21वें राष्ट्रमंडल खेल ों में इस बार भारतीय वेटलिफ्टर अपनी शानदार प्रतिभा का लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। इस कड़ी में भारत की एक बेटी ने अपने शानदार प्रदर्शन से वैश्विक मंच पर तिरंगे का मान बढ़ा दिया है। महिलाओं के 69 किलोग्राम भार वर्ग में पांचवा स्वर्ण पदक जीतकर 22 वर्षीय पूनम यादव ने इतिहास रच दिया है। पूनम की यह जीत देश और परिवार दोनों के लिए ही बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन पूनम के लिए इस मुकाम तक पहुंचाना आसान नहीं था, उन्होंने राह में आने वाली तमाम चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया और आज हिंदुस्तान की करोड़ों बेटियों के सामने मिसाल बनकर उभरी हैं।
बनारस के गांव दादूपुर से ताल्लुक रखने वाली पूनम ने अपना जीवन बेहद गरीबी में गुजारा है। पिता ने बेटी के सपने को पूरा करने के लिए कभी अपने पैर पीछे नहीं किये। कर्ज लेकर और उन्होंने घर की भैंस बेचकर बेटी के लिए कोचिंग का इंतज़ाम किया और राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने की व्यवस्था की।
पांच बहनों और दो भाइयों में पूनम चौथे नंबर पर है। प्रेक्टिस के दिनों में अभ्यास के बाद उनके परिवार ने ऐसे दिन भी देखे जबकि उन्हें भूखे पेट सोना पड़ता था। गरीबी और नियति से लड़ते-लड़ते कई बार पूनम की हिम्मत टूटी लेकिन संयुक्त परिवार के हर एक सदस्य ने उनके भविष्य निर्माण के लिए उनके मनोबल को बढ़ाया। उसी का नतीजा आज यह है कि घर की बेटी ने पूरे परिवार का भाग्य ही बदल दिया। और अपने देश का पूरे विश्व में नाम रोशन कर रही हैं।
पूनम के पिता कैलाश यादव एक किसान हैं जिनकी कमाई में मुश्किल से घर की गुजर-बसर हो पाती है। पूनम रेलवे में टीटी के पद पर हैं। पिता के साथ खेतों में भी मन लगाकर मेहनत करने वाली पूनम ने जब वेटलिफ्टिंग में भी जी जान से मेहनत की तो लगा कि भाग्य ने उनकी दशा बदलने के लिए ही उन्हें खेलों की ओर आकर्षित किया है। दरअसल उनके पिता ने कर्णम मल्लेश्वरी को देखकर बेटी को वेटलिफ्टर बनने के लिए प्रेरित किया। गरीबी और गांव वालों के तानों से दुखी होकर जब पूनम अपने परिवार के मार्गदर्शक स्वामी अड़गड़ानंद जी से मिली तो उन्होंने पूनम को सतीश फौजी द्वारा आर्थिक योगदान दिलवाने में मदद की।
मन में जीत का विश्वास होते हुए भी अपने कोच के निर्देश पर पूनम यादव ने अति आत्मविश्वास की सोच से ऊपर उठकर कड़ी मेहनत की और अपने साथ-साथ परिवार और देश का गौरव बढ़ाया। गरीबी चाहे हमारे देश की बहुत बड़ी समस्या है बावजूद इसके समस्याओं और संघर्षों से लड़ने वाले ही नायक बन पाते हैं, यह भी बहुत बड़ा सत्य है जिसे पूनम यादव ने सिद्ध करके दिखा दिया है।