*सपने*बनाये रखने के लिए सपने जिंदा,उड़ने दीजिए मन को मानिंद परिंदा। ©प्रदीप त्रिपाठी "दीप" ग्वालियर (म.प्र.)
हर किसी को नहीं आते बेजान बारूद के कणों में सोई आग के सपने नहीं आते बदी के लिए उठी हुई हथेली को पसीने नहीं आते शेल्फ़ों में पड़े इतिहास के ग्रंथो को सपने नहीं आते सपनों के लिए लाज़मी है झेलनेव
सपने बड़े सलोने होते हैं,सपने बड़े अलबेले होते हैं,सपने कभी रुलाते हैं,तो सपने कभी हँसाते हैं,नींद खुलने पर कुछ गायब,तो कुछ याद रह जाते हैं।सपने में चढ़ता हूँ कभी पहाड़ पर,तो चढ़ तो जाता हूँ,पर उतर नहीं पा
"पहले ही" मेरे सपने वे जेवर थे जिन्हें गढ़ने से पहले ही चुरा लिया गया मेरे अनुभव वे पत्थर थे जिन्हें तराशने से पहले ही तोड़ दिया गया मेरी इच्छायें वे फिल्म थीं जिन्हें पूरी होने से पहले ही जब्त
कुछ सपने सुहाने टूट गए कुछ सखे पुराने रुठ गए। कुछ चोट लगी सीने पर कुछ अंदर से हम टूट गए। करो न अपने मन को तुम,आशा से विहीन थामे रहो धैर्य का दामन,होगा धरा अंधेरा हीन। विपदा की घड़ी जब आती है घना अँ
मैंने तुम्हें सपने में देखा, अब तुम्हें देखने का, यही तो एक जरिया बचा है। इन दिनों... अब तुम तो हमें देखने या मिलने से रहें। भूलने की आदत जो है तुम्हें। खैर ! अब तुम्हें लेकर बुरा भी क्या मानें? क्योंकि उसके लिए भी, हक जो ढूंढने पड़ेंगे हमें। हां, आजकल तुम सपने में भी, मोबाइल में नजरें गड़ाए हुए द
सपने वो होते हें!जो सोने नही देते !! और अपने वो होते है ! जो रोने नही देते !! प्यार इंसान से करो उसकी आदत से नही रुठो उनकी बातो से मगर उनसे नही... भुलो उनकी गलतीया पर उन्हें नही क्योकि रिश्तों से बढकर कुछ भी नहीं।।
कल रात को मैंने एक सपना देखा भीड़ भरे बाज़ार में नहीं कोई अपना देखा मैंने देखा एक घर की छत के नीचे कितनी अशांति कितना दुख और कितनी सोच मैंने देखा चेहरे पे चेहरा लगाते हैं लोग ऊपर से हँसते पर अंदर से रोते हैं लोग भूख, लाचारी, बीमारी, बेकारी यही विषय है बात का आँख खुली तो देखा यह सत्य है सपना नहीं रात
कुछ सपने केवल सपने ही रह जाते हैं बिना पूरे हुये, बिना हकीकत हुये और हमे वो ही अच्छे लगते हैं अधूरे सपने, बिना अपने हुये हम जी लेते हैं उसी अधूरेपन कोउसी खालीपन कोसपने की चाहत मेंजानते हुये भी ....सपने तो सपने हैंसपने कहाँ अपने हैंयथार्थ को छोड़करपरिस्थिति से मुह मोड़करहम जीते हैं सपने मेंसपने हम रोज
चंदा रे चंदा रे कबी टू ज़मीन पर आ फिल्म के गीत सपने से गीत साधना सरगम और हरिहरन द्वारा गाया जाता है, इसका संगीत एआर रहमान द्वारा रचित है और गीत जावेद अख्तर द्वारा लिखे गए हैं।सपने (Sapnay )चंदा रे चंदा रे कभी तो ज़मीन पर आ (Chanda Re Chanda Re Kabhi To Zameen Par Aa ) की लिरिक्स (Lyrics Of Chanda
'सपने' एक 1997 की हिंदी फिल्म है जिसमें अरविंद स्वामी, काजोल और प्रभु ढेवा प्रमुख भूमिका निभाते हैं। हमारे पास और सपने के एक गीत गीत हैं। एआर रहमान ने अपना संगीत बना लिया है। साधना सरगम और हरिहरन ने इन गीतों को गाया है जबकि जावेद अख्तर ने अपने गीत लिखे हैं।इस फिल्म के गाने चंदा रे चंदा रे कभी तो ज़
सुवचन सकारात्मक होते हैं अौर दिशा निर्धारित करते हैं। सुपथ दिखाते हैं अौर लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होते हैं। आज का सुवचन का शीर्षक 'सफल' है!Video को LIKE और हमारे CHANNEL को SUBSCRIBE करना ना भूले !JYOTISH NIKETAN