसे देकर वृंदा आगे बढ़ी कुछ दूर चलते ही बच्चों के खिलौने की दुकान और साइकिल की दुकान नजर आई वृंदा दुकान में दाखिल होकर साइकिल के भावताव करने लगी तभी उसने उस व्यक्ति को दुकान में प्रवेश करते देखा जिसके सपनों में वह दिन रात खोई रहती है।

 वृंदा बात करते-करते ठिठकी और दुकानदार भी वृंदा से बात करना छोड़ कर अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ और उस शख्स से मुखातिब  होते हुए बड़ी गर्मजोशी से हाथ बढ़ाते हुए कहने लगा आइए आइए सर आइए, आज इधर कैसे रास्ता भूल गए आने वाले शख्स ने शांत स्वर में कहा अरे नहीं भाई कोई रास्ता वास्ता नहीं भूला बस इधर से गुजर रहा था सोचा आप से भी मिलता चलूं तभी उस शख्स ने वृंदा और राज को देखा उसने राज से कहा छोटू क्या लेना है? आपको राज ने कहा कि अंकल मुझे साइकिल लेना है पर मुझे समझ नहीं आ रहा है कौन से रंग की ले लूं उस शख्स ने राज से कहा क्या मैं सायकल पसंद करने में तुम्हारी मदद करूं? हां अंकल जी राज के ऐसा कहने पर उस शक्स ने दुकानदार से कहा वह रेड वाली साइकिल निकालो इस पर बैठकर छोटू राजकुमार लगेगा बचपन में मैंने भी रेड कलर की साइकिल खूब चलाई है?

 दूर खड़ी वृंदा राज और उस शक्स की बातें सुन रही थी। उसके मन में कई विचार आ जा रहे थे, भगवान ने आमना-सामना भी कैसी विचित्र परिस्थितियों में करवाया है फिर सोचती जो भी हुआ ठीक हुआ लेकिन यदि मैं उसे पहचान गई तो क्या वह हमें नहीं पहचाना ऐसे कैसे हो सकता है? तभी वृंदा ने सुना वह राज से कह रहा था बेटे तुम्हारा नाम क्या है? और तुम कहां रहते हो? तो राज ने कहा मेरा नाम राज है अंकल और मैं तो आपके घर के सामने वाले घर में अपनी मम्मा के साथ रहता हूं और  आपके पापा जी उस शख्स ने फिर पूछा?  उसके इस सवाल पर राज खामोश रहता है तो शख्स कहता है चलो कोई बात नहीं मुझे नहीं बताना चाहते तो ना बताओ पर क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगे उसके इस प्रश्न पर राज धीरे से सिर हिलाकर हामी भरता है वह शख्स अपना हाथ राज की ओर बढ़ाता है राज भी शरमाते हुए अपनी नन्हीं हथेली उसके हाथ में रख देता है। वृंदा को यह सब देख कर बहुत अच्छा लगता है। वो शख्स फिर कहता है ओके आज से हम दोस्त बन गए हैं, है ना? राज फिर हां में अपना सिर हिलाता है तो वह शख्स कहता है यह क्या दोस्त अब तो अपन दोनों दोस्त बन गए पर अभी तक आपने अपने दोस्त का नाम भी नहीं पूछा राज ने बड़े भोलेपन से कहा आपका नाम क्या है? अंकल, मेरा नाम राजीव सिन्हा हैं आज से तुम मेरा नाम लेकर बुलाना ठीक है। नहीं नहीं मैं आपको अंकल कह कर ही बुलाऊंगा राज बोल पड़ा मम्मा कहती है कि बड़ों का नाम नहीं लेना चाहिए उसकी इस बात पर राजीव ने पहली बार नजर उठाकर बिंदा की तरफ देखा तो देखता ही रह गया सोच रहा था राजीव सादगी और खूबसूरती दोनो एक साथ और वो भी ऐसी जो कभी देखी ना हो।


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 लेखिका - ममता यादव प्रांजली काव्य
 स्वरचित व मौलिक उपन्यास। सर्वाधिकार सुरक्षित।
भोपाल - मध्यप्रदेश
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क्रमशः....... +..........?
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रचनाएँ
कैसी ये जिन्दगी
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इस उपन्यास में - 25 भाग है यह उपन्यास एक स्त्री के जीवन संघर्ष पर आधारित है। लेखिका - ममता-यादव (प्रान्जलि काव्य) पूर्णतः मौलिक व स्वरचित तथा सर्वाधिकार सुरक्षित रचना
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कैसी सी ये जिन्दगी - भाग-5

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अतीत की यादों ने आज वृंदा को झकझोर कर रख दिया था। वह भी ऐसा की वर्तमान की हवाई कल्पना में भी एक ठहराव सा आ गया है। सोचने लगे विंदा मैं जिस तरह से राजीव जी के आकर्षण में बनती जा रही हूं क्या यह सही है?

