जिंदगी के सफ़र में, कौन कहाँ तक साथ चलेगा।
ये तो क़िस्मत के हांथों में है, कौन कितना चलेगा।
वक्त के आगे नहीं किसी की, कभी यहां चल पाई है।
जिसने भी किया यहां पर गुरुर, उसने ठोकर खाई है।
क्यों करते हो तलाश यहाँ पर, साथ में अपने चलने को।
लोग यहां पर ऐसे भी हैं बैठे, व्यर्थ में सब कुछ लेने को।
जिंदगी के सफ़र में, कौन कहाँ तक साथ चलेगा।
ये तो क़िस्मत के हांथों में है, कौन कितना चलेगा।
सफ़र मिला है जीने का तुम को, खुद ही पूरा करना होगा।
अपने कर्मों का लेखा - जोखा, अब तुमको ही देना होगा।
अब तो वक़्त ना करो व्यर्थ तुम, यूँ हमसफ़र की आस में।
चलकर पूरा करो सफ़र तुम, बैठो ना चाहत की प्यास में।
जिंदगी के सफ़र में, कौन कहाँ तक साथ चलेगा।
ये तो क़िस्मत के हांथों में है, कौन कितना चलेगा।