त्तुम्हारे पास जीने के सुनो कितने सहारे हैं
मैंने तो उलझनों में बिन तेरे लम्हें गुजारे हैं
कोई भी दर नहीं ऐसा जहां पे चैन जा मांगू
तेरे आगे तब ही तो हाथ ये दोनों पसारे हैं
दर्द सहता रहा हूं मैं दवा मिलती नहीं कोई
छुपे शायद इसी में जिंदगी के कुछ इशारे हैं
भले ही तुम जमाने के लिए सच से मुकर जाओ
मेरी धड़कन के सारे बोल पर केवल तुम्हारे हैं
खुदा कितनों को मिलता है सुनो दुनिया सयानी में
नाम महबूब के नाधुकर तब ही आशिक पुकारे हैं