बेबसी की आख़िरी रात कभी तो होगी रहमतों की बरसात कभी तो होगी जो खो गया था कभी राह-ए-सफ़र में उस राही से मुलाक़ात कभी तो होगी हो मुझ पर निगाह-ए-करम तेरी इबादत में ऐसी बात कभी तो होगी आऊंगा तेरी चौखट पे मेरे मालिक मेरे कदमों की बिसात कभी तो होगी लगेगा ना दिल तेरा कहीं मेरे बिना इन आंखों से करामात कभी तो ह
मानव ही मानवता को शर्मसार करता है सांप डसने से क्या कभी इंकार करता है उसको भी सज़ा दो गुनहगार तो वह भी है जो ज़ुबां और आंखों से बलात्कार करता है तू ग़ैर है मत देख मेरी बर्बादी के सपने ऐसा काम सिर्फ़ मेरा रिश्तेदार करता है देखकर जो नज़रें चुराता था कल तलक वो भी छुपकर आज मेरा दीदार करता है दे जाता है दर्द
यूं तो दीवाने कई पर ना कोई अपना हुआ सोचते ही रह गए बस पूरा ना सपना हुआ ढूंढते ही रह गए हैं ना खुदा मुझको मिला उम्र गुज़री जाए है बेकार जप जपना हुआ कोई पढता भी नहीं चाहे रहूं मैं सामने बेवजह अखबार में देख लो छपना हुआ अजनबी सा अब वो पेश आ रहा है दोस्तों बेकार ही अपना तो उसके साथ में खपना हुआ सोचते थे
असली लगाव हो तो रस्ते बन ही जाते हैं मिट्टी से मिल मुरझाए पौधे तन ही जाते हैं सब दूर हमसे हो रहे फिर भी ना सोच क्या हम उनको समझ अपना लगाए मन ही जाते है किसको कहां परवाह कि वो दिल में बसाएगा अब तो अच्छे लगे हैं जो लुटाए धन ही जाते हैं सही क्या है गलत क्या है यहां जो भी बताएंगे सयाने स्वार्थी लोगों मे
त्तुम्हारे पास जीने के सुनो कितने सहारे हैं मैंने तो उलझनों में बिन तेरे लम्हें गुजारे हैंकोई भी दर नहीं ऐसा जहां पे चैन जा मांगूतेरे आगे तब ही तो हाथ ये दोनों पसारे हैंदर्द सहता रहा हूं मैं दवा मिलती नहीं कोईछुपे शायद इसी में जिंदगी के कुछ इशारे हैंभले ही तुम जमाने के लिए सच से मुकर जाओमेरी धड़कन क
यह दावा है मेरा मैं तुझे याद आता रहूंगा हवा बनकर सांसों में तेरी समाता रहूंगा तेरी रूह भी हो जाये बेचैन सुनकर जिसे लिखकर ग़ज़लें ऐसी मैं अब गाता रहूंगा सो भी ना सकोगे सुकूं से बिछड़कर मुझसे यादों से अपनी ऐसे मैं तुझे जगाता रहूंगा ख़ैरियत तक पूछेंगे लोग मेरी तुझसे ही एक सवाल बनकर तुझे सताता रहूंगा तुम बु
तुमको तलाशते रहे तुम ना मिले मुझे हरदम रहेंगे जान लो कुछ तो गिले मुझे सब कुछ लुटा दिया फकत इक बोल पे तेरे मिल जाते काश इसके एवज कुछ तो सिले मुझे इक प्यार तेरा गर यहां मुझको नसीब हो मिट्टी लगेंगे जान लो ये सब किले मुझे है फूल का सा मन मेरा फिर भी उदास हूं मुद्दत हुई है देख लो कितनी खिले मुझे मधुकर ने
कैसे दर्द ना हो मुझे तुम भी बदल गए अरमान मेरे कदमों तले सारे कुचल गए यूं तो है भीड़ हर तरफ तुझ सी ना बात है देखा है तुझको जिस घड़ी आशिक मचल गए अब वो कभी ना आएगा मुझसे है कह रहा बिजली गिराओ ना सुनो दिलबर दहल गए अच्छी नहीं ये बात सनम सब कुछ भुला दिया उनकी भी कुछ तो सोच जो करते पहल गए भूलो ना प्यार से
ज़िंदगी ने इस क़दर रूलाया है सारे ख्वाबों को हमने जलाया है ऐसा था हमारी बेबसी का आलम पतझड़ में भी शाख़ों को हिलाया है देखो सुक़ून से सोया है वो बच्चा लगता है उसकी मां ने सुलाया है ना जाने क्यों रो रही है ये बुढ़िया मैंने जबसे इसे खाना खिलाया है मुसलमान महफूज़ नहीं यहां गद्दार ने यह भ्रम फैलाया है उसका ही स
