नीलमत पुराण एवं कल्हणकृत राजतरंगिणी के मुताबिक, कश्मीरघाटी पूर्व में विशाल झील थी।
भूगर्भवेत्ताओं के अनुसार, भूगर्भीय बदलाओं के चलते खदियानयार व बारामुला में पर्वतों के घर्षण से झील का जल बह गया और कश्मीर घाटी का स्वरूप सामने आया।
इतिहासकारों के मतानुसार मौर्य सम्राट अशोक ने कश्मीरघाटी में बौद्ध धम्म का प्रचार-प्रसार करवाया था।
छठी सदी में कश्मीर पर हूणों ने आधिपत्य कर लिया था। तत्पश्चात वहॉं कार्कोट, उत्पल व लोहारवंशीय नरेशों ने राजकाज किया। सन् 697 से 738 तक वहॉं ललितादित्य मुक्तापीठ विख्यात नरेश हुए थे, जो हिंदू थे।
समूचे भारत की तरह कश्मीर में भी इस्लाम का आगमन 13वीं-14वीं सदी के मध्य में हुआ। मुस्लिम सुल्तान जैन-उल-आबदीन ने 1420 से 1470 तक कश्मीर में शासन किया।
1586 में कश्मीर बादशाह अकबर के काल में मुगलशासन का अंग बना।
1756 में कश्मीर कमजोर मुगल बादशाहों के हाथ से निकलकर अफगान आक्रमणकारी अहमदशाह अब्दाली के हाथों चला गया। फिर पठान शासकों ने 67 साल तक वहॉं राजपाठ चलाया।
1733 से 1782 तक महाराजा रणजीत सिंह ने जम्मू पर शासन किया। 1819 में इसे पंजाब के सिख राज्य में विलीन कर दिया गया। फिर अमृतसर संधि के अधीन कश्मीर को डोंगराशाही परिवार के गुलाब सिंह को सौंप दिया गया।
रणजीत सिंह के गवर्नरों में गुलाब सिंह सर्वाधिक ताकतवर था। कश्मीर इन्हीं डोंगरा शासकों के अधीन स्वतंत्रता प्राप्ति अर्थात 1947 तक रहा।
1931 के गोलमेज सम्मेलन में जम्मू कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने साफ शब्दों में कहा था कि भारत जब एक स्वतंत्र राष्ट्र बनेगा, तब वह उसका हिस्सा बनेंगे।
लेकिन, वे सपने में भी नहीं सोचे थे कि आजादी के साथ-साथ भारत-पाकिस्तान नामक दो राष्ट्रों की रूपरेखा खींच दी जाएगी और कांग्रेस अपनी स्वीकृति दे देगा। फिर दोनों मुल्कों का बंटवारा इस कदर होगा कि खूनखराबा हो जाएगा।
विभाजन कश्मीर महाराजा हरिसिंह की कल्पना से परे था। विशेषज्ञों के अनुसार, आजादी के दौरान महाराजा हरिसिंह के लिए भारत-पाक में-से किसी एक देश को चुनना इसीलिए मुश्किल हो रहा था, क्योंकि जम्मू-कश्मीर मुस्लिमबहुल होने के साथ-साथ हिंदू आबादी वहॉं बड़ी तादाद में रह रही थी।
वे स्वयं हिंदू राजा थे और शिकार व हॉर्सरेस के बेहद शौकीन थे। शानोशौकत और बेफिक्री से रहना उनकी जीवनशैली का प्रधान अंग हो गया था।
उन्होंने दोनों देशों के साथ यथास्थिति कायम रखने का समझौता करना चाहा, जिसमें वह पाकिस्तान के साथ ऐसा करने में सफल भी हो गया।
यह एक कटु सत्य है कि महाराजा हरिसिंह पाकिस्तान के साथ विलय चाहते थे, न भारत के साथ। वे तो एक स्वतत्र राष्ट्र की तरह रहना चाहते थे और जम्मू-कश्मीर को स्वीटजरलैंड जैसा स्वतंत्र राज्य बनाना चाहते थे।
एक कारण यह भी था कि पाकिस्तान धार्मिक राज्य बन रहा था, जो इस्लामिक राज्य बनने के लिए भारत से अलग हुआ था। जबकि भारत धमनिरपेक्ष राज्य बननेवाला था।
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अगले अध्याय में पढ़िए विलय संबंधी दस्तावेज क्या था और जम्मू-कश्मीर को छोड़कर शेष देशी रियासतों के विलयपत्र पर हस्ताक्षर किन तौर-तरीकों से करवाया गया?