यह एक लघु कथा है जो मैं आज आपके सामने रखने जा रहा हू एक गोविंदपुर नामक गांव था
वहां पर एक स्कूल में सभी विद्यार्थी पढ़ा करते थे स्कूल की स्थिति भी पुराने ग्रामीण क्षेत्रों जैसी थी एक दिन स्कूल में पंचायत के द्वारा भगवान श्री कृष्ण की कथा कराने का निश्चय किया गया और सभी बच्चों से कहा गया कि वह अपने घर से प्रसाद के लिए दूध लेकर आए
उसमें एक बच्चा नीलू अपने घर गया और अपनी मां से कहने लगा कि मां कल विद्यालय में कथा है मास्टरजी ने घर से दूध लाने के लिए कहा है
( नीलू के पिता कुमार थे पर क्षय रोग के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है नीलू के पिता की मृत्यु के बाद उनकी मां ही छोटे-छोटे मिट्टी के बर्तन बनाकर गांव में बेचती है और जिस कारण बहुत ही कम मात्रा में धन प्राप्त हो पाता है दो वक्त की रोटी का ही गुजारा बड़ी मुश्किल से होता था)
माँ- नीलू बेटा कल विद्यालय मत जाना दूध वह लोग लाते हैं जिनके पास गाय भैंस होती है । हम लोगों के पास तो है नहीं
नीलू - नीलू उदास हो जाता है और अपने मन में सोचता है कि मैं ही क्यों दूध नहीं ले जा सकता 😢
माँ - नीलू को उदास देखकर उसकी मां भी भवुक हो जाती है और अपने 5 वर्ष के बच्चे को गले से लगा कर कहती है तेरे पापा होते तो आज जरूर दूध होता तू चल मैं तुझको रोटी देती हूँ ।
नीलू भी उदास होकर बैठ जाता है 😐
नीलू - मैं आज रोटी नहीं खाऊंगा और रोने लगता है
बार-बार नीलू अपनी मां से दूध की जिद करता है कि स्कूल के सभी बच्चे अपने घर से दूध लेकर जाएंगे और मैं कैसे जाऊं
सब मुझे चढ़ाएंगे ।
और उस रात नीलू भूखा ही सो गया तथा मां भी पूरी रात अपने बच्चों को देखते देखते भूखी प्यासी सो गई और अपने हृदय को कोसती रही कि काश हमारे पास गाय होती ।
ईश्वर कितनी परीक्षा लेगा ।
अगली सुबह
जब नीलू की मां उठकर भगवान की आराधना कर रही थी तब नीलू मां के पास आया उसने भगवान कृष्ण की प्रतिमा देखी जिसमें भगवान कृष्ण गायों के साथ खड़े थे !
नीलू - मां यह कौन है इनके पास इतनी गाए हैं ।
माँ - नीलू बेटा यह गोविंद है उनके पास बहुत सी गाए है।
नीलू - मां गोविंद कहां रहते हैं । इनके पास इतनी गाए हैं यह तो दूध दे सकते हैं हमको
नीलू की मां अपने बच्चे का भाव देखकर अत्यंत दुखी हुई बोली जंगल में रहते हैं ।
बार-बार नीलू के पूछने लगा और मां को परेशान करने लगा तब माँ गुस्से में कहा यह ले चुकड़िया जा जंगल में है दूध ले आ ।
( चुकड़िया एक मट्टी का छोटा बर्तन )
यह बात सुनकर नीलू ने चुकुड़िया उठाई और जंगल की तरफ दौड़ पड़ा ।
माँ ने सोचा कि अभी नीलू वापस आ जाएगा
वह जंगल कभी नहीं जाता ।
नीलू जंगल पहुंच जाता है
और आवाज देना शुरू करता है
गोविंद .......गोविंद .....