हर दिन होली और हर रात दिवाली है जब बिहारी की महबूबा होती नेपाली है ग़र यकीं ना आये तो इश्क़ करके देखो फिर समझ जाओगे क्या होती कंगाली है जिसकी खातिर लड़ता रहा वो ज़माने से आज उसी ने कह दिया उसे तू मवाली है जरूर इज्ज़त करता होगा वो उसकी जो ज़ली
वो जो कहते थे कि तुम ना मिले तो ज़हर मुझे पीना होगा खुश हैं वो कहीं और अब तो उनके बगैर ही जीना होगा चोट नहीं लगी है दिल पे चीरा लग गया है मेरे दोस्त सह लूंगा दर्द मगर इस दिल को उनको ही सीना होगा इश्क़ बहुत था उनको हमसे लेकिन मजबूर थे वो लगता है शादियों के संग ही बेवफ़ाई का महीना होगा संभाल कर रखा था हम
तुम मुझे लगती बहुत ही प्यारी हो सच-सच बताओ क्या तुम बिहारी हो अब तो होने लगा है प्यार भी तुमसे लगता है फ़नां होने की बारी हमारी हो जो भी आया खुरच कर घायल कर गया जैसे हमारा दिल इमारत सरकारी होभर जाते पेट नेताओं के भाषण से ही जब महंगाई के साथ बेरोजगारी हो लिखेंगे ग़ज़ल हम अपनी मर्ज़ी से ही दुश्मन तुम या स
तन्हाई किसी की मुस्तकबिल न होखुशियां इतनी भी मुश्किल न होऔर पाने की आशा होअंतिम लक्ष्य हासिल न होप्यार तो सच्चा होलेकिन उसकी मंजिल न होप्रेम में डूबा होस्नेह-सरिता का साहिल न होमन में समर्पण होमहबूबा संगदिल न होज्ञान का भंडार होपर मानव जाहिल न होउससे भी प्यार होजो उसके काबिल न हो .................
शेरनी भी पीछे हट गयीबछड़े की मां जब डट गयीहमारी कलम वो खरीद न सकेलेकिन स्याही उनसे पट गयीहमारे मुंह खोलने से पहलेदांतों से जीभ ही कट गयीसच बोलने लगा है अब वोसमझो उमर उसकी घट गयीगौर से देखो मेरे माथे कोबदनसीबी कैसे सट गयीकमीज तो सिला ली हमनेलेकिन अब पतलून फट गयीउसने गले से लगाया ही थाकमबख़्त नींद ही उच
बहुत हुई आवारगी अब तो संभल जाने दो निभाना है मुझे राष्ट्रधर्म मत रोको जाने दो अंधेरा बहुत गहरा है एक चिराग़ जलाने दो खोल दो पिंजरें सारे परिंदों को उड़ जाने दो वे कोई ग़ैर नहीं हैं औलादें हैं मेरी मां की मत रोको उन्हें मेरे गले से लग जाने दो सुना है बहुत शिकायतें हैं उन्हें मेरी ग़ज़ल से करेंगे वो भी
तक़दीर में केवल खुशियां कब आती हैं सच्चे प्यार में परेशानियां सब आती हैं छुपा ना रहे जब राज़ कोई दरमियांमोहब्बत में गहराइयां तब आती हैं सोचा भूल गया तुझसे बिछड़के लेकिन तेरे संग गुजारी शामें याद अब आती हैं फैल जाती है खुशबू सारी फ़िज़ाओं में तेरे तन को छूकर हवायें जब आती हैं ...................
हर राम का जटिल जीवन पथ होगा जब पिता भार्या भक्त दशरथ होगा करके ज़ुल्म करता है वो इबादत कहो फिर कैसे पूर्ण मनोरथ होगा नींद आयेगी तुझे भी सुकून भरी जब तू भी पसीने से लथपथ होगा कृष्ण का भी रथ बढ़ रहा नहीं आगे सुदामा के रक्त से सना राजपथ होगा आज भी दुःशासन कर रहा विचरण कानून खरीदने में वो महारथ होगा
आज लौटकर मिलने मुझसे मेरा यार आया हैशायद फिर से जीवन में उसके अंध्यार आया हैबचकर रहना अबकी बार चुनाव के मौसम मेंमीठी बातों से लुभाने तुम्हें रंगासियार आया हैबहुत प्यार करता है मुझसे मेरा पड़ोसीमुझे यह समझाने लेकर वो हथियार आया हैगले मिलकर गले पड़ना चाहता है दुश्मनलगता है अबकी बार बनके होशियार आया हैमे
जुबां से कहूं तभी समझोगे तुम इतने भी नादां तो नहीं होगे तुम अपना दिल देना चाहते हो मुझे मतलब मेरी जान ले जाओगे तुम भड़क उठी जो चिंगारी मोहब्बत की फिर वो आग ना बुझा पाओगे तुम इश्क में सुकूं तभी मिलेगा जब जिस्म से रूह में समाओगे तुम प्यार करना कोई वादा न करना वरना बेवफा कहलाओगे तुम अब तो कहते हैं दुश्म