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हिन्दी कहानियाँ

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

17 अध्याय
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25 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने कई कहानियाँ, उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं किन्तु उनकी ख्याति विशेषरुप से कविता के कारण ही है।  

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पुस्तक के भाग

1

लिली

9 अप्रैल 2022
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पद्मा के चन्द्र-मुख पर षोड़श कला की शुभ्र चन्द्रिका अम्लान खिल रही है। एकान्त कुंज की कली-सी प्रणय के वासन्ती मलयस्पर्श से हिल उठती,विकास के लिए व्याकुल हो रही है। पद्मा की प्रतिभा की प्रशंसा सुनकर

2

हिरनी

9 अप्रैल 2022
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1 कृष्णा की बाढ़ बह चुकी है; सुतीक्ष्ण, रक्त-लिप्त, अदृश्य दाँतों की लाल जिह्वा, योजनों तक, क्रूर; भीषण मुख फैलाकर, प्राणसुरा पीती हुई मृत्यु तांडव कर रही है। सहस्रों गृह-शून्य, क्षुधाक्लिष्ट, निःस्व

3

‘भेड़िया, भेड़िया’

9 अप्रैल 2022
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एक चरवाहा लड़का गाँव के जरा दूर पहाड़ी पर भेड़ें ले जाया करता था। उसने मजाक करने और गाँववालों पर चड्ढी गाँठने की सोची। दौड़ता हुआ गाँव के अंदर आया और चिल्लाया, ''भेड़िया, भेड़िया! मेरी भेड़ों से भेड़ि

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गधा और मेंढक

9 अप्रैल 2022
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एक गधा लकड़ी का भारी बोझ लिए जा रहा था। वह एक दलदल में गिर गया। वहाँ मेंढकों के बीच जा लगा। रेंकता और चिल्‍लाता हुआ वह उस तरह साँसें भरने लगा, जैसे दूसरे ही क्षण मर जाएगा। आखिर को एक मेंढक ने कहा, ''

5

महावीर और गाड़ीवान

9 अप्रैल 2022
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एक गाड़ीवान अपनी भरी गाड़ी लिए जा रहा था। गली में कीचड़ था। गाड़ी के पहिए एक खंदक में धँस गए। बैल पूरी ताकत लगाकर भी पहियों को निकाल न सके। बैलों को जुए से खोल देने की जगह गाड़ीवान ऊँचे स्‍वर में चिल्

6

शिकार को निकला शेर

9 अप्रैल 2022
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एक शेर एक रोज जंगल में शिकार के लिए निकला। उसके साथ एक गधा और कुछ दूसरे जानवर थे। सब-के-सब यह मत ठहरा कि शिकार का बराबर हिस्सा लिया जाएगा। आखिर एक हिरन पकड़ा और मारा गया। जब साथ के जानवर हिस्सा लगाने

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प्रेमपूर्ण तरंग

9 अप्रैल 2022
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बाबू प्रेमपूर्ण मेरे अभिन्न हृदय मित्र हैं। मेरे बी.ए. क्लास के छात्रों में आप भी सबसे वयोज्येष्ठ हैं। आपकी बुद्धि की नामतौल इस वाक्य से पाठक स्वयं कर लें कि जब मैं कॉलेज में भर्ती हुआ, तभी से आप कॉले

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चतुरी चमार

9 अप्रैल 2022
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चतुरी चमार डाकखाना चमियानी मौजा गढ़कला, उन्नाव का एक कदीमी बाशिंदा है। मेरे नहीं, मेरे पिताजी के बल्कि उनके पूर्वजों के भी मकान के पिछवाडे़ कुछ फासले पर, जहाँ से होकर कई और मकानों के नीचे और ऊपरवाले प

9

श्रीमती गजानंद शास्त्रिणी

9 अप्रैल 2022
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श्रीमती गजानन्द शास्त्रिणी श्रीमान् पं. गजानन्द शास्त्री की धर्मपत्नी हैं। श्रीमान् शास्त्री जी ने आपके साथ यह चौथी शादी की है, धर्म की रक्षा के लिए। शास्त्रिणी के पिता को षोडशी कन्या के लिए पैंतालीस

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दो घड़े

9 अप्रैल 2022
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एक घड़ा मिट्टी का बना था, दूसरा पीतल का। दोनों नदी के किनारे रखे थे। इसी समय नदी में बाढ़ आ गई, बहाव में दोनों घड़े बहते चले। बहुत समय मिट्टी के घड़े ने अपने को पीतलवाले से काफी फासले पर रखना चाहा। प

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कंजूस और सोना

9 अप्रैल 2022
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एक आदमी था, जिसके पास काफी जमींदारी थी, मगर दुनिया की किसी दूसरी चीज से सोने की उसे अधिक चाह थी। इसलिए पास जितनी जमीन थी, कुल उसने बेच डाली और उसे कई सोने के टुकड़ों में बदला। सोने के इन टुकड़ों को गल

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सौदागर और कप्तान

9 अप्रैल 2022
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एक सौदागर समुद्री यात्रा कर रहा था, एक रोज उसने जहाज के कप्तान से पूछा, ''कैसी मौत से तुम्हारे बाप मरे?" कप्तान ने कहा, ''जनाब, मेरे पिता, मेरे दादा और मेरे परदादा समंदर में डूब मरे।'' सौदागर ने कहा

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देवी

9 अप्रैल 2022
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1 बारह साल तक मकड़े की तरह शब्दों का जाल बुनता हुआ मैं मक्खियाँ मारता रहा। मुझे यह ख्याल था कि मैं साहित्य की रक्षा के लिए चक्रव्यूह तैयार कर रहा हूँ, इससे उसका निवेश भी सुन्दर होगा और उसकी शक्ति का

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बिल्लेसुर बकरिहा

9 अप्रैल 2022
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1) ‘बिल्लेसुर’ नाम का शुद्ध रूप बड़े पते से मालूम हुआ-‘बिल्वेश्वर’ है। पुरवा डिवीजन में, जहाँ का नाम है, लोकमत बिल्लेसुर शब्द की ओर है। कारण पुरवा में उक्त नाम का प्रतिष्ठित शिव हैं। अन्यत्र यह नाम न

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बिल्लेसुर बकरिहा (भाग 2)

9 अप्रैल 2022
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(6) बिल्लेसुर गाँव आये। अंटी में रुपये थे, होठों में मुसकान। गाँव के ज़मींदार, महाजन, पड़ोसी, सब की निगाह पर चढ़ गये––सबके अन्दाज़ लड़ने लगे––'कितना रुपया ले आया है।' लोगों के मन की मन्दाकिनी में अव्

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बिल्लेसुर बकरिहा (भाग 3 )

9 अप्रैल 2022
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(11) जब से त्रिलोचन के बैल न लेकर बिल्लेसुर ने बकरियाँ ख़रीदी तभी से इस बेचारे को जुटाने के लिये त्रिलोचन पेच भर रहे थे। बकरियों के बच्चों के बढ़ने के साथ गाँव में धनिकता के लिये बिल्लेसुर का नाम भी

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बिल्लेसुर बकरिहा (भाग 4 )

9 अप्रैल 2022
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(15) कातिक की चाँदनी छिटक रही थी। गुलाबी जाड़ा पड़ रहा था। सवन-जाति की चिड़ियाँ कहीं से उड़कर जाड़े भर इमली की फुनगी पर बसेरा लेने लगी थीं; उनका कलरव उठ रहा था। बिल्लेसुर रात को चबूतरे की बुर्जी पर ब

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