नीलू- गोबिंद कहां हो सामने आओ ।
गोविंद कहां । हम थोड़ा सा दूध लेने आए हैं हमें थोड़ा सा दूध दे दो
काफी देर तक गोविंद को पुकारने के बाद नीलू उदास हो जाता है और सोचता है कि मां ने झूठ बोला जंगल में कोई गोविंद नहीं रहते और रोने लगता है ।
काफी भावुक होकर एक पत्थर के सहारे बैठ जाता है
तभी नीलू को पास के ही
पेड़ के पास एक अत्यंत मोहक सुंदर व्यक्ति दिखाई देता है जो उस प्रतिमा की तरह था जिसकी नीलू की मां आराधना कर रही थी ।
नीलू की आंखों में चमक आ जाती है और वह चुकड़िया लेकर गोविंद की ओर भाग पड़ता है ।
नीलू- गोविंद हमको चुकड़िया भर दूध दे दो बस
गोविंद - और कुछ नहीं चाहिए
नीलू- हा बस चुकड़िया भर दूध
मां ने कहा था कि गोविंद जंगल में रहते हैं मां ने सच कहा था ।
गोविंद - माँ कभी झूठ नहीं बोलती । बेटा यह लो दूध और जाओ ।
नीलू - अब वह दौड़ते हुए सीधे विद्यालय जाता है और वहां वह देखता है
कि सभी बच्चे अपने घर से दूध ला रहे हैं कोई लोटे में ला रहा है कोई जग में ला रहा है और कोई बाल्टी भरकर दूध ला रहा है उसके सामने नीलू की चुकड़िया अत्यंत छोटी और कम दूधवाली है
नीलू की छोटी चुकड़िया भर दूध देखकर वहां के सभी बच्चे और मास्टर हंसने लगते हैं और कहते हैं कि चुकड़िया पर दूध से खीर कैसे बनेगी देखो सब लोग कितना - कितना दूध लाएं हैं
नीलू- यह देख और यह सुनकर नीलू अत्यंत भावुक हो जाता है !
नीलू को भावुक देखकर कथा कह रहे पंडित जी ने कहा कि बालक है इसका भी दूध खीर में मिला दो । भगवान भाव देखते हैं
नीलू की चुकड़िया भर दूध मिलाते ही खीर बढ़ने लगती है और बढ़ती ही जाती है और वहां पर उपस्थित सभी बर्तन भर जाते हैं फिर इसके बाद तो तुरंत गांव से बर्तन मंगाए जाते हैं वह भी भरने लगते हैं ।
तभी पंडित जी ने पूछा कि नीलू बेटा यह चुकड़िया भर दूध तू कहां से लाया है
नीलू- जंगल वाले गोविंद से !
तभी नीलू भगवान कृष्ण की प्रतिमा की ओर इशारा करता है कि यह गोविंद है इन्होंने ही दिया है ।
सभी शिक्षक और पंडित जी अचंभित हो जाते हैं और कहते हैं मुझे गोविंद के पास तुरंत ले चलो और नीलू पंडित जी और सभी शिक्षक गण और सभी बच्चे और उनके परिवार के लोग जंगल की ओर निकल पड़ते हैं।
पंडित जी नीलू गोविंद कहां है
नीलू एक पेड़ की ओर इशारा करता है और कहता है कि वह देखो बैठे तो हैं
गोविंद केवल नीलू को ही दिख रहे थे और किसी को नहीं यह देख कर पंडित जी अत्यंत भावुक हो जाते हैं और प्रार्थना करते हैं कि भगवान मुझे दर्शन दो ।
सभी शिक्षक और सभी बच्चे नीलू से माफी मांगते हैं और पंडित जी नीलू को गले से लगाते हुए कहते हैं कि मैंने पूरे जीवन भगवान की आराधना की पर वह मुझे नहीं दिखे और तूने बस नाम से पुकारा और सामने आ गए ऐसा क्यों ।
और गोविंद केवल उस नीलू को ही दिख रहे हैं यह देखकर पंडित जी और सभी शिक्षक गण भावुक हो जाते हैं और उनका घमंड टूट जाता है
अत्यंत भावुक हो जाने के बाद गोविंद सामने आते हैं और कहते हैं की इस बालक ने मुझे मन से पुकारा था इसलिए मैं सामने आया हूं और इस बालक ने ही फिर से मुझसे प्रार्थना कि मैं सबको देखूं
इसलिए तुम सब मुझे देख पा रहे हो इतना कहते ही गोविंद अंतर्ध्यान हो जाते हैं ।
पंडित जी ने बच्चे को अपने गले से लगा कर रोने लगे बोले की जिसके लिए हम कथा कर रहे हैं वह तुमसे स्वयं मिलने आया ईश्वर भाव का भूखा है यह बात आज स्पष्ट हो गई ।