11 दिसंबर 2023 को सुप्रीमकोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 5 अगस्त 2019 के केंद्र सरकार के फैसले पर मुहर लगाकर ‘’एक भारत, श्रेष्ठ भारत की भावना को बल प्रदान किया है।
दरअसल, जब केंद्र ने अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष राज्य दर्जा खत्म कर दिया था, तब से इस फैसले के विरूद्ध 23 याचिकाएं लगाई गई थी और देश पूरी उत्सुकता से देख रहा था कि इस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या आनेवाला है?
शिखर कोर्ट के फैसले से यह साबित हो गया कि जम्मू-कश्मीर के प्रत्येक नागरिक पर तमाम भारतीय कानून-कायदे लागू होंगे, जो हरेक भारतीय पर लागू होते हैं। उसी तरह हरेक भारतीय को कश्मीर में वे सभी हक प्राप्त होंगे, जो देशभर में प्राप्त होते हैं। इसमें अब किसी किस्म का कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। फिर चाहे सेवा-व्यवसाय, उद्योग-धंधे, खेती-बाड़ी, जमीन-जायदाद या हो नौकरी।
दूरगामी असरकारी फैसले सुनानेवाले संविधान पीठ के यशस्वी न्यायमूर्ति थे-स्वयं चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस संजीव खन्ना।ं
पांचों जज अनुच्छेद 370 पर एकमत थे। फैसला 476 पेज का है। पहला फैसला-352 पेज का आया, जिसमें सीजेआई सहित जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस गवई का अभिमत अंकित है। दूसरा-121 पेज का है, जिसमें जस्टिस कौल की बातें है। तीसरा 3 पेज का है, जिसको जस्टिस खन्ना के द्वारा लिखा गया है।
इसमें जस्टिस कौल का फैसला महत्वूपर्ण है, जो स्वयं एक कश्मीरी पंडित परिवार से हैं व इसी माह रिटायर होनेवाले हैं। उन्होनंे अपने अहम फैसले में लिखा है कि 1980 के दशक में कश्मीर में हुए मानवाधिकार उल्लंघन (अन्याय व क्रूरता) के मामले की जांच के लिए सत्य व सुलह आयोग (फैक्ट फाइंडिंग कमेटी) बनाया जाए।
वास्तविकता यही है कि 1989-90 के बाद से कश्मीर में हुई निर्मम हत्याओं के लिए 510 से ज्यादा मजिस्टेªट जांच के आदेश हुए, पर परिणाम ढाक के वही तीन पात रहे हैं।
यही नहीं, 2010 में उमर अबदुल्ला की अगुआई वाली सरकार ने कश्मीर में हुई हिंसक घटनाओं की जांच के लिए दो-दो जांच आयोग गठित किया था, लेकिन नतीजा सिफर रहा। किसी जांच आयोग को जानबूझ कर सार्वजनिक नहीं किया गया।
आखिर इसका कारण क्या था, यह भी उच्चस्तरीय जांच का विषय होना चाहिए। एक जांच आयोग सेवानिवृत्त जज सैयद बशर-उल-दीन की अध्यक्षता में 3 सदस्यीय था, तो दूसरा जस्टिस एसके कौल आयोग था।
इतना ही नहीं, जम्मू-कश्मीर में प्राप्त 3 हजार अज्ञात शवों की जांच राज्य मानवाधिकार आयोग कर रहा है, पर परिणाम क्या रहा, किसी को खबर तक नहीं लगी है।
सुप्रीम फैसले के 6 अहम बिंदु-
यद्यपि सर्वोच्च अदालत के संविधान पीठ का फैसला 476 पृष्ठीय है, तथापि इसका अहम बिंदु निम्नवत है।
1. संविधान पीठ के पांचों सम्मानीय जजों ने कहा है कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था। लिहाजा, जम्मू-कश्मीर की संविधानसभा को स्थायी निकाय बनाने का इरादा इस अनुच्छेद में नहीं था।
2. 26 अक्टूबर 1947 को विलयपत्र पर दस्तखत करने और 27 अक्टूबर 1947 को विलयपत्र भारत के वायसराय के द्वारा स्वीकार करने के बाद जम्मू-कश्मीर के पास संप्रभुता का कोई तत्व नहीं है।
3. संविधान पीठ इस बाबत जारी किए गए राष्ट्रपति की शक्ति को वैध मानता है। शक्ति प्रयोग के लिए राज्य से सहमति लेना आवश्यक नहीं है।
4. शीर्ष कोर्ट का साफ कहना है कि अनुच्छेद 3 (ए) के अनुसार, भारत का संसद किसी राज्य से क्षेत्र को अलग करके या दो राज्यों या राज्यों के हिस्से को एकजुट करके या किसी क्षेत्र को एकजुट करके एक नया राज्य बना सकता है।
5. कांस्टीट्यूशनल बैंच का आदेश है कि चुनाव आयोग सिंतंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा का चुनाव कराए, ताकि उसको पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल हो सके।
सुप्रीम फैसले से यह सिद्ध हो गया है कि अनुच्छेद 370 व 35ए विभाजनकारी प्रवृति के थे और जम्मू-कश्मीर को मुख्यधारा में समाहित करने में बाधक। जब उक्त अनुच्छेद हटाए गए, तब से वहां सकारात्मक बदलाव देखा जा रहा है और जम्मू-कश्मीर का देश के साथ एकीकरण हो गया है।
इससे कांग्रेस सहित उन क्षेत्रीय दलों को झटका लगा है, जो जम्मू-कश्मीर में यथास्थिति बहाली के पक्षधर व पैरोकार रहते हुए उसको अपनी जागीर समझते थे और गाहे-ब-गाहे कंेंद्र सरकार को धमकियां दिया करते थे कि इससे वहां ऐसा खून-खराबा होगा कि संभालना मुश्किल हो जाएगा।
ऐसी ही भाषा पाकिस्तान भी बोलता था और दुनिया के देशों को भारत के खिलाफ लामबंद करने में लगा हुआ था, पर उसको एकाध मुल्कों को छोड़कर किसी ने गंभीरता से नहीं लिया।
अंत में, यही निष्कर्ष निकलता है कि सितंबर-नवंबर का महीना चुनाव के लिए मुफीद हो सकता है, जिसका निर्णय चुनाव आयोग को करना है। वजह दिसंबर व फरवरी के बीच भारी सर्दी व बर्फ पड़ती है। मार्च-मई में पर्यटन व रमजान का मौसम रहता है। जून-अगस्त के मध्य अमरनाथ यात्राएं होती हैं।
पर, उसके पूर्व चुनाव आयोग को सुरक्षा एजेसिंयों से मंजूरी लेनी होगी और भारी तादाद में सैन्यबलों की तैनाती करनी होगी, तभी वहां निर्वाचन निर्विध्न संपन्न हो सकता है।
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अगले अध्याय में पढ़िए कि कश्मीर के सबंध में ऐतिहासिक सच क्या है?