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कैसी ये जिन्दगी भाग - 6

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राजीव के जाने के बाद वृंदा आश्चर्य के भंवर से निकल ही नहीं पा रही थी। उसकी आंखों के सामने बार-बार रीता का चेहरा आ जाता राजीव और अपनी मुलाकात रीता मुझसे छुपाना क्यों चाहती है रीता के मन में राजीव को ले

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कैसी ये जिन्दगी - भाग - 8

23 जनवरी 2022
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आज शनिवार है। वृंदा ने अपने मायके जाने के लिए कल ही स्कूल से 2 दिन की छुट्टी ले ली है रविवार मिलाकर उसके पास 3 दिन का समय हो गया अब सब ठीक रहा तो 3 दिन बिताकर वापस आएगी नहीं तो वापस आकर घर में ही छुट्

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4 फरवरी 2022
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वृंदा आजकल बहुत खुश रहने लगी है और राज भी, पर दोनों के खुशी की वजह अलग-अलग है राज के पास नाना नानी के घर की यादें हैं तो वृंदा की उमंग दिल में उठने वाली नई तरंग है। आजकल वृंदा खुद पर ध्यान भी देने लगी

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5 फरवरी 2022
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वृंदा जो अब तक खामोशी से राजीव की बातें सुन रही थी बोली राजीव जी आपकी पूरी बात में सुनना चाहती हूं मगर खाने का समय हो रहा है आज आप हमारे साथ ही खाना खाइए मैं अपना काम करते हुए आपकी बातें भी साथ-साथ सु

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भाग-11

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वृंदा सुबह उठकर अपने दैनिक कार्यों को निपटा कर तैयार होकर राज को अपने साथ लेकर स्कूल के लिए निकल पड़ी। आज हल्के नीले रंग की साड़ी और बालों में जुड़े के साथ चेहरे पर हल्के से मेकअप में गजब की खूबसूरत ल

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भाग-12

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वृंदा। नजरें झुकाए हुए थरथराते कदमों से उन सबके सामने आकर खड़ी हुई और बोली मैं जानती हूं आप सब को मेरा इस मोहल्ले में रहना पसंद नहीं है मैं आप सभी से वादा करती हूं कि बहुत जल्दी ही मैं मकान की तलाश कर

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12 फरवरी 2022
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वृंदा और राजीव के अरमानों को तो जैसे पंख लग गए थे राजीव अब हर रोज रात का खाना वृंदा के घर पर ही खाया करते धीरे-धीरे वृंदा राजीव के खाने की पसंद और नापसंद से अच्छी तरह से वाकिफ हो गई थी राजीव भी वृंदा

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13 फरवरी 2022
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सब के सो जाने के बाद वृंदा भी अपने बिस्तर में लेट गई मगर उसकी आंखों की नींद उड़ गई थी उसके मन में भविष्य के सपने चल रहे थे बड़ी मुश्किल से वृंदा को नींद आई बाबूजी के उठने के साथ ही वृंदा भी उठ गई उसे

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वृंदा के। वृंदा के दरवाजे पर पहुंचकर राजीव ने आवाज लगाया, राज दरवाजा खोलो राजीव की आवाज़ सुनकर राज ने दौड़ कर दरवाजा खोला दरवाजा खुलते ही सभी अंदर दाखिल हुए। वृंदा ने रागिनी और उसके पति को दोनों हांथ

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14 फरवरी 2022
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राजीव के कहने पर आज वृंदा ने अपने स्कूल से छुट्टी ले ली है। साथ ही स्कूल नही जाने से राज को भी खेलने का मौका मिल गया है। वृंदा ने उसे सुबह जल्दी उठाया भी नही चाय नाश्ता तैयार करने के बाद ही उसे उठाया

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भाग-21

26 फरवरी 2022
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भाग-23

26 फरवरी 2022
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गांव से लौटकर वृंदा के बाबूजी घर खरीद कर अपनी पत्नी के साथ रहने लगे अब राज का ज्यादा समय अपने नाना नानी के साथ ही बीतने लगा मिस्टर सिन्हा भी अक्सर शाम का समय वृंदा के बाबूजी के साथ ही व्यतीत करत

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भाग-24

26 फरवरी 2022
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भाग-25 उपन्यास का समापन भाग

27 फरवरी 2022
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गार्गी को दरवाजे के बाहर खड़ा देखकर मिस्टर सिन्हा ने समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन गार्गी रुकने के लिए तैयार ही नहीं थी हार कर मि, सिन्हा ने वृंदा के बाबू जी से कहा समधी जी यह तो मान ही नहीं रही है इस

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