फिर लौट के आजा मेरी माँ, अब दिल ना कभी दुखाऊंगा।
सच्ची चाहत दिल में भर कर के, तुम पर चाहत बरसाऊंगा।
जो कर्ज मिला इन साँसों का, तेरा नाम कभी ना बिसराऊंगा
अपनी रचना में लिख करके, तेरा नाम अमर कर जाऊंगा।
एक बात कहूँ मैं माँ तुमसे, क्यों समझ सका ना मैं तुमको।
दिल में कितनी चाहत है मेरे, ये बता सका ना मैं तुमको।
सोचा था कभी बचपन में, कुछ खास करूँगा मैं तेरे लिए।
लेकिन अब करूँ भी कैसे, क़िस्मत ने छीन लिया अपने लिए
फिर लौट के आजा मेरी माँ, अब दिल ना कभी दुखाऊंगा।
अपनी रचना में लिख करके, तेरा नाम अमर कर जाऊंगा।
तन्हाई में अक़्सर मुझको, मेरी गलतियां चुभती रहती हैं।
बरबस ही तब आँखें मेरी, लेकर के दर्द बरसती रहती हैं।
कुछ सवाल करने थे तुमसे, कुछ जवाब पाना था तुमसे।
ऐसी भी क्या मजबूरी थी माँ, जो दूर चली गयी हो हमसे।
फिर लौट के आजा मेरी माँ, अब दिल ना कभी दुखाऊंगा।
अपनी रचना में लिख करके, तेरा नाम अमर कर जाऊंगा।
कितना समझाती थी मुझको, कुछ भी समझ ना आता था।
जब आज अकेला हूँ तनहा, तब समझ गया क्या करना था।
आशीष तेरा जो हर पल हो माँ, आशा का उदय सदा होगा।
मेरे हर अल्फ़ाज़ों में ढल करके, माँ ये नाम तेरा अमर होगा।
फिर लौट के आजा मेरी माँ, अब दिल ना कभी दुखाऊंगा।
अपनी रचना में लिख करके, तेरा नाम अमर कर जाऊंगा।