प्रिय मिलकर तुमसे ही प्रेम का गीत मैं लिखने लगा,
आसमाँ से चाहत की बारिश की उम्मीद करने लगा।
जिधर भी देखता हूँ, इक नया नज़ारा है,
समझ में ना आये कि ये क्या माज़रा है।
है चाहत ही दुनिया की दौलत निराली,
क़िस्मत ये देखो यहां हर कोई खाली।
आयी हो जिंदगी में तो फूल उम्मीद का खिलने लगा,
मेरी चाहत की मन्ज़िल का रास्ता साफ दिखने लगा।
प्रिय मिलकर तुमसे ही प्रेम का गीत मैं लिखने लगा,
आसमाँ से चाहत की बारिश की उम्मीद करने लगा।
मिलती नहीं सच्ची चाहत यहां कागज के रंगीन टुकड़ों से,
एहसास ये क़ीमती है मिलता है तो सिर्फ दिल के जुड़ने से।
यूँ हीं ग़ुरूर करते करते कितने ही चले गये इस जहांन से,
मोहब्बत की चाहत ना पूरी हुई उनकी,तड़पते रहे प्यास से।
सोंचकर के ऐसे बुरे हालातों में भी मैं संभलने लगा,
उम्मीद का सितारा मेरी ज़िंदगी में भी चमकने लगा।
प्रिय मिलकर तुमसे ही प्रेम का गीत मैं लिखने लगा,
आसमाँ से चाहत की बारिश की उम्मीद करने लगा।