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विलय संबंधी दस्तावेज

20 दिसम्बर 2023

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भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम- 4 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद से पास हुआ। भारत और पाकिस्तान के स्वाधीन होने की घोषणा 18 जुलाई 1947 को की गई, जिसमें भारत और पाकिस्तान दो अधिराज्यों का निर्माण 15 अगस्त 1947 को किया जाना निश्चित हो गया। 

कांग्रेस के सुझाव पर स्वतंत्र भारत के पहले गर्वनर जनरल लार्ड माउंटबेटन बने। पाकिस्तान ने निर्धारित दिवस के एक दिन पहले अर्थात 14 अगस्त को स्वतंत्र होने की घोषणा कर दिया। उसके पहले गर्वनर जनरल मुहम्मद अली जिन्ना बने। 

फलस्वरूप, 15 अगस्त 1947 से देशी रियासतों पर ब्रिटिश सर्वोच्चता समाप्त हो गई। देशी रियासतों की संप्रभुता को बरकरार रखते हुए उन्हें तीन विकल्प दिए गए। 

पहला, वे स्वतंत्र देश के रूप में अपना अस्तित्व बरकरार रख सकते हैं। दूसरा, वे भारत में शामिल हो सकते हैं। तीसरा, वे पाकिस्तान के साथ जा सकते हैं। 

भारत के साथ जुड़ने के इच्छुक रियासतों का विलय इसी इंस्ट्रूमेंट आफ एक्सेसन के तहत किया गया। 

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम में यह भी प्रावधान था कि जब तक दोनों देश अपना संविधान निर्माण नहीं कर लेते, तब तक उनके मुल्क का शासन 1935 के भारत शासन अधिनियम द्वारा किया जाता रहेगा।

विलयपत्र पर हस्ताक्षर 

आजादी के दरमियान 565 देशी रियासतों में-से 562 रियासतों को  थोड़े-से ना-नुकूर के बाद विलयपत्र पर दिनांक 5 अगस्त 1947 तक हस्ताक्षर करवा लिया गया। 

तब, भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सहयोगी वीवी मेनन थे, जो इस अहम कार्य को अमलीजामा पहना रहे थे। 

यही वजह है कि देशी रियासतों के विलय के कठिन कार्य को बगैर रक्तपात के अंजाम देने के लिए उन्हें ‘‘लौह पु्रुष’’ की उपाधि दी गई और उनकी तुलना जर्मनी के बिस्मार्क से की गई। 

इसके बावजूद जो तीन देशी रियासतें राष्ट्रीय एकीकरण में बाधा उत्पन्न कर रही थीं, उनमें सर्वप्रमुख था जूनागढ़ का नवाब, जो गुजरात राज्य में है। दूसरा हैदराबाद का निजाम, उस्मान अली खान और तीसरा जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह। 

जूनागढ़ और हैदराबाद के विलय की जवाबदारी सरकार पटेल के कंधों पर थी। जबकि जम्मू कश्मीर पंडित नेहरू के जिम्मे था। 

काठियावाड़ के समुद्र तट पर स्थित छोटे से रजवाड़े जूनागढ़ का नवाब मुसलमान था, इसलिए वह रियासत का विलय भारत में नहीं चाहता था। लेकिन, वहॉं की जनता भारत में विलय की पक्षधर थी। 

फलतः, जनमत संग्रह करवाया गया और 15 सितंबर 1947 को जूनागढ़ में सैन्य कार्रवाई कर भारत में विलय कर लिया गया। नवाब विलयपत्र में हस्ताक्षर किए बगैर पाकिस्तान की शरण में चला गया। 

हैदराबाद का सातवांॅं निजाम-मीर उस्मान अली खान ब्रिटिश साम्राज्य व पाकिस्तान से साठ-गांठ कर स्वतंत्र देश बनने का नापाक मंसूबा पाल रहा था। 

उसने अपने अकूत धन-सपंदा से पाकिस्तान से हथियार मंगवाया। इसके लिए उसने ब्रिटेन में पाकिस्तान के तत्कालीन उच्चायुक्त हबीब इब्राहिम रहीमतुला को मोटी रकम हस्तांतरित किया, जिसे लंदन स्थित नैटवेस्ट बैंक पीएलसी में जमा करवाया गया था। 

उसने भारत सरकार को खूनखराबा की धमकियां दी और स्वतंत्र देश बने रहने की घोषणा कर दी। 

13 सितंबर 1948 को तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के आदेश पर भारतीय सेना ने हैदराबाद में ‘आपरेशन पोलो’ चला दिया। 

इसी दौरान तेलंगाना में जबरदस्त विद्रोह हो गया। इस तरह ऑपरेशन पोलो के तहत पांच दिनों के अंदर हैदराबाद का भारत में विलय बलप्रयोग से हो गया।

हैदराबाद के निजाम के उक्त रकम पर पाकिस्तान के दावे को खारिज करते हुए अभी हाल में ब्रिटिश हाईकोर्ट ने भारत और निजाम के उत्तराधिकारियों के पक्ष में फैसला सुनाकर पाकिस्तान को करारा झटका दे दिया है।

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अगले अध्याय में पढ़िए पाकिस्तान का पहला विश्वासघात क्या था?


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