सपने बड़े सलोने होते हैं,
सपने बड़े अलबेले होते हैं,
सपने कभी रुलाते हैं,
तो सपने कभी हँसाते हैं,
नींद खुलने पर कुछ गायब,
तो कुछ याद रह जाते हैं।
सपने में चढ़ता हूँ कभी पहाड़ पर,
तो चढ़ तो जाता हूँ,
पर उतर नहीं पाता हूँ,
सीखता हूँ तैराकी तालाब में,
तो तैरना सीख नहीं पाता हूँ,
और पानी में हिचकोले खाता हूँ।
सपने में इम्तिहान बहुत डराता है,
बहुत मन लगाकर पढ़ता हूँ घर पर,
पर कुछ याद नहीं रह जाता है,
काँपते हैं हाथ लिखने में,
कुछ लिखा नहीं जाता है,
और समय खत्म हो जाता है।
बहुत सारे पैसे जमीन पर पड़े देखकर,
अचम्भित हो जाता हूँ,
बहुत कोशिश करता हूँ समेटने की,
पर पैसे समेट नहीं पाता हूँ,
रह जाता है थैला खाली,
और परेशान हो जाता हूँ।
गाड़ी चलाता हूँ जब सपने में,
गाड़ी बहुत तेज दौड़ जाती है,
लगाता हूँ ब्रेक जोर जोर से,
पर ब्रेक लगा नहीं पाता हूँ,
चलती है गाड़ी बिना ब्रेक के,
और मैं किसी से टकरा जाता हूँ।
तैयार होता हूँ ऑफिस जाने के लिए,
पर तैयार हो नहीं पाता हूँ,
छूट जाती बस हमारी,
तो पीछे-पीछे दौड़ लगाता हूँ,
पर ऑफिस नहीं पहुँच पाता हूँ समय पर,
फिर बॉस की डाँट खाता हूँ।
स्वप्न में बिना पंखों के उड़ता हूँ,
अम्बर में इधर से उधर सैर करता हूँ,
अब उतरने की कोशिश करता हूँ धरती पर
पर उतर नहीं पाता हूँ,
फिर अचानक नींद से जागकर,
जमीन पर आ जाता हूँ।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर