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जन-जन के जीवन के सुन्द

11 अप्रैल 2022

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जन-जन के जीवन के सुन्दर

हे चरणों पर

भाव-वरण भर

दूँ तन-मन-धन न्योछावर कर।

दाग़-दग़ा की

आग लगा दी

तुमने जो जन-जन की, भड़की;

करूँ आरती मैं जल-जल कर।

गीत जगा जो

गले लगा लो, हुआ ग़ैर जो, सहज सगा हो,

करे पार जो है अति दुस्तर।

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रचनाएँ
अणिमा
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निराला के काव्य में बुद्धिवाद और हृदय का सुन्दर समन्वय है। छायावाद, रहस्यवाद और प्रगतिवाद तीनों क्षेत्रों में निराला का अपना विशिष्ट महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनकी रचनाओं में राष्ट्रीय प्रेरणा का स्वर भी मुखर हुआ है। छायावादी कवि होने के कारण निराला का प्रकृति से अटूट प्रेम है।
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नूपुर के सुर मन्द रहे

11 अप्रैल 2022
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नूपुर के सुर मन्द रहे, जब न चरण स्वच्छन्द रहे। उतरी नभ से निर्मल राका, पहले जब तुमने हँस ताका बहुविध प्राणों को झंकृत कर बजे छन्द जो बन्द रहे। नयनों के ही साथ फिरे वे मेरे घेरे नहीं घिरे वे, त

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बादल छाये

11 अप्रैल 2022
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बादल छाये, ये मेरे अपने सपने आँखों से निकले, मँडलाये। बूँदें जितनी चुनी अधखिली कलियाँ उतनी; बूँदों की लड़ियों के इतने हार तुम्हें मैंने पहनाये ! गरजे सावन के घन घिर घिर, नाचे मोर बनों में फिर

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जन-जन के जीवन के सुन्द

11 अप्रैल 2022
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जन-जन के जीवन के सुन्दर हे चरणों पर भाव-वरण भर दूँ तन-मन-धन न्योछावर कर। दाग़-दग़ा की आग लगा दी तुमने जो जन-जन की, भड़की; करूँ आरती मैं जल-जल कर। गीत जगा जो गले लगा लो, हुआ ग़ैर जो, सहज सगा ह

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उन चरणों में मुझे दो शरण

11 अप्रैल 2022
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उन चरणों में मुझे दो शरण। इस जीवन को करो हे मरण। बोलूँ अल्प, न करूँ जल्पना, सत्य रहे, मिट जाय कल्पना, मोह-निशा की स्नेह-गोद पर सोये मेरा भरा जागरण। आगे-पीछे दायें-बायें जो आये थे वे हट जायें उ

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सुन्दर हे, सुन्दर

11 अप्रैल 2022
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सुन्दर हे, सुन्दर ! दर्शन से जीवन पर बरसे अनिश्वर स्वर। परसे ज्यों प्राण, फूट पड़ा सहज गान, तान-सुरसरिता बही तुम्हारे मंगल-पद छू कर। उठी है तरंग, बहा जीवन निस्संग, चला तुमसे मिलन को खिलने को

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दलित जन पर करो

11 अप्रैल 2022
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दलित जन पर करो करुणा। दीनता पर उतर आये प्रभु, तुम्हारी शक्ति अरुणा। हरे तन-मन प्रीति पावन, मधुर हो मुख मनोभावन, सहज चितवन पर तरंगित हो तुम्हारी किरण तरुणा देख वैभव न हो नत सिर, समुद्धत मन सदा

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दलित जन पर करो

11 अप्रैल 2022
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दलित जन पर करो करुणा। दीनता पर उतर आये प्रभु, तुम्हारी शक्ति अरुणा। हरे तन-मन प्रीति पावन, मधुर हो मुख मनोभावन, सहज चितवन पर तरंगित हो तुम्हारी किरण तरुणा देख वैभव न हो नत सिर, समुद्धत मन सदा

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भाव जो छलके पदों पर

11 अप्रैल 2022
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भाव जो छलके पदों पर, न हों हलके, न हों नश्वर। चित्त चिर-निर्मल करे वह, देह-मन शीतल करे वह, ताप सब मेरे हरे वह नहा आई जो सरोवर। गन्धवह हे, धूप मेरी। हो तुम्हारी प्रिय चितेरी, आरती की सहज फेरी

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धूलि में तुम मुझे भर दो

11 अप्रैल 2022
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धूलि में तुम मुझे भर दो। धूलि-धूसर जो हुए पर उन्हीं के वर वरण कर दो दूर हो अभिमान, संशय, वर्ण-आश्रम-गत महामय, जाति-जीवन हो निरामय वह सदाशयता प्रखर दो। फूल जो तुमने खिलाया, सदल क्षिति में ला मि

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तुम्हें चाहता वह भी सुन्दर

11 अप्रैल 2022
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तुम्हें चाहता वह भी सुन्दर, जो द्वार-द्वार फिर कर भीख माँगता कर फैला कर। भूख अगर रोटी की ही मिटी, भूख की जमीन न चौरस पिटी, और चाहता है वह कौर उठाना कोई देखो, उसमें उसकी इच्छा कैसे रोई, द्वार-द्

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मैं बैठा था पथ पर

11 अप्रैल 2022
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मैं बैठा था पथ पर, तुम आये चढ़ रथ पर। हँसे किरण फूट पड़ी, टूटी जुड़ गई कड़ी, भूल गये पहर-घड़ी, आई इति अथ पर। उतरे, बढ़ गही बाँह, पहले की पड़ी छाँह, शीतल हो गई देह, बीती अविकथ पर।

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मैं अकेला

11 अप्रैल 2022
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मैं अकेला; देखता हूँ, आ रही       मेरे दिवस की सान्ध्य बेला । पके आधे बाल मेरे हुए निष्प्रभ गाल मेरे, चाल मेरी मन्द होती आ रही,       हट रहा मेला । जानता हूँ, नदी-झरने जो मुझे थे पार करने,

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स्नेह-निर्झर बह गया है

11 अप्रैल 2022
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स्नेह-निर्झर बह गया है ! रेत ज्यों तन रह गया है । आम की यह डाल जो सूखी दिखी, कह रही है-"अब यहाँ पिक या शिखी नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी नहीं जिसका अर्थ            जीवन दह गया है ।" "दि